आपके संस्कार ही आपकी पहचान हैं

your values ​​are your identity

कैसे संस्कार हैं इसके? कैसे संस्कार दिए हैं माता-पिता ने? इत्यादि। 

जब भी हम किसी बच्चे को उद्दंडता करते देखते हैं या किसी भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी उम्र का हो, को बुरा व्यवहार करते देखते हैं, तो पहला शब्द ही हमारे दिमाग में आता है ‘संस्कार’। 

कहते हैं बच्चों के संस्कार उनके खुद के जीवन की ही नहीं, बल्कि पूरे समाज की दिशा और दशा तय करते हैं। बच्चों में ज्यादातर संस्कार उनके माता-पिता से आते हैं। यह तो मैं पहले ही बता चुका हूँ। लेकिन वे अपने आस-पास के वातावरण से भी वे प्रभावित होते हैं। 

बच्चों में संस्कारो की कमी के लिए सबसे ज्यादा दोषी हम सोशल मीडिया और टेलीविज़न या फिर सोशल साइट्स को दे सकते हैं। सोशल साइट्स को हम चाहें, तो अच्छे काम के लिए उपयोग कर सकते हैं या फिर बुरे कामों के लिए, यह हमारे ऊपर है। लेकिन आजकल बहुत से बच्चे इसका उपयोग बुरे कामों के लिए कर रहे हैं, जिसका असर उनके जीवन पर भी पड़ रहा हैं। आजकल के बच्चों को मोबाइल फोन का उपयोग करने की बहुत ही आदत पड़ गई है, जिसे वे अच्छे काम के लिए कम और खराब काम के लिए ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। बहुत-से पेरेंट्स आजकल अपने बच्चों की छोटी-सी जिद के आगे झुक जाते हैं। जिद न करे, इसलिए हाथों में मोबाइल थमा देते हैं। अपने बच्चों के प्यार में वो इस बात से अनजान हैं कि वो मोबाइल फोन का दुरूपयोग भी कर सकते हैं। वे यह देखना भी जरूरी नहीं समझते कि उनका बच्चा मोबाइल में देख क्या रहा है? फिर भी वे मोबाइल फोन बच्चों को दे देते हैं। 

बस फिर बच्चे बिना कुछ सोचे समझे गेम्स, सोशल साइट्स आदि का उपयोग करना शुरू कर देते हैं। उन्हें इन सबकी आदत लग जाती है और बच्चे अपने संस्कारो को भूलने लगते हैं। उन्हें अपने आस-पास के लोगों से इतना टाइम नहीं होता कि बात करें, यदि बात भी करते हैं, तो इतने ईगो में कि उनसे बड़ा और कोई नहीं। इसमें गलती बच्चो की नहीं है, यह उनके पेरेंट्स की है, जो सही उम्र से पहले ही मोबाइल फोन और सोशल साइट्स चलाने की अनुमति दे रहे हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि यह गलत हैं। पेरेंट्स को एक एज गैप के बाद बच्चों को मोबाइल फोन और अन्य सोशल साइट्स को जॉइन करने की अनुमति देनी चाहिए।

आज के माता-पिता अपने बच्चों को संस्कार नहीं देते हैं कि बड़ों से कैसा व्यवहार करना चाहिए। पैर छूना चाहिए इत्यादि। इसलिए बच्चों में संस्कार नहीं हैं। ऊपर से गुरुकुल तो अब खत्म ही हो चुके हैं, तो संस्कार आएँगे कहाँ से? 

वह कहावत है ना कि “बच्चे को यदि उपहार ना दिए जाएँ, तो वह कुछ ही समय तक रोएगा, लेकिन संस्कार ना दिए जाएँ, तो वह जीवन भर रोएगा।”

वैसे तो संस्कार व्यक्त करने की चीज बिलकुल नहीं है, लेकिन बचपन में इसे व्यक्त किया जाना चाहिए, फिर तो समयानुसार वे मनुष्य में अपने-आप आते जाते हैं, सिर्फ माहौल वैसा मिलना चाहिए।

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