नारा नहीं हैं, ‘राम’

'Ram' is not a slogan.

“जबरदस्ती के ‘जय श्री राम’ में सब कुछ है, बस राम नहीं”

जगविदित है अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह होने जा रहा है। शतकों के इंतज़ार के बाद यह दिन हमें देखने को मिल रहा है। लोग अपने-अपने अंदाज में अपने भाव व्यक्त कर रहे हैं। इसी बीच सोशल मीडिया पर श्रीराम को लेकर एक कविता बहुत वायरल हो रही है, जो हाल ही में मैंने भी सुनी, बड़ी ही दिलचस्प कविता है सच में। चंद पंक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं-

“राम राम तो कह लोगे पर

राम सा दुख भी सहना होगा 

पहली चुनौती ये होगी के

मर्यादा में रहना होगा

और मर्यादा में रहना मतलब कुछ खास नहीं कर जाना है..

बस.. बस त्याग को गले लगाना है और

अहंकार जलाना है

अब अपने रामलला के खातिर इतना ना कर पाओगे

अरे शबरी का जूठा खाओगे तो पुरुषोत्तम कहलाओगे”

राम को लोग कैसे जानते, मानते या पूजते हैं इसका सही-सही व्याख्यान कर पाना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन राम के नाम और चरित्र में एक शांति और गहराई है, जिसके तेज को हम आज भी महसूस कर सकते हैं।

नाम की बड़ी महत्ता होती है, और राम नाम की बात ही निराली है। दुनिया की किसी भी भाषा में ऐसा कोई शब्द नहीं है, जिसे एक बार पुकारो तो नाम होता है, दो बार। राम-राम कह दो तो अभिवादन होता है, किसी घटना पर हे राम, या तीन बार राम राम राम निकल जाए, तो संवेदना हो जाती है। और यदि बार-बार राम का नाम लेने लग जाओ, तो संकीर्तन हो जाता है। फिर ऐसे राम के नाम पर राजनीति, जिन्होंने जाति-पाति वर्ग विशेष से ऊपर शबरी के झूठे बेर खाए, राजकुमार होते हुए भी वनवास की आज्ञा का पालन किया, जिनके नाम में ही जिंदगी की सार्थकता है, उन्हें सिर्फ नारों में कैसे समेटा जा सकता है। राम को इन नारा लगाने वालों से शायद ही कोई सरोकार हो, क्योंकि वे सिर्फ सरकार बनाने या बिगाड़ने के लिए नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं, न कि जनकल्याण के लिए राम के आदर्शों पर आगे बढ़ रहे हैं। इस मानसिकता से न कभी राम मिलेंगे या खुद में बसेंगे, हाँ लेकिन ऐसे लोगों को बरगलाने में जरूर सहायता मिलेगी, जो किसी पार्टी या नेता की दृष्टि से श्री राम को देखते और समझते हैं। राम ने तो अपने कर्तव्य के लिए राज-पाट-घर सब त्याग दिया, और यहाँ एक कुर्सी नहीं त्यागी जा रही। राम नाम का उच्चारण जो मन को शीतलता देता था, आज वह ओजस्वी नारों में कैसे बदल गया? क्या इन नारों से दूसरे धर्म के लोगों को डराना या चिढ़ाना, यही इस नाम का सही मतलब है? इतना ही समझ पाएँ हैं हम राम को। वाह री मानसिकता! 

मेरा राजनेताओं और मंत्रियों के लिए एक सुझाव है, अपने भाषणों और उद्बोधन के लिए केवल नाम और भगवा रंग का सहारा न लेकर पढ़ना अनिवार्य कर दीजिए, क्योंकि जनसंपर्क के नेता, अधिकारी/कर्मचारी भी उन्हीं स्कूलों से वही किताबों को पढ़कर निकले हैं, जिनमें राम का चरित्र पढ़ाया जाता था। रामराज्य न सही, सुशासन के लिए ब्रेनवाश जरूरी है। राम के अर्थ को समझने के लिए पहले मर्यादा को समझना होगा, मर्यादा शब्दों की हो या व्यवहार की और ये मर्यादा तो हम नित भारतीय संसद में देख व सुन ही रहे हैं। क्या यही राम का चरित्र हम स्कूलों से पढ़कर निकले थे?

राम की महिमा को चाहे अनपढ़ हो या पढ़ा लिखा, सबको बराबर समझ में आते हैं, क्योंकि राम चरित्र अत्यंत सरल व सहज है। इन्हें पढ़ने-समझने के लिए किसी विद्वान व्याख्याकर्ता की भी कोई जरूरत नहीं। इसलिए राम को जितना हो सके पढ़िए, समझिए, क्योंकि राम को आप जितना ही पढ़ते जाएँगे, राम आप में उतने ही उतरते चले जाएँगे।

आइए, यह संकल्प लें कि राम के दर्शन करने अयोध्या तभी जाएँगे जब राम के नाम पर राजनीति करने के बजाए राम को सही मायने में समझेंगे। इसके लिए राम को प्रतिपल ग्रहीत करना होगा। तभी आत्मा का मैल साफ होगा। राम नाम का अर्थ समझ, हम खुद ही रामराज्य की तरफ बढ़ जाएँगे। ये बात किसी राजनेता से नहीं सीखनी पड़ेगी और न ही किसी को राम के नाम पर राजनीति करने का मौका मिलेगा। राम के अर्थ पर ही अमल कर लिया जाए, तो भारतवर्ष ही नहीं, संपूर्ण विश्व का कल्याण हो जाए।

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