लम्बे समय से यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि भारत में जेलों की स्थिति उस स्तर की नहीं है, जो कि वास्तव में होना चाहिए। दरअसल, विगत कुछ वर्षों में देश की जेलों की हालत बद से बदतर हो गई है। मानवाधिकारों और कानून के शासन को महत्व देने वाले समाज के लिए जेलों की बदतर स्थिति एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। हालाँकि, यह सच है कि जेलों को सुरक्षित और मानवीय कैद के स्थान सुनिश्चित करना सरकारों की जिम्मेदारी है।
लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि शासन इसे कायम रख पाने में विफल रहा है। काफी समय से सरकार और अधिकारियों के सामने इस मुद्दे को उठाया जा रहा है, लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि सरकार इस मामले से आँखें मूंद कर बैठी है।
जेल और कारागार आपराधिक न्याय प्रणाली के आवश्यक घटक हैं। वे प्रभावी ढंग और सुरक्षित रूप से काम कर रहे हैं, यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है। लेकिन भारतीय जेलें अब कतई सुरक्षित नहीं रही हैं। ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े हैं, जहाँ यह साबित हुआ है। जेल का उद्देश्य समाज में अपराधों को कम करना, अपराधी को वैध रूप से दंडित करना और उसे ऐसा नागरिक बनाना है, जो कानून व इसके नियमों का पालन करे। लेकिन बाहर की क्या ही बात करें, जब विगत कुछ वर्षों में जेल के भीतर ही अपराध की दर तेज रफ्तार से बढ़ रही है। जेलों और जेलों की स्थितियों को लेकर मुख्य चिंताओं में भीड़भाड़, विचाराधीन कैदियों की लंबी हिरासत, अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल, और शैक्षिक व आश्रय तक पहुँच की कमी आदि शामिल हैं। लेकिन ऐसा लगता है, जैसे अधिकारी इन मुद्दों से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं।
कई लोग धन से सक्षम न होने की वजह से वकीलों आदि का खर्चा नहीं उठा पाते हैं, जिसकी वजह से उनकी पेशियाँ टलती जाती हैं। इस बिंदु पर बंदियों को रिमांड कोर्ट के रूप में जाना जाता है। चूँकि, भारत में जेलों और पुलिस लॉक-अप में बंद तमाम कैदियों में से अधिकांश पर कानूनी सहायता के अभाव में मुकदमा नहीं चलाया जाता है, यहाँ तक कि कोशिश भी नहीं की जाती है।
ऐसे में मुकदमे के बिंदु तक कानूनी सहायता की अनुपस्थिति देश के गरीबों के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व की प्रणाली के मूल्य को बहुत कम कर देती है। इनमें से कई बंदी निर्दोष हैं या छोटे अपराधी हैं, लेकिन उन्हें बड़े अपराधियों या सीरियल अपराधियों के समान ही दंडित किया जाता है, जिन्होंने भयानक अपराध किए हैं।
वे शारीरिक और मानसिक दुर्व्यवहारों, हिंसक प्रकरणों और यातनाओं का सामना करने को मजबूर हैं। एक तथ्य यह भी है कि अक्सर उन्हें भीड़-भाड़ वाली सेलों में रखा जाता है, जहाँ स्वच्छता सुविधाएँ सबसे प्राथमिक होती हैं, लेकिन मिलती नहीं हैं। इतना ही नहीं, सभी कैदियों को एक साथ एक ही छत के नीचे रखा जाता है। बेहद खतरनाक अपराधियों, मास्टरमाइंड और बाकी कैदियों के साथ रहते हुए उनकी तरह ही हरकतें, सोच और व्यवहार करने लगते हैं। यहाँ तक कि बच्चों और महिलाओं के पुनर्वास केंद्र की स्थिति भी बेहद दयनीय है। उनके लिए हर एक दिन नई चुनौती से भरा है।
कोई भी जन्म से अपराधी नहीं होता है। बुरी परिस्थितियाँ उन्हें अपराधी बना देती हैं। मनुष्य जिस वातावरण में रहता है, उसी के अनुसार खुद को ढाल लेता है। आप जेल के कैदियों से कानून का पालन करने और न्याय में विश्वास करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं, जब न्यायपालिका ही उन्हें विफल कर चुकी है? अमानवीय व्यवहार के शिकार होने के बाद वे एक सामान्य इंसान के रूप में बाहर कैसे निकल सकते हैं? जेलों और कारागारों में सुधार करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने और न्याय को बढ़ावा देने के लिए यह आवश्यक है कि न्यायपालिका को एक सुरक्षित समुदाय बनाने के बारे में याद दिलाया जाए, और चूँकि कैदी भी इंसान हैं और हमारे समाज का हिस्सा हैं, इसलिए उन्हें एक सुरक्षित आश्रय प्रदान किया जाए। प्रभावी आश्रय सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों को चाहिए कि वे सुधारात्मक सुविधाओं को सुरक्षित बनाने के लिए एक ठोस प्रयास उठाएँ। इस तरह की पहल से जिन लोगों को मदद की जरूरत है, वे इसे प्राप्त कर सकेंगे।