अब कम उम्र के लोगों को कैंसर की चपत

Now young people are at risk of cancer

कम उम्र के लोगों को तेजी से अपना शिकार बना रहा कैंसर 

युवाओं को अपनी चपेट में लेने को उतारू- कैंसर 

मेरे एक परिचित हैं रोहन, पिछले साल उनमें अचानक तेज पेट दर्द की समस्या पनपने लगी। इसे सामान्य समस्या समझकर उन्होंने प्रारंभिक उपचार के लिए डॉक्टर से सलाह ली। डॉक्टर ने संबंधित जाँचें लिख दी यह पता लगाने के लिए कि कहीं पेट में ट्यूमर तो नहीं पनप रहा है। यह पहली बार था, जब जाँचों के बारे में सोचकर ही वे कुछ असहज हो गए, लेकिन फिर भी ट्यूमर या कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का ख्याल भी उन्होंने अपने दिमाग में नहीं आने दिया। भीतर से जीव बेशक खाए जा रहा था, लेकिन रोहन ने बाहर किसी को अपनी चिंता का एहसास भी नहीं होने दिया और अपनी दिनचर्या को हमेशा की तरह बरकरार रखा। दो दिन बाद ब्लड और अन्य टेस्ट्स की रिपोर्ट आई, बस फिर क्या, रोहन का सब कुछ जैसे खत्म हो गया। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि वे आँतों के कैंसर से जूझ रहे हैं और यह अपने उन्नत चरण में आ चुका है, जो उनके लिवर तक फैल गया था।

रोहन एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो एक मल्टीनेशनल कॉर्पोरेशन में नौकरी करते हुए बेहद व्यस्त दिनचर्या का अनुसरण करते हैं और अपने करियर के प्रति बेहद समर्पित युवाओं में से एक हैं। करियर को लक्ष्य मानते हुए वे अपने जीवन में लगातार आगे बढ़ रहे थे। सुनियोजित योजनाओं में 23 की उम्र में नौकरी, 30 की उम्र में शादी, 35 की उम्र में बच्चे और एक उच्च स्तर के जीवन के साथ 60 की उम्र में रिटायरमेंट हो जाएगा, उन्हें लगता था कि जीवन कुशलता से आगे बढ़ता जाएगा। लेकिन, कहते हैं न कि जो आपको मंजूर हो, वही नियति को भी मंजूर हो, जरुरी नहीं। 28 वर्ष की उम्र में शरीर में कैंसर का विकसित होना कुछ ऐसा महसूस हुआ, जैसे मुट्ठी से जीवन रुपी रेत पूरी की पूरी ही फिसल गई हो। बेशक, यह जानलेवा बीमारी उनके निर्धारित भविष्य का कतई हिस्सा नहीं थी। जीवन में आने वाली तमाम चुनौतियों का डटकर सामना करने का हुनर रखने वाले उस शख्स को महज़ एक बीमारी ने भीतर तक चूर-चूर कर दिया। उसने खुद को भाग्य की ऐसी कसौटी में उलझा हुआ पाया, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

यह कहानी एक रोहन की नहीं है। ऐसे लाखों रोहन हैं, जो तेजी से इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। हाल के वर्षों में, युवा लोगों में कैंसर के विकसित होने की घटनाओं में चिंताजनक और उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली है। परंपरागत रूप से इसे बढ़ती उम्र में होने वाली बीमारी माना जाता था, लेकिन वर्तमान समय में जिस प्रकार यह युवा आबादी को अपना शिकार बना रही है, ऐसे में यह गंभीर चिंता का विषय बन बैठी है। शोधकर्ता निरंतर रूप से युवाओं में इसके व्यापक रूप से पनपने के मूल कारणों की जाँच कर रहे हैं। हालाँकि, इस बीमारी के शरीर में पनपने के कई कारण हैं, लेकिन एक करीबी जाँच से कैंसर की दर में वृद्धि में पर्यावरण, जीवन शैली और आहार संबंधी कारकों के बीच एक चिंताजनक संबंध का पता चलता है। कैंसर की सबसे बड़ी वजहों में धूम्रपान, तंबाकू और शराब का सेवन, मोटापा, शरीर में पोषक तत्वों और फिजिकल एक्टिविटीज़ की कमी शामिल है।

यह स्पष्ट है कि नई पीढ़ी सबसे बेहतर जीवन शैली की होड़ में लगी हुई है। यह सबसे बड़े कारणों में से एक है कि हाल के वर्षों में, युवाओं में धूम्रपान की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। हम मानें या न मानें, लेकिन यह भविष्य के लिए खतरे का स्पष्ट सूचक है। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि यह उन युवाओं को भी अपने घेरे में ले रहा है, जो धूम्रपान से परहेज करते हैं। वातावरण में धूम्रपान का आवरण इस कदर बढ़ रहा है कि इसमें शामिल न होने के बावजूद वे छोटी उम्र से ही खुद को सिगरेट आदि के धुएँ और प्रदूषण में घिरा हुआ पाते हैं। 

वायु प्रदूषण और सिगेरट के धुएँ की खतरनाक जोड़ी के अलावा, अन्य असंख्य कारक युवा व्यक्तियों के शरीर को कैंसर का घर करने में योगदान करते हैं। हमारी आधुनिक जीवनशैली में अत्यधिक शराब का सेवन, नींद की कमी, धूम्रपान, मोटापा और अत्यधिक प्रोसेस्ड फूड्स का सेवन जैसी आदतें शामिल हैं, जो जाने-अनजाने में कैंसर के शुरुआती लक्षणों के पनपने का कारण बनती हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि आज के युवाओं को तुलनात्मक रूप से नींद काफी कम मिल रही है। लम्बे समय तक इसकी निरंतरता न सिर्फ जीवन में कई तरह की परिशानियों, बल्कि शुरुआती कैंसर में वृद्धि करने का कारण भी बनती है। शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि समाज में प्रचलित पश्चिमी भोजन और जीवनशैली कैंसर के शुरुआती लक्षणों को तेजी से बढ़ाती है, जिसमें अब भी बदलाव न लाया गया, तो बहुत देर हो जाएगी।

रोगप्रतिरोधक क्षमता कम करने वाली दवाइयों और रसायनों का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। महानगरों में इसकी अधिकता है, क्योंकि यहाँ प्रकृति के साथ हर दिन छेड़छाड़ की जा रही है। अधिक मुनाफे के चक्कर में लोगों के शरीर में जहर उतारा जा रहा है। खाद्य पदार्थों आदि में भारी मात्रा में मिलावट हो रही है। इसी मिलावट का परिणाम है कि कैंसर रोगी दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। आज कैमिकल्स का प्रयोग करके चंद दिनों में ही सब्जियाँ पकाई जा रहे हैं। सब्जियों की पैदावार से लेकर पकाने तक में कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है। इसके अलावा, बचता है पानी और मिट्टी, सो हमनें उन्हें भी प्रदूषित कर दिया है। इंडस्ट्री का गंदा पानी नदियों में छोड़ा जा रहा है, वही पानी बिना ट्रीटमेंट के लोगों के घरों तक पहुँच रहा है। लोगों के शरीर और बालों को नुकसान पहुँचाते हुए इस जहरीले पानी का सीधा प्रभाव लोगों की पाचन शक्ति और प्रजनन शक्ति पर पड़ता है। ये विषाक्त पदार्थ आने वाली पीढ़ियों में जन्म के समय से ही शामिल रहते हैं और वे जन्मजात विकृत पैदा हो रहे हैं। बेशक, आज जन्म दर बढ़ी है, लेकिन इन कारणों से मृत्यु दर भी बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है।

हमारे पर्यावरण में प्रदूषण का बढ़ता स्तर एक ‘साइलेंट किलर’ का भयानक रूप ले रहा है, जो न सिर्फ हमारी युवा पीढ़ी के स्वास्थ्य, बल्कि उनके भविष्य को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। यह जोखिम उनकी तत्काल जीवनशैली को ही नहीं दबोच रहा है, बल्कि धूम्रपान से जुड़े खतरों को भी बुरी तरह बढ़ावा दे रहा है, जिससे कैंसर का शिकार होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। यह एक मूक खतरा है, जो हमारे युवाओं के बेहतर स्वास्थ्य को गंभीरता से लेने और इस पर तत्काल ध्यान देने और निर्णायक कार्रवाई करने की माँग करता है।

भारत में, हर वर्ष 16 लाख नए कैंसर के मामले सामने आते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के शोधकर्ताओं ने पाया कि कणीय वायु प्रदूषण के उच्च स्तर वाले क्षेत्र में रहने से स्तन कैंसर की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। उच्च प्रदूषक जोखिम वाले क्षेत्रों में रहने से स्तन कैंसर की घटनाओं में 8% की वृद्धि हुई है। हालाँकि यह अपेक्षाकृत मामूली वृद्धि है, लेकिन ये निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वायु प्रदूषण एक सर्वव्यापी जोखिम है, जिससे सभी प्राणी प्रभावित होते हैं। 

पंजाब के फाजिल्का के अबोहर शहर के एक क्षेत्र को ‘कैंसर स्ट्रीट’ के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहाँ के रहवासी बड़ी संख्या में कैंसर से पीड़ित हैं। गौंसपुर, चूड़ीवाला, धारंगवाला और बुर्जमोहर जैसे गाँवों में भी कैंसर से होने वाली मौतों का आँकड़ा काफी अधिक है। इतना ही नहीं, यहाँ के लोगों में गंभीर त्वचा व दाँतों की समस्या और बच्चों में बौद्धिक विकलांगता जैसी बीमारियाँ भी बहुत सामान्य हैं। उन क्षेत्रों के लोगों में भी कैंसर का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है, जहाँ कारखानें काफी अधिक संख्या में हैं। इसी के अनुसार, दूसरा उदाहरण छपरौला औद्योगिक क्षेत्र का है। ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश) में छपरौला औद्योगिक क्षेत्र के आसपास के कम से कम पाँच गाँवों में विगत पाँच वर्षों में असामान्य रूप से बड़ी संख्या में कैंसर के मामले सामने आए हैं। इन गाँवों में सादोपुर, अच्छेजा, सादुल्लापुर, बिश्नूली और खेड़ाधरमपुरा के नाम शामिल हैं, जो दिल्ली से लगभग 30 किमी दूर एक ग्रामीण इलाका है।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च का कहना है कि 2025 तक कैंसर के मामलों में 12.7 की वृद्धि हो सकती है। वहीं, टाटा मेडिकल सेंटर का एक अध्ययन स्पष्ट करता है कि भारत में प्रत्येक 20 वर्ष में कैंसर के मामले दोगुने हो रहे हैं। अध्ययन में बताया गया है कि वर्ष 2018 में कैंसर के साढ़े ग्यारह (11.5) लाख मामले सामने आए थे और आशंका है कि वर्ष 2040 में इनकी संख्या दोगुनी हो जाएगी। इससे पहले 1999 से 2016 के बीच भी भारत में कैंसर के कुछ ऐसे ही रुझान देखने को मिले थे। इन 26 वर्षों में भी भारत में कैंसर से मरने वाले मरीजों की संख्या तकरीबन दोगुनी हुई है। उपाय के रूप में यदि सरकार धूम्रपान और तंबाकू के सेवन को प्रतिबंधित कर देती है, तो लोगों की औसत आयु तकरीबन 10 वर्ष और बढ़ सकती है।

युवाओं में कैंसर की बढ़ती संख्या पर तत्काल ध्यान देना और ठोस प्रयास करना समय की माँग है। एक समग्र दृष्टिकोण पर काम करना बहुत जरुरी है, जिसमें वायु प्रदूषण को कम करने, धूम्रपान मुक्त वातावरण को बढ़ावा देने, स्वस्थ जीवन शैली को प्रोत्साहित करने और आधुनिक आहार संबंधी आदतों और अपर्याप्त नींद से जुड़े खतरनाक जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उपाय शामिल हैं। इसके माध्यम से, हम सामूहिक रूप से युवा पीढ़ी के लिए एक स्वस्थ वातावरण स्थापित करने का प्रयास कर सकते हैं, जिससे शुरुआती कैंसर के मामलों पर रोक लगाई जा सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज हमारे द्वारा उठाए गए कदम हमारी आने वाली पीढ़ियों की भलाई का कारण बनेंगे।

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