वह राह दूसरों की मंजिल क्या तय कर पाएगी, जिस पर आप खुद भटक रहे हैं?

How will that path, on which you yourself are wandering, be able to determine the destination of others?

पहले खुद का भला करें, फिर दूसरों के सलाहकार बनें

आवश्यकता, आविष्कार की जननी है। 21वीं सदी भी आवश्यकताओं का दौर है, लेकिन लोगों की बढ़ती आवश्यकताओं ने अविष्कार के बजाए सलाहकार को जन्म दे दिया है। जी हाँ, सोशल मीडिया की खिड़की खुलते साथ ही कई सलाहकारों के चेहरे एक साथ दिखाई पड़ना शुरू हो जाते हैं। हैरत की बात तो यह है कि काफी खुश-खुश और सुलझे दिखने वाले इन सलाहकारों के पास हमारी तमाम समस्याओं का हल होता है, जैसे मानो ये हर समस्या का हल अपनी मुट्ठियों में लेकर घूम रहे हों। एक चुटकी बजाते ही समाधान थमा जाते हैं, लेकिन ये समाधान कितने कारगर हैं, इसका आभास केवल उसे ही होता हैं जो इससे ताल्लुक रखते हैं।

कुछ दिनों पहले शहर में एटरनल हैप्पीनेस पर एक सेमीनार का आयोजन किया गया था। मेरे कई परिचित भी उस सेमीनार में शामिल हुए थे। चूँकि विषय अच्छा था, इसीलिए मैंने भी सेमीनार में जाने के लिए वक्त निकाल लिया। पूरा हाॅल, स्पीकर को सुनने के लिए खचाखच भरा हुआ था। मैं भी अंदर जाने ही वाला था कि मेरे फोन की घंटी बजी। जरुरी फोन कॉल था, इसलिए मैं बाहर आ गया। लेकिन यह क्या? वहाँ मैंने एक व्यक्ति को देखा, वह फोन पर किसी से चिल्ला-चिल्ला कर बातें कर रहा था, चीख रहा था, गंदी-गंदी गालियां दे रहा था और रिश्ता तोड़ने की बात कर रहा था।

थोड़ी देर बाद मैं अपनी सीट पर वापिस आ गया। लेकिन वक्ता को देख मैं हक्का-बक्का रह गया, खुद को बहुत कोसा, क्योंकि दूसरों को एटरनल हैप्पीनेस का पाठ पढ़ाने वाला मोटिवेशनल स्पीकर कोई और नहीं, बल्कि वही व्यक्ति था जो कुछ देर पहले किसी को गंदी-गंदी गालियां देकर रिश्ता खत्म करने की बात कर रहा था। हालाँकि, श्रोता उसके स्पीच पर तालियां बजा रहे थे, लेकिन उसकी खोखली बातें मुझे केवल गुस्सा दिला रही थी, क्योंकि मैं उसका दोहरा चरित्र जान चुका था।

खैर, सेमीनार खत्म हो गया। बाहर निकला तो देखा, उस व्यक्ति ने इस विषय पर किताब भी लिखी है, किताब खरीदने के लिए बुक स्टाॅल पर भीड़ लग गई, देखते ही देखते किताब की कई प्रतियां भी बिक गईं। इवेंट ऑर्गेनाइज़र मुझे जानता था, इसलिए उसने मुझे उस ज्ञानी स्पीकर और राइटर से मिलवाया। उस व्यक्ति ने किताब की प्रति मेरी ओर भी बढ़ाना चाही। लेकिन मैंने उसे बीच में ही टोक दिया और सारा घटनाक्रम उसके सामने रख दिया। मेरी बात सुनकर वह शर्म से पानी-पानी हो गया। चूँकि, हम सब सलाहकारों के दौर में जी रहे हैं, इसलिए अंत में मैंने भी उसे एक सलाह दे ही डाली कि वह दूसरों को अपनी सलाह देना बंद कर दे। दोस्तों, वह सलाह किसी और का जीवन क्या सवारेगी, जो उस सलाहकार का ही भला नहीं कर पा रही है।

ओशो ने भी कहा है कि जिंदगी बड़ी जटिल है। यदि आपको न मिला हो आनंद तो अपने बेटे को अपना ढांचा मत देना। अगर आपको न मिला हो आनंद तो अपनी सलाह किसी को मत देना। वह जहर है। उसी सलाह के आप परिणाम हैं।

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