मुद्दा नजरिए का है, गलत वो भी नहीं, गलत हम भी नहीं..

The issue is of perspective, he is not wrong, we are also not wrong.

“यह छह है, अरे नहीं, नहीं यह नौ है.. अरे भई! साफ दिखाई दे रहा है यह छह है.. नहीं, यह नौ है, तुम मेरी जगह पर आकर देखो..”

इस दुनिया में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के पास अपना मस्तिष्क है, तो स्वाभाविक-सी बात है कि हर एक व्यक्ति एक अलग सोच और स्वतंत्र विचार भी रखता है। इस बात से भी मुकरा नहीं जा सकता है कि जीवन का हर एक क्षण हमें नए दृष्टिकोण और अनुभवों के साथ मिलता है। हर किसी का अपना व्यक्तिगत नजरिया होता है, जिससे वह अपने आस-पास की दुनिया को देखता है। इसी दृष्टिकोण की वजह से जीवन एक रंगीन चित्र बन जाता है, जिसमें हर रंग अपनी अलग और महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जैसा कि मैंने शुरुआत में कहा, अपनी-अपनी जगह सब सही होते हैं। जहाँ एक व्यक्ति की जगह से एक अंक छह दिखता है, वही सामने वाले व्यक्ति को उसकी जगह से वही अंक नौ दिखता है। दोनों ही व्यक्ति अपनी-अपनी स्थिति में सही हैं। लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि हम सही हैं, तो सामने वाला गलत ही होगा। कई बार हम सामने वाले की बात ही नहीं सुनते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि हम सही हैं। सामने वाला भी अपनी जगह सही हो सकता है, इस तलक तो हम कभी सोच ही नहीं पाते हैं। यदि सामने वाले की पूरी बात सुनने का गुण आप में है, तो बेशक आप एक समझदार इंसान हैं।

जब आप उस व्यक्ति के दृष्टिकोण से देखेंगे, तो वाकई उपरोक्त अंक नौ ही दिखाई देगा। लेकिन, हम यहाँ भी संतुष्ट नहीं होते हैं, क्योंकि हमारे दृष्टिकोण से तो वह अंक छह ही दिखाई दे रहा था। मसला सिर्फ और सिर्फ खुद को सही साबित करने का है। यह हमें सिखाता है कि दो लोग एक ही समस्या को दो अलग-अलग दृष्टिकोण से देख सकते हैं और उनका नजरिया भी बिलकुल अलग हो सकता है। इससे हमें यह भी सिखने को मिलता है कि जब हम किसी समस्या का समाधान ढूँढ रहे होते हैं, तो हमें सिर्फ अपने दृष्टिकोण को ही नहीं, बल्कि दूसरों के नजरिए को भी महत्व देना चाहिए। यह समृद्धि और सामंजस्य ही सफलता की कूँजी हैं।

कई बार ऐसी स्थिति सामने आती है, जिसमें ऐसा महसूस होता है, जैसे हमें वह तवज्जो नहीं मिल रही, जो वास्तव में मिलना चाहिए, या फिर हमारी बात, हमारी सलाह या हमारे मतों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। घर-परिवार, समाज, दफ्तर आदि ऐसे कई स्थान होते हैं, जहाँ हम ऐसा महसूस करने को मजबूर हो जाते हैं। इसमें कमी हम में या सामने वाले में नहीं है, यहाँ नजरिया प्रखरता पर आ जाता है। हो सकता है कि अलग दृष्टिकोण की वजह से उस स्थिति विशेष में हमारे विचार मेल नहीं खा रहे हों।

कुल मिलाकर, हर किसी का अपना व्यक्तिगत दृष्टिकोण होने के कारण हमें कभी-कभी लग सकता है कि दुनिया हमारे साथ नहीं है, हमारा समर्थन नहीं कर रही है। लेकिन यह याद रखना भी महत्वपूर्ण है कि हर किसी की अपनी-अपनी प्राथमिकताएँ और मुद्दे होते हैं। गलत वे भी नहीं हैं, और गलत हम भी नहीं हैं। हमारा दृष्टिकोण हमारे अनुभवों, शिक्षाओं और सीखों का परिणाम होता है। लेकिन कभी-कभी हम अपने आत्मविश्वास को खो बैठते हैं, क्योंकि हमारा ही दृष्टिकोण हमें दूसरों से मिलने वाली प्रतिक्रियाओं का सामना करवा सकता है। लेकिन, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि हम सभी अलग-अलग हैं, हमारे विचार अलग-अलग हैं, हमें अपने स्वयं के मूल्यों को समझने के लिए उचित समय लेना चाहिए।

अपने-अपने नजरिए के साथ चलकर हम आत्म-समर्पण, सहानुभूति और समझदारी की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। हमें यह सीखना होगा कि दूसरों की बातें सुनना भी महत्वपूर्ण है और उन्हें समझने की कोशिश करना भी। जब हम अपने दृष्टिकोण को समझते हैं और अपनी शक्तियों को सही दिशा में ले जाते हैं, तो हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल हो सकते हैं। वहीं जब हम दूसरों के दृष्टिकोण और विचारों को सुनने का हुनर रखते हैं, तो उस स्थिति में हमारी सफलता सिर्फ हमारी ही नहीं रह जाती है, हम उस शख्स को भी सफल बना देते हैं, जिसके विचार हमने बिना उसे रोके-टोके शांतिपूर्वक सुने। विश्वास कीजिए, यह प्रक्रिया महज़ सफलता से कहीं अधिक है, क्योंकि इसके बाद उस शख्स की नजरों में आपके लिए मान-सम्मान कई गुना बढ़ जाएगा, जिसकी आपको खबर भी नहीं होगी। 

सबका अपना-अपना नजरिया है, और हमें यह समझना चाहिए कि जैसे हम महत्वपूर्ण हैं, हमारी बातें महत्वपूर्ण हैं, ठीक वैसे ही सामने वाला और उसकी बातें भी महत्वपूर्ण हैं। इसलिए हमें चाहिए कि हम एक-दूसरे का समर्थन करने की ललक खुद में लाएँ और एक सकारात्मक बदलाव की अलख जगाएँ, क्योंकि हम सभी अपने जीवन की यात्रा में एक-दूसरे के साथी हैं, जो इस यात्रा में एक-दूसरे के साथ चल रहे हैं।

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