कुछ ही महीने पहले बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में 9वीं बार शपथ लेने वाले नीतीश कुमार, राजधानी पटना में 18 विपक्षी दलों के साथ बीजेपी के खिलाफ पहली बैठक की मेजबानी कर रहे थे। आगामी लोकसभा चुनावों से पूर्व यह पहला मौका था, जब बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी के लिए एक संगठित विपक्ष की चुनौती तैयार हो रही...
Continue reading...Society
समानता की दौड़ से परे नारी का अस्तित्व
आज हमारा समाज महिलाओं और पुरुषों की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता की वकालत कर रहा है। लेकिन यह निराशाजनक तथ्य है और मुझे इस विचारधारा से बहुत नफरत है। अब बेवजह तो कुछ भी नहीं होता, तो जाहिर है इसकी भी वजह होगी और है भी। इंसान का उसके जन्म के समय से ही जेंडर निर्धारित कर दिया जाता...
Continue reading...मुद्दा नजरिए का है, गलत वो भी नहीं, गलत हम भी नहीं..
“यह छह है, अरे नहीं, नहीं यह नौ है.. अरे भई! साफ दिखाई दे रहा है यह छह है.. नहीं, यह नौ है, तुम मेरी जगह पर आकर देखो..” इस दुनिया में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के पास अपना मस्तिष्क है, तो स्वाभाविक-सी बात है कि हर एक व्यक्ति एक अलग सोच और स्वतंत्र विचार भी रखता है। इस बात...
Continue reading...शादी-ब्याह को चंगुल मानने लगी युवा पीढ़ी की बड़ी आबादी
विवाह एक खूबसूरत बंधन है, जहाँ सिर्फ दो व्यक्ति ही नहीं, बल्कि दो परिवार भी मिलते हैं। बेशक, यह एक नैतिक परंपरा रही है, लेकिन धीरे-धीरे नए दौर के बोझ तले दबती जा रही है। एक ऐसा नया दौर, जिसमें शादी का बंधन किसी कैद जैसा जान पड़ने लगा है। एक ऐसा नया दौर, जहाँ अपने ही हमसफर का कुछ...
Continue reading...कहाँ गई वो जादू की पाठशाला?
एक बच्चे के रूप में मेरा स्कूल बहुत अलग था। आज के बच्चे ऐसी शिक्षा और ऐसे बचपन से कोसों दूर हैं। चीज़ें पहचान से परे हो गई हैं। बूढ़े लोग अक्सर अतीत के बारे में बातें करते हैं। हमारे समय में ऐसा था वैसा था और न जाने क्या-क्या? लेकिन वे सही कहते हैं। आप पूछ सकते हैं कि...
Continue reading...सोने की चिड़िया में फिर बसने लगे प्राण
अपने पिंजरे की बेड़ियों को तोड़ते हुए अभूतपूर्व गति से उड़ने लगी सोने की चिड़िया भारत एक ऐसा नाम है, जो दुनिया के शक्तिशाली देशों के दायरे से अरसे से अछूता रहा है, यह बात और है कि किसी ज़माने में हमारे देश का दूसरा नाम ‘सोने की चिड़िया’ विश्व में शंखनाद करता था। जिस देश का कोहिनूर सदियों से...
Continue reading...किताबें झांकती हैं बंद अलमारी के शीशों से……
एक दौर वह था, जब हमारी सबसे अच्छी मित्र हुआ करती थीं किताबें, जब किताबों से नाता हमारे दिलों में बसता था, जिनसे अब नाता पुराना हो गया है, या यूँ कहें कि नाता ही नहीं रहा। एक समय था जब लोग किताबों की खोज में पुस्तकालयों और बाजारों का सफर किया करते थे। नई पुस्तकों की खुशबू, उनकी परतों...
Continue reading...अब कम उम्र के लोगों को कैंसर की चपत
कम उम्र के लोगों को तेजी से अपना शिकार बना रहा कैंसर युवाओं को अपनी चपेट में लेने को उतारू- कैंसर मेरे एक परिचित हैं रोहन, पिछले साल उनमें अचानक तेज पेट दर्द की समस्या पनपने लगी। इसे सामान्य समस्या समझकर उन्होंने प्रारंभिक उपचार के लिए डॉक्टर से सलाह ली। डॉक्टर ने संबंधित जाँचें लिख दी यह पता लगाने के...
Continue reading...अंग्रेजी का बढ़ता प्रचलन, दूर कर रहा हमें मातृभाषा से
क्या मातृभाषा को अनदेखा करना सही है? बात शुरू करता हूँ अंग्रेजी के बढ़ते प्रचलन से। आज सभी अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं। हमारे देश में अंग्रेजी का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। आजकल शिक्षा व्यवस्था खासतौर पर अंग्रेजी विद्यालयों में हिंदी का कोई विशेष महत्व नहीं है। तो क्षेत्रीय भाषा की बात ही कौन करे? इसकी वजह...
Continue reading...2030 के भारत को केंद्र में रखकर चुने गए 3 राज्यों के मुख्यमंत्री
2030 के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर हुआ एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों का चुनाव तीन राज्यों में हुए हालिया विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिले प्रचंड बहुमत ने आम जनमानस के साथ दोनों प्रमुख दलों को भी चौंकाने का काम किया, लेकिन इससे भी कहीं अधिक इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों के चुनाव ने सत्ता दल के दिग्गज नेताओं...
Continue reading...