Atul Malikram Samajsevi

शादी-ब्याह को चंगुल मानने लगी युवा पीढ़ी की बड़ी आबादी

A large population of the young generation has started considering marriage as a bondage.

विवाह एक खूबसूरत बंधन है, जहाँ सिर्फ दो व्यक्ति ही नहीं, बल्कि दो परिवार भी मिलते हैं। बेशक, यह एक नैतिक परंपरा रही है, लेकिन धीरे-धीरे नए दौर के बोझ तले दबती जा रही है। एक ऐसा नया दौर, जिसमें शादी का बंधन किसी कैद जैसा जान पड़ने लगा है। एक ऐसा नया दौर, जहाँ अपने ही हमसफर का कुछ...

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अब कम उम्र के लोगों को कैंसर की चपत

Now young people are at risk of cancer

कम उम्र के लोगों को तेजी से अपना शिकार बना रहा कैंसर  युवाओं को अपनी चपेट में लेने को उतारू- कैंसर  मेरे एक परिचित हैं रोहन, पिछले साल उनमें अचानक तेज पेट दर्द की समस्या पनपने लगी। इसे सामान्य समस्या समझकर उन्होंने प्रारंभिक उपचार के लिए डॉक्टर से सलाह ली। डॉक्टर ने संबंधित जाँचें लिख दी यह पता लगाने के...

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कल्चर, कनेक्शन और क्रेडिबिलिटी: भारत में रीजनल पीआर के लिए सफलता के पिलर्स

Culture, Connection and Credibility: Pillars of Success for Regional PR in India

आज की परस्पर जुड़ी दुनिया में, प्रभावी पब्लिक रिलेशन्स की महत्ता पहले से कहीं अधिक है, खासकर तब, जब बात भारत के विविध और जीवंत बाजार को नेविगेट करने की आती है। सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भारत में किसी भी पीआर कैंपेन की सफलता कल्चर (संस्कृति), कनेक्शन (संपर्क) और क्रेडिबिलिटी (विश्वसनीयता) की तिकड़ी में महारत हासिल करने पर निर्भर करती...

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सिर्फ पैसे वाले लोग ही दान कर सकते हैं, यह जरुरी तो नहीं..

Only people with money can donate, it is not necessary..

वेद, उपनिषद, पुराण और स्मृति, दान के महत्व पर विशेष तौर पर ज़ोर देते हैं। अथर्ववेद सौ हाथों से बटोरने और हजार हाथों से देने का आह्वान करता है। पहले के समय में, दान की अवधारणा को जीवन पर्यन्त ज़रूरतमंदों के काम आने के रूप में देखा जाता था। हालाँकि, दान की वास्तविक परिभाषा और महत्व को लेकर लोगों में...

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काला अक्षर इंसान बराबर…..

Black letter equals human...

कल शाम खुद के साथ समय बीता रहा था, तो मन में ख्याल मुहावरों के आने लगे, जिनका उपयोग हम इंसान अक्सर अपनी बात का वजन बढ़ाने के लिए किया करते हैं। एकाएक ही मन अलग दिशा में चला गया कि इंसान अपनी बात को मजबूत करने के लिए बेज़ुबान तक को भी नहीं छोड़ता है। ऐसे हजारों मुहावरे भरे...

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कितना सच्चा? कितना झूठा?

How true? such a liar?

वैसे तो भगवान ने मनुष्य को बड़े ही सोच समझकर बनाया है या यूँ कहें कि धरती पर बाकी प्राणियों से हटकर ज्यादा ही बुद्धि और विवेक दिया है। लेकिन क्या सही मायनों में मनुष्य इस बुद्धि विवेक का इस्तेमाल करता भी है? सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया गया विवेक, क्या समाज और उसके खुद के लिए सही...

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कैसा हो? यदि आपको दो वक्त की रोटी न मिले…..

how are you? If you don't get bread twice a day...

“बेज़ुबान हैं, तो क्या हुआ, प्यास तो उन्हें भी लगती है” ज़रा सोचिए, आपको बहुत तेज़ भूख लगी हो, और आपको खाने के लिए दिन भर कुछ भी न मिले। गर्मी के मौसम में तपती धूप में बैठा दिया जाए, और प्यास से तड़पने के बावजूद कई दिनों तक पीने के लिए पानी न दिया जाए। क्या हुआ? किस सोच...

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जरुरी नहीं है कि आपकी प्रबलता हर जगह काम आए

It is not necessary that your strength works everywhere.

इंसान को कई बार घमंड हो चलता है, कभी अपने रुतबे का, तो कभी अपने इंसान ही होने का। वह अक्सर दुनिया में रहने वाले सभी प्राणियों को खुद से कम ही आँकता है। मैं आज तक नहीं जान पाया कि भला इसके पीछे वास्तव में कारण क्या है? क्या यह इंसान को मिली बोली है, जो उसके घमंड का...

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क्या ऑनलाइन शिक्षा, स्कूल की कक्षा से बेहतर विकल्प हो सकता है?

Can online education be a better option than school classes?

स्कूल की कक्षा यानि विद्यालयीन शिक्षा सर्वश्रेष्ठ है, जो अब लुप्त होने के कगार पर दिखाई दे रही है। कहीं यह हमारे समाज की सबसे बड़ी भूलों में से एक न बन जाए। पारंपरिक शिक्षा में एक निश्चित कार्यक्रम, परस्पर संचार और सख्त अनुशासन छात्रों का सटीक मार्गदर्शन करते हैं। पूरी तरह से शिक्षा ग्रहण एवं उसे कैसे आचार-विचार में...

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यदि अब भी नहीं, तो आखिर कब?

If not now, then when?

रतन टाटा को भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित करना, क्या भूल चुका है देश? 85 वर्षीय बिज़नेस टाइकून- रतन टाटा, जिन्होंने बार-बार स्वयं को महज़ एक उद्योगपति से कहीं अधिक साबित किया है, उन्हें कभी वह तवज्जो नहीं दी गई, जिसके वे वास्तव में हकदार हैं। रतन टाटा उस हर एक भारतीय के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं, जो अपने जीवन...

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