छाते की छत्रछाया

Canopy of Umbrella

किसी को झड़ी से रोका, तो किसी की छड़ी बन गया..

मैं बात कर रहा हूँ छाते की.. 4 हजार बरस पहले छाते की खोज करने वाले व्यक्ति ने भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन यह मौसम की मार से लोगों को बचाने का काम इतनी शालीनता से करेगा। मेरे कहने का अर्थ यह है कि एक छोटा-सा आविष्कार कई रूपों में लोगों के काम आता है, कभी वह बरसते पानी से सुरक्षा देता है, तो कभी तपती धूप से राहत, कभी किसी के बुढ़ापे की लाठी बन जाता है, तो कभी शासन और सम्मान का प्रतीक। छाते की पहचान ही यही है कि जिसके हाथ में होता है, उसे सम्मान ही देता है।

मिस्र, अश्शूर, ग्रीस और चीन की प्राचीन कला और कलाकृतियों में छतरियों के सबूत मौजूद हैं। इसका उल्लेख पुराने समय के भित्ति चित्रों तथा अनेक इमारतों के भीतर अंकित चित्रों से मिलता है। प्रकृति की नीली छतरी की छत्रछाया में ही ये दुनिया गुजर-बसर कर रही है। यूँ ही नहीं ईश्वर को नीली छतरी वाला कहा जाता है।

इन प्राचीन छतरियों या पैरासोल को पहले धूप से छाया प्रदान करने के उद्देश्य से उपयोग में लिया जाता था। पुराने ज़माने की महिलाओं के लिए ये छाते आज के मॉडर्न ज़माने के सनस्क्रीन का काम किया करते थे। फिर इस पर मोम की परत चढ़ाकर प्राचीन चीन के लोग बारिश से बचाव के रूप में इसका उपयोग करने लगे। इसकी उपयोगिता यहीं आकर नहीं रुकी, इस छाते ने किसी को झड़ी से रोका, तो किसी के लिए छड़ी बन गया.. दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाने वाले चार्ली चैपलिन तो आपको याद होंगे ही, अब जब वे याद हैं, तो उनके टूल्स भी जरूर याद होंगे। काली टोपी, छड़ी और छाता। उनकी कॉमेडी में छाते के तड़के ने छाते को एक अलग ही छत्रछाया सौगात में दे दी।

मशहूर कॉमेडियन चार्ली के इस लुक पर बॉलीवुड ने भी खूब प्यार बरसाया.. श्री 420 फिल्म याद है? सन् 1955 में आई इस फिल्म का गाना ‘प्यार हुआ, इकरार हुआ’ आज 68 साल बाद भी उतना ही मशहूर है। चार्ली चैपलिन के अंदाज़ में नरगिस के साथ राज कपूर ने इस गाने की शुरुआत में एक छाते के नीचे अपने प्यार का इज़हार करते हुए एक नए दौर की झड़ी लगा दी.. इससे शेयरिंग की प्रवृत्ति को खासा बढ़ावा मिला। दो लोग एक छाते के नीचे दिखाई देने लगे, खास तौर पर प्रेमी जोड़े..

राजा-महाराजाओं के समय में तो छाते की अलग ही शान-ओ-शौकत हुआ करती थी। यह वह समय था, जब छाते को शासन और सम्मान का प्रतीक माने जाना लगा। राजा-महाराजाओं के लिए बड़े-बड़े छत्र उपयोग में लाए जाते थे, जिनमें सोने-चाँदी और मोतियों की कलाकारी के साथ ही हीरे-जवाहरात जड़े होते थे। फिर जब वे नगर भ्रमण पर निकलते थे तो मखमल के छत्र उनकी शान में साथ-साथ परेड करते थे। कहने का अर्थ यह है कि पुराने समय में धनी लोग ही छाते का उपयोग करते दिखाई देते थे। भगवान के मंदिरों में भी इन छातों ने छत्र के रूप में अपनी महत्ता को कायम रखा है। मुख्य तौर पर चाँदी से बने हुए ये छात्र मंदिरों की खूब शोभा बढ़ाते हैं।

दिन बदल गए, दुनिया बदल गई, लेकिन छाते की बनावट और महत्ता आज भी ज्यों की त्यों है। तरीका वही है, आकर वही है, नए ज़माने के अनुरूप नई-नई तकनीकें छातों में जोड़ी जाने लगी हैं। उजाले के लिए अंदर लगी छोटी-छोटी एलईडी, हवा के लिए छोटे-छोटे पंखे मॉडर्न छातों के रूप में पहचाने जाने लगे हैं। साज-सज्जा की तो क्या ही बात कहूँ, छाते यहाँ भी पीछे नहीं रहे हैं। राजस्थान की विशेष कलाकारी में हाथी-घोड़े आदि की प्रिंट के साथ बनाए गए छोटे-छोटे रंग-बिरंगे छाते आजकल महफिलों की खूब शान बढ़ा रहे हैं। शादियों में सजावट के लिए छातों का बड़े ही चाव से इस्तेमाल किया जाने लगा है। इसका कारण यह है कि इसकी साज-सज्जा करते ही शाही लुक अपने आप दिखने लगता है।

रोल्स रॉयस के टेलर मैड छाते की भी क्या ही बात की जाए, लगभग 52 हजार रुपए की कीमत वाला यह छाता अमीर छतों की बिरादरी में आता है। हालाँकि, 150 रुपए वाला छाता भी वही काम करता है, जो महँगा करता है। शान से अलग बात करें, तो इसका मोल नहीं, महत्ता अधिक काम की है।

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