वर्तमान शिक्षा पद्धति में क्यों है बदलाव की जरूरत?

Why is there a need for change in the current education system?

यदि हम भारतीय शिक्षा प्रणाली के इतिहास को उठाकर देखें तो इसके विकास की प्रक्रिया निरंतर चली आ रही है। प्राचीन काल में शिक्षा का मूल उद्देश्य विचारों का विस्तार तथा मानव जीवन से संबंधित समस्याओं का समाधान करना एवं ज्ञान अर्जित करना था। जिसके लिए गुरुकुल में छात्रों को विवेक व सही चिंतन की शिक्षा दी जाती थी।

वर्तमान में भारत की शिक्षा पद्धति में कई बदलाव हुए हैं। आज शिक्षा पद्धति बहुत विस्तृत हो गई है और नई तकनीकों के उपयोग के साथ-साथ नई शिक्षा विधियों का भी उपयोग किया जाता है। बावजूद इसके भारत में शिक्षा प्रणाली की वर्तमान स्थिति बहुत दयनीय है। शिक्षा प्रणाली का इतिहास हमें दिखाता है कि हमारी प्राचीन संस्कृति में शिक्षा को बहुत महत्व दिया जाता था। शारीरिक, आत्मिक और मानसिक विकास पर बल दिया जाता था। हमारे देश के महानुभावों ने जीवन को चार आश्रमों में विभाजित कर शिक्षा प्राप्ति का तरीका बनाया था। ब्रह्मचर्याश्रम में विद्यार्थी गुरुकुल में रहते हुए तन, मन, धन से गुरु की सेवा करते थे।

इस तरीके से उनका शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास होता था। वैदिक जीवन के चार आश्रम एक व्यक्ति के कर्म और धर्म पर आधारित थे। इसके आधार पर वैदिक जीवन के चार आश्रम थे- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। प्रत्येक चरण या आश्रम का लक्ष्य उन आदर्शों को पूरा करना था जिन पर ये चरण विभाजित थे।

आज भारत में शिक्षा पद्धति को बदलने की आवश्यकता है। वर्तमान शिक्षा पद्धति में गुणों की अपेक्षा दोष अधिक हैं। जिसमें सबसे पहले बात आती है आदर्शों और मूल्यों की, वर्तमान शिक्षा प्रणाली में भारतीय आदर्शों के लिए लेशमात्र भी स्थान नहीं है। केवल किताबी ज्ञान से बौद्धिक विकास नहीं होता। शारीरिक तथा चारित्रिक विकास भी उतने ही मायने रखते हैं। विद्यार्थी रात-दिन पुस्तकें रटते हुए, परीक्षा में पास होने को सफलता समझते हैं। जो निश्चित ही शिक्षा विकास को गलत दिशा की और ले जा रहे हैं।

सिलेबस का बोझ इतना है की बच्चों के कंधे इसमें झुक गए हैं तो मूल्यों और आदर्शों के लिए स्थान कहाँ रह जाता है। साथ ही यह भी सत्य है कि आज के दौर में शिक्षा इतनी महँगी है कि वह पूँजीपतियों के लिए ही लाभदायक है। जिसके पास धन होता है, वह धन के बल पर मन्द बुद्धि होते हुए भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं, जबकि कुशाग्र बुद्धि वाले व्यक्ति धन के अभाव में उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। इस तरह शिक्षा का लक्ष्य अधिकतर पैसे वालों को सुविधा देना हो जाता है, जो कि गरीबों को शिक्षित नहीं करने देता है।

क्या बदलाव किये जा सकते हैं शिक्षा हमारे समाज का सबसे महत्वपूर्ण एवं सशक्त आधार है। हमारे देश के भविष्य का निर्माण केवल शिक्षित नवीनतम पीढ़ी के द्वारा ही संभव होगा। लेकिन वर्तमान में हमारी शिक्षा प्रणाली बहुत दुर्बल बन गई है। इसे सुधार और बदलाव करने की आवश्यकता है।

हमारे देश में हर बच्चे को बुनियादी शिक्षा की जरूरत होती है। बुनियादी शिक्षा से मतलब है कि बच्चे का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और अध्यात्मिक विकास होना चाहिए। बच्चों का संपूर्ण विकास होना बहुत जरूरी है। बच्चों का शारीरिक विकास उनके हठ-पुष्ट होने के साथ जुड़ा होता है। वे शक्तिशाली होने चाहिए जिससे वे सभी कार्यों को ठीक से कर सकें।

मानसिक विकास उनके मस्तिष्क के विकास से जुड़ा होता है। उन्हें विकास की एक सही मार्गदर्शन की जरूरत होती है ताकि वे गलतियों से बच सकें।

बच्चों के विकास के लिए, सिर्फ शिक्षक या पाठ्यक्रम से ही काम नहीं बनेगा। शिक्षा प्रणाली में विकास के सभी क्षेत्रों पर ध्यान देने की जरूरत होती है। बच्चों के स्वास्थ मानसिक विकास के लिए विकार रहित मन मस्तिष्क का विकास बहुत जरूरी है। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बौद्धिक विकास करना होता है। बच्चों को बुद्धिमान, विवेकवान बनने के लिए प्रेरणा देनी चाहिए। अध्यात्मिक विकास भी बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जिसमें नैतिक मूल्यों, अनुशासन की महत्वपूर्ण भूमिका है।

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