युवाओं का जिम्मेदारी और दवाब से भागना, भारत में ‘द ग्रेट रेजिग्नेशन’ का सबसे बड़ा कारण

Youth running away from responsibility and pressure, the biggest reason for 'The Great Resignation' in India.

जिस देश में 5 करोड़ से अधिक युवा बेरोजगार हों, वहां ‘द ग्रेट रेजिग्नेशन’ जैसी प्रवृत्ति का तेजी से बढ़ना, काम पर आराम हावी होने का संकेत समझा जा सकता है।

वक्त आराम का नहीं मिलता, काम भी काम का नहीं मिलता.. इन दिनों ज्यादातर वर्किंग क्लासेस युवाओं की सोच मुज़्तर ख़ैराबादी के इस शेर से वाबस्ता रखती हैं। भारत में ऐसा माना जाता है कि लोग, विदेशी चीजों को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं, और यह साबित तब हो जाता है, जब कोई बाहरी मुल्क का सोशल मीडिया कैम्पेन, एक प्रवृत्ति बनकर, भारतीय युवाओं के भविष्य का निर्णय लेने लगता है। देश में पिछले दो बरसों से द ग्रेट रेजिग्नेशन का चलन तेजी से बढ़ रहा है, जिसके बैनर तले अमेरिका में पिछले साल 3.4 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरियाँ छोड़ दीं। अब जो पहली दफा इस शब्द का इस्तेमाल देख रहे हैं, उनके लिए यह समझना बहुत जरुरी है कि दुनियाभर में कामकाजी या कर्मचारी वर्ग के नौकरी छोड़ने की आदत में अति तीव्र बढ़ोतरी हुई है, और यदि आप भी इसी आदत का शिकार हो चले हैं, तो इतना मान लें कि खतरा आपके आस-पास ही मंडरा रहा है।

रैंडस्टैड एनवी की एक ताजा सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के बाद से दुनियाभर के कर्मचारी वर्ग की सोच में क्राँतिकारी बदलाव आया है, वह भी नौकरी छोड़ने को लेकर। फिर भारत इससे अछूता रह जाए, ऐसा होना अमावास में चाँद दिखने जैसा है।

जहाँ तक इस सर्वे का हिस्सा बनाने वाले भारतीय युवाओं की बात है, उनमें से 63% का मानना है कि वे नौकरी में नाखुश होने के बजाए बेरोजगार होना पसंद करेंगे। जबकि 68% ने माना कि वे नौकरी छोड़ देंगे, यदि यह उन्हें अपने जीवन का आनंद लेने से रोक रही होगी।

इस सर्वे में भाग लेने वाले लगभग 70% प्रतिभागियों ने इस बात पर भी सहमति जताई कि उनका निजी जीवन उनके कार्य-जीवन से अधिक महत्वपूर्ण है और उनमें से 61% ने कहा कि यदि पैसा कामना ऑब्जेक्ट न हो, तो वे कभी काम न करना पसंद करेंगे। फिर जिस देश में 5 करोड़ से अधिक युवा बेरोजगार हों, वहाँ ‘द ग्रेट रेजिग्नेशन’ जैसी प्रवृत्ति का तेजी से बढ़ना, काम पर आराम हावी होने का संकेत समझा जा सकता है।

व्यक्तिगत अनुभव की बात करूँ, तो कई सालों पहले मैंने एक बार अपने सेठ से दिवाली की छुट्टी माँगी, उन्होंने बड़ी शालीनता से मुझसे पूछा- “कहाँ की दिवाली जरुरी है, जहाँ से तुम्हारा घर चलता है वहाँ की, या जो घर तुम्हें चलाना है वहाँ की?” बात समझ आई कि जहाँ काम कर के हमारी आवश्यकताएँ पूरी हो रही हैं, उस जगह की अहमियत, घर और घरवालों से भी अधिक होती है। बहरहाल, यह दशकों पुराना दौर था, जिसकी तुलना आज के दौर से बेशक की जा सकती है, लेकिन केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही। इस सर्वे का ही सहारा लें, तो इसमें 95% भागीदारों ने कहा कि बेहतर काम के लिए संतुलित घंटे और कार्यस्थल का माहौल काफी मायने रखते हैं, जबकि 91% ने माना, उन्हें ऐसा लगता है कि उनके पास यह विकल्प नहीं है कि उन्हें कहाँ काम करना है, और प्रत्येक पाँच में से दो लोग अपने समय को नियंत्रित न करने की समस्या से जूझते नजर आए हैं।

इसके पीछे दो परिदृश्य समझे जा सकते हैं। एक तो कोविड-19 के लगातार घटते मामलों के बीच कंपनियों ने अपने वर्क फ्रॉम होम वाले कर्मचारियों को वापस बुलाना शुरू कर दिया है। अब जो आदत 21 रोज में आपकी निशानी बन जाती है, वो 2 वर्ष पुरानी हो चुकी हो, तो उससे बाहर निकल पाना काफी मुश्किल लगता है। हालाँकि, यह तब मुश्किल नहीं लगता, जब जिम्मेदारी और दवाब की महत्ता अच्छे से समझ आती हो। दूसरा परिदृश्य यह कि कोरोना काल में जागरूकता के साथ वर्क स्पेस भी बड़े पैमाने पर बढ़ा है। डिजिटल दुनिया ने इसमें अहम् भूमिका निभाते हुए, काम के दायरे और अवसरों को बड़ी मात्रा में पेश किया है, जिसने ऐसे लोगों को अधिक प्रभावित किया, जो कोरोना काल में अपनी नौकरी बचा पाने में कामयाब रहे। बेशक कोरोना ने स्वास्थ्य या परिवार कल्याण को प्राथमिकता देने के बारे में सीख दी है, लेकिन इसी सीख ने अधिकतम युवाओं के भीतर कम सहनशील, अधिक बेचैन और समय से पूर्व सब हासिल कर लेने की अवधारणा को भी जन्म दिया है, जो वर्तमान समय के लिहाज से तो सही प्रतीत होती है, लेकिन भविष्य के परिदृश्य से अभिशाप समान नजर आती है।

यदि आप काम के साथ जीवन का आनंद लेना सीख जाते हैं, तो यह इस कलयुग की सबसे बड़ी सीख साबित हो सकती है। काम में आनंद लेना और आंनद से काम करना, तब और आसान हो जाता है, जब आप अपने कौशल को लगातार बढ़ाने पर केंद्रित रहते हैं। फिर आपके पास बेहतर काम के आधार पर खुद को किसी और जगह आजमाने का कॉन्फिडेंस आता है, लेकिन वहीं आप हल्की-फुल्की नोंक-झोंक, सीनियर्स की डाँट या ऐसे किसी अन्य कारण से नौकरी छोड़ते हैं, तो आपका एक फिक्स दायरे तक ही सीमित रहना निश्चित है।

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