युवाओं को साधने के लिए कौन सा रोडमैप बनाएँगी पार्टियां – अतुल मलिकराम, राजनीतिक रणनीतिकार

Which roadmap will the parties make to develop the youth - Atul Malikram, political strategist

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे देश के कुछ प्रमुख राज्यों में साल के अंत में चुनाव होने को हैं, ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हैं। सभी दल अपनी जीत के लिए एक रोडमैप बना रहे हैं। चूंकि जनता को भरोसा दिलाना अब पहले की तरह आसान नहीं रह गया है। इसलिए अब राजनीतिक पार्टियों को सभी आयु, जाति और वर्ग तक पहुंचने के लिए अपनी नीतियों को दोबारा परखने की ज़रूरत है। वहीं यदि देश के दो प्रमुख सियासी दलों की बात करें तो वो चुनाव में जीत के लिए नए-नए दांव पेंच इस्तेमाल कर रही हैं। कुछ महीने पहले हुए गुजरात चुनाव ने भी साफ़ कर दिया है कि केवल जाति कार्ड से चुनाव नहीं जीता जा सकता है। लिहाजा अब दोनों ही दल अपनी नीतियों पर पुनर्विचार कर रहे हैं, और खासकर युवाओं को रणनीतिक रूप से शामिल किये जाने की कवायद में जुटे हुए हैं।

हमारे देश में चाहे आंदोलन हो या चुनाव, सभी में युवाओं का अहम योगदान रहा है। दूसरी ओर हमने ये भी देखा है कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली की सत्ता तक पहुंचाने में भी युवाओं की ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसलिए राजनीतिक पार्टियां इनके बीच अपनी पकड़ बनाने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाती आई हैं। भारतीय जनता पार्टी हो या कांग्रेस, दोनों की नज़र युवाओं पर टिकी हुई है।

बदलते समय और राजनीति में युवाओं की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए सभी के लिए युवा वर्ग सबसे महत्वपूर्ण बना हुआ है। यदि बीजेपी की बात की जाए तो, भाजपा नेताओं का कहना है कि युवाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आकर्षण है। इनमें काफी संख्या में ऐसे युवा हैं जो प्रधानमंत्री के प्रशंसक है लेकिन भाजपा के साथ नहीं जुड़े हैं या यूँ कहें जुड़ना ही नहीं चाहते हैं। अब ऐसे में युवाओं के बीच पकड़ बनाने के लिए पार्टी की नीति उनको साधे रखने की है। चुनाव में युवा न सिर्फ अच्छे और सच्चे मतदाता हैं बल्कि ये बेहतरीन कार्यकर्त्ता भी साबित होते हैं। यही वजह है कि कई बार राजनीतिक पार्टियां और अन्य संगठन, युवाओं को नकारात्मक विचार देकर उन्हें इस्तेमाल भी कर लेती हैं। इतना ही नहीं युवाओं को झंडा उठाने के साथ कई अहम जिम्मेदारियां भी ये बड़ी पार्टियां सौंपती हैं।

यूथ इकाईयों का गठन

सभी बड़े दल यूथ इकाई के माध्यम से युवा वोटर्स को अपने से जोड़ने का काम करते हैं। ये इकाई सिर्फ कॉलेज या युनिवर्सिटी के चुनाव तक सीमित नहीं है बल्कि प्रदेश और देश में हवा बदलने का काम भी करते हैं। छोटे से लेकर हर बड़े मुद्दों तक, ये इकाई सोच बदलने और बनाने में अहम भूमिका निभाती है। सभी राजनीतिक दल ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़कर, खुद को मज़बूत बनाने का प्रयास करते हैं। विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव, युवाओं की ज़रूरत हमेशा ही पार्टियों को रहती है और वो ऐसे प्रतिभाशाली युवाओं को जोड़ना चाहती है जो उनके मुद्दे जमीन तक पहुंचा सकें।

लुभावने वादों के साथ चुनावी घोषणाएं

दरअसल राजनैतिक दल युवाओं को जोड़ने के लिए कई लुभावने वादे और चुनावी घोषणाएं तो करते ही हैं, साथ ही उन्हें पार्टी में पद और पावर का स्वाद भी चखा दिया जाता है। फिर वही युवा कार्यकर्ता इन पार्टियों के लिए युवाओं को वोटर के तौर पर तैयार करते हैं। युवाओं को जीत के लिए सीढ़ी बनाकर सत्ता तक पहुंचने का एक रास्ता आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में साबित किया था। अब कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही, इन युवाओं को अपना वोट बैंक बनाना चाहती हैं। रोज़गार जैसे आवश्यक मुद्दे के अलावा युवाओं के लिए बेहद ज़रूरी मुद्दा है शिक्षा, और अब इंटरनेट भी उनकी अहम ज़रूरतों में शुमार है।

रोजगार का वैकल्पिक जुगाड़

हालाँकि फ्री इंटरनेट का वादा तो आम आदमी पार्टी करती ही है ऐसे में शिक्षा नीति में बदलाव उन्हें सुगम बनाना और शिक्षा में आरक्षण जैसे मुद्दों पर कांग्रेस-बीजेपी युवाओं को साधने में लगी हुई है। अब यह कहना भी गलत नहीं होगा कि अब सिर्फ वादों से मतदाता नहीं पिघलता है। इसलिए युवाओं की शक्ति से पार्टी को ऊर्जा देने के इस अहम कार्य में पार्टी को सिर्फ रोडमैप की नहीं बल्कि ईमानदार कोशिशों की भी ज़रूरत है। जिसमें देश के युवाओं के भविष्य, उनकी शिक्षा और आवश्यकताओं से जुड़े कई अहम निर्णय शामिल हैं।

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