शादी-ब्याह को चंगुल मानने लगी युवा पीढ़ी की बड़ी आबादी

A large population of the young generation has started considering marriage as a bondage.

विवाह एक खूबसूरत बंधन है, जहाँ सिर्फ दो व्यक्ति ही नहीं, बल्कि दो परिवार भी मिलते हैं। बेशक, यह एक नैतिक परंपरा रही है, लेकिन धीरे-धीरे नए दौर के बोझ तले दबती जा रही है। एक ऐसा नया दौर, जिसमें शादी का बंधन किसी कैद जैसा जान पड़ने लगा है। एक ऐसा नया दौर, जहाँ अपने ही हमसफर का कुछ कह मात्र देना सुई-सा चुभने लगा है। एक ऐसा नया दौर, जहाँ एकल परिवार और तो और अपने घर या शहर से कहीं दूर जाकर रहने वाला लड़का ढूँढा जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है एकल परिवार। पहले के समय में संयुक्त परिवार हुआ करते थे, तो बच्चे सबके साथ घुल-मिलकर रहने के गुण आपों-आप ही सीख जाया करते थे, ये परिवार अब चार लोगों में सिमट कर रह गए हैं। यही वजह है कि वे किसी के साथ भी सहज नहीं होते, और युवा होते-होते अकेले रहना और किसी से मेल-जॉल न बढ़ा पाना उनकी आदत बन चुकी होती है। 

एक अन्य समस्या यह है कि आजकल के युवा शादी और बच्चों के चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहते। उन्हें शादी अब सात जन्मों का पवित्र बंधन नहीं, बल्कि उम्रकैद की सज़ा लगने लगी है। एक रिपोर्ट की मानें तो, भारत में अविवाहित युवाओं का अनुपात लगातार बढ़ रहा है। साल 2011 में अविवाहित युवाओं की संख्या 17.2 फीसदी थी, जो 2019 में 23 फीसदी पहुँच गई। शादी न करने की सोच रखने वालों में से महिलाएँ भी पीछे नहीं हैं। 2011 में यह संख्या 13.5 फीसदी थीं, जो 2019 तक आते-आते 19.9 फीसदी हो गईं। इस प्रकार, देखें तो देश के एक चौथाई से ज्यादा युवा लड़के-लड़कियाँ शादी ही नहीं करना चाहते। 

लेकिन इस बात से भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि भारत जैसे देश की संस्कृति में, विवाह को लड़के और लड़की दोनों के लिए जरुरी माना जाता रहा है। किसी परिवार में यदि अविवाहित बेटे या बेटी हैं, तो वे परिवारों, रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच चर्चा का विषय बन जाते हैं, यह स्थिति सोचने पर मजबूर कर देती है और इसके कारणों को जानना बहुत जरूरी है।

वर्तमान में जैसे-जैसे लड़कियों की शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे वे शादी से दूर होती जा रही हैं। इसका एक मुख्य कारण है कि शादी के बाद लड़कियों की जिंदगी पूरी तरह से बदल जाती है। उनके पहनावे से लेकर उनकी पसंद के खाने तक, हर चीज़ में ससुराल और पति की मर्जी शामिल हो जाती है। सास चाहती है कि बहू उनके अनुसार रहे; उनके अनुसार कपड़े पहने; उनके अनुसार अपनी पसंद व नापसंद को तय करे। इसके साथ ही, कई बार बहू की नौकरी को लेकर भी ससुराल में खिटपिट लगी रहती है। ससुराल वाले चाहते हैं कि बहू नौकरी तो करे, लेकिन घर भी बिल्कुल वैसे ही संभाले, जैसे बाकी गृहणियाँ संभालती हैं। इन सबके बीच यदि बहू औसत वेतन पर कोई प्राइवेट नौकरी कर रही है और ससुराल वाले आर्थिक रूप से पहले से ही समृद्ध हैं, तो वे यह दबाव बनाने लगते हैं कि तुम्हे कमाने की क्या ज़रूरत है, हमारे घर पर किसी चीज़ की कमी नहीं है; नौकरी छोड़ दो।

अपने समाज में इस तरह की भावनाओं को बढ़ता देख ही शायद लड़कियों के मन में शादी को लेकर नकारात्मक भाव आ रहे हैं। अब वे पढ़ाई-लिखाई करके अपने करियर पर फोकस करने और अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने में यकीन रखती हैं। फिर एक सोच यह भी सामने आती है कि उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के बाद लड़कियाँ अपने योग्य लड़के की तलाश में रहती है, जिससे कि वे उनकी शिक्षा की महत्ता को समझें और नौकरी न करने के लिए दबाव न बनाएँ। फिर एक डर मन में यह होता है कि ससुराल वाले इस बात को न समझे तो? यही वजह है कि लड़कियाँ अपनी शादी को लेकर अब असमंजस में रहने लगी हैं।

वहीं, लड़कों की बात की जाए, तो लड़कों की भी शादी न करने की तादाद ज्यादा ही है। इनके भी कई कारण हैं, सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी और कम आय वाली नौकरी का होना है। मैंने अक्सर लड़कों को यह कहते हुए सुना है कि “शादी तो कर लेंगे, लेकिन खिलाएँगे क्या? पत्नी और बच्चों के खर्चे कैसे सँभालेंगे?” लगातार बढ़ रही बेरोजगारी और मँहगाई के चलते कम आय वाले व्यक्ति का अपने परिवार का भरण-पोषण, बीमारी और बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला पाना बेहद मुश्किल हो रहा है, जिसके चलते अधिकांश युवा अब किसी की जिम्मेदारी उठाना ही नहीं चाहते हैं।

हालाँकि, ऐसा नहीं है कि सभी लड़के, जो शादी नहीं करना चाहते हैं, वे आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं। इसका एक अन्य कारण पत्नी और अन्य पारिवारिक सदस्यों के बीच तालमेल न बिठा पाना भी है। शादी के बाद, लड़का पत्नी और अपने अन्य परिवार रूपी मोतियों के बीच एक डोर का कार्य करता है। किसी कारणवश यदि पत्नी व लड़के के परिवार वालों के बीच मतभेद होता है, तो लड़का बीच में घुन की तरह पिसता है। यदि लड़का अपनी पत्नी की तरफ बोले, तो घरवाले उसे ‘ज़ोरू का गुलाम’ कहते हैं, और परिवार की तरफ बोले, तो पत्नी नाराज़ हो जाती है। कई बार इस स्थिति को संभाल पाना एक लड़के के लिए बहुत ही मुश्किल हो जाता है।

इसके अलावा, यह भी सच है कि आज के माहौल में पश्चिमी सभ्यता का असर काफी अधिक बढ़ गया है, जिसके चलते युवा शादी के बंधन में बंधने के बजाए डेटिंग और लिव इन रिलेशनशिप्स को पसंद कर रहे हैं। वहीं, कुछ युवाओं का मानना है कि आज के समय में अपनी भावनात्मक और शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जरुरी नहीं है कि शादी की ही जाए। फिर अब तो रुझान ऐसे होने लगे हैं कि एक व्यक्ति के एक से अधिक रिलेशनशिप्स होने लगे हैं। ऐसे रुझानों के पथ पर चलने वाले युवा यह मानते हैं कि शादी के बाद इसकी स्वतंत्रता उनके हाथों से छीन जाएगी। यह भी बड़ा कारण है कि वे बिना शादी के खुश हैं और अपना जीवन अपने अंदाज में जीना चाहते हैं।  

एक तथ्य यह भी है कि आज के समय में युवा लड़के-लड़कियाँ अपने अधिकारों को लेकर अधिक मुखर हो गए हैं। लड़कियों में भी अब पुराने ज़माने की महिलाओं की तरह सहनशीलता नहीं है। पति परमेश्वर होता है, अब वे इस सोच से मुक्त हो चुकी हैं। आज वे पति के बराबर कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं, उसकी तरह कमा रही हैं, तो उसके बराबर सम्मान की भी उम्मीद करती हैं, जिसके चलते कई बार दोनों के अहम् का टकराव हो जाता है और रिश्तों पर दरार पड़ने लग जाती है। वहीं, लड़के भी शादी के बाद अचानक से होने वाली रोक-टोक, पूछताछ और ज़िम्मेदारी के बोझ को झेल नहीं पाते हैं। इन्हीं सब कारणों से समाज में विवाह टूटने के मामले तेजी से बढ़े हैं, जो अविवाहित युवाओं के मन में विवाह को लेकर संदेह पैदा कर देते हैं।

एक जरूरी बात यह भी है कि सभी शादियाँ खराब नहीं होती हैं। एक गलत शादी यदि जिंदगी बर्बाद करती है, तो एक सही जीवनसाथी मिलने पर जिंदगी बेहतरीन भी बन जाती है।

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