अब भी नहीं जागी, तो कब जागेगी सरकार – घुमंतू समाज

If the government has not woken up yet, then when will the government wake up - Nomadic Society

इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, दशकों से सो रही सरकार को अब जागने की सख्त जरुरत है

भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देने में खानाबदोश समुदायों की भूमिका हमेशा ही महत्वपूर्ण रही है। ये समुदाय संगीत, कला और परंपराओं के अद्भुत प्रचारक रहे हैं। भारत भर में घूम-घूमकर अपना जीवन यापन करने वाले प्रत्येक खानाबदोश समुदाय को एक शिल्प विरासत में मिली है, जो न सिर्फ उनकी पहचान है, बल्कि उनकी आजीविका का भी एक अभिन्न अंग है। वे अपनी प्रतिभा को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाते हैं और कलाकारों के नए वंश का सृजन करते हैं। साथ ही यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके समुदायों की विरासत दीर्घकाल तक जीवित रहे। लेकिन, वर्तमान समय में ये खानाबदोश एक गंभीर अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे हैं और लगभग विलुप्ति की कगार पर हैं।

वह भूमि, जहाँ उनके पूर्वज घूम-घूमकर अपना पेट पालते थे; जहाँ उन्होंने जन्म लिया है, पर अब उनका कोई अधिकार नहीं है। विरासत के रूप में पिछली पीढ़ी द्वारा उन्हें सौंपी गई कला भी अक्सर नज़रअंदाज़गी का सामना करती है, या यूँ कह लें कि आधुनिकता को अपनाने की होड़ में उन्हें और उनकी कला दोनों को भूला जाने लगा है। ये सांस्कृतिक रूप से समृद्ध लोग, जो कभी भारत की सभ्यता के अविभाज्य अंग थे, अब हर दिन और हर पल अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। क्यों? क्योंकि जिन लोगों से वे अपनी देखभाल की अपेक्षा रखते हैं, वही लोग लंबे समय से उनकी और उनकी जरूरतों की उपेक्षा करते आ रहे हैं।

आधुनिकीकरण और सरकारी सहायता की कमी ने भारत की खानाबदोश जनजातियों को धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। ये समुदाय ही हैं, जो वास्तव में प्रकृति के प्रति विशेष प्रेम रखते हैं और सदियों से प्रकृति के साथ विशेष तालमेल बनाकर रहते आ रहे हैं, लेकिन अब तेज रफ्तार से हो रहे शहरीकरण के कारण इनके आवास खतरे में हैं।

अपने डगमगाते पारंपरिक जीवन के साथ ही, इन जनजातियों का भविष्य गंभीर रूप लेता जा रहा है। परिणामों को दुष्परिणामों में बदलने में समय नहीं लगेगा, यदि अब भी जल्द ही कुछ नहीं किया गया। इतने के बाद भी सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है। सरकार की इस टालमटोली ने मासूम खानाबदोश लोगों के लिए तेजी से बदलती दुनिया में जीवन यापन और तरक्की को बेहद मुश्किल बना दिया है। यदि गंभीरता से लिया जाए, तो यह बहुत बड़ा मुद्दा है, जिससे जल्द से जल्द निपटने की जरूरत है।

खानाबदोश समुदाय विलुप्त न हों और सफलतापूर्वक अपना जीवन यापन कर सकें, इसके लिए सरकार को चाहिए कि उन्हें आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए। इसमें भोजन, आश्रय, वस्त्र और स्वास्थ्य जैसी महत्वपूर्ण आवश्यकताएँ शामिल हैं। उन्हें शिक्षा की पहुँच भी प्रदान की जाना चाहिए, ताकि उनके बच्चे अपने माता-पिता की तुलना में बेहतर जीवन जी सकें। इसके अलावा, इन समुदायों के हितों की रक्षा करते हुए उनके क्षेत्रों में सतत विकास सुनिश्चित करने वाले संबंधित कानून भी लागू किए जाने चाहिए। तभी हम कह सकेंगे कि अपने साथियों को साथ लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं, उन्हें अकेले छोड़कर या भूलकर नहीं।

यदि शीघ्र ही इस पर काम नहीं किया गया, तो कुछ वर्षों में इन समुदायों का महज़ नाम मात्र ही रह जाएगा। सिर्फ कागजी तौर पर योजनाएँ बनाने से अब काम नहीं चलेगा, हर एक खानाबदोश को उसके अधिकार की सुविधाएँ दी जाना समय की माँग है। सरकारों को गहरी नींद से जागना होगा और ऐसी पहलों के साथ आगे आना होगा, जो खानाबदोश समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने में मदद करें, जो उनकी संस्कृति की रक्षा करे, जो उन्हें समाज और देश में तवज्जो दिलाए, और उनकी पहचान का सम्मान करते हुए उन्हें आदर्श देशवासी बनाए रखे। तभी हम यह कह सकेंगे कि इन खानाबदोश जनजातियों के पास एक ऐसा भविष्य है, जिसे वे गर्व के साथ जी सकते हैं।

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