विश्वास, खुद पर…..

Atul Malikram

सियासी गद्दी का बोलबाला कुछ ऐसा है कि किसी के लिए तो यह मखमल की सी पेश होती है, वहीं किसी के लिए काँटों की सेज बनकर बिछ जाया करती है। भारत देश पर तकरीबन 70 साल राज करने वाली कांग्रेस पार्टी ने अपनी सत्ता के दौरान देश के लिए कई कार्य किए। लेकिन राहुल गाँधी कहीं न कहीं पूर्वजों से मिली इस बनी बनाई पार्टी की कमान उतनी बेहतरी से नहीं संभाल सकें, जितने की उनसे पार्टी को उम्मीदें थीं। इसके सबसे बड़े कारणों में से एक के रूप में मुझे जो नज़र आता है, वह है ऐसे नेताओं और विशेष तौर पर सलाहकारों का साथ, जो उन्हें आगे बढ़ाने के बजाए उनके पैर पीछे खींचने की वजह बन खड़े हुए।

दूसरा कारण दिखता है अपने ही मुँह से ऐसे शब्दों का इस्तेमाल, जिन्होंने उन्हें हँसी का पात्र बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भरी सभाओं में राहुल गाँधी के मुँह से निकले शब्द, जैसे- “मुझसे बड़ा बेवकूफ इस देश में कोई नहीं है”, “हाँ, मैं पप्पू हूँ”, “ऐसी मशीन लगाऊँगा, इस तरफ से आलू घुसेगा, उस तरफ से सोना निकलेगा”, “यह सच है कि प्रधानमंत्री अपनी आँखें मेरी आँखों में नहीं डाल सकते हैं”, आदि के कारण जनता कभी राहुल को गंभीरता से नहीं ले सकी। कुम्भाराम लिफ्ट योजना का नाम परिवर्तित करते हुए राहुल ने एक दफा कहा था कि अशोक गहलोत ने कुम्भकरण लिफ्ट योजना का पैसा दिया था।

वहीं एक सभा में कहा, “क्या आप जानते हैं कि ये चीलें यहाँ क्यों उड़ रही हैं, क्योंकि इन्हें सालों से रोजगार नहीं मिला है।” संसद में आँख मारना, असहज ही उठकर प्रधानमंत्री को गले लगा लेना, बस और ट्रक में पेट्रोल भरा जाता है, 2014 में आटा 22 रूपए लीटर था और आज 40 रूपए लीटर हो गया वाली बात…

अपने भीतर के साहस की तितर-बितर बिखरी चिंदियों को समेटकर आत्मविश्वास का चोला सिल दिया है राहुल ने

इस तरह के हजारों वीडियोज़ इंटरनेट पर भरे पड़े हैं, जिन्होंने राहुल की बची-कूची छवि भी धूल में मिला दी। विरोधी पार्टियाँ भी उन्हें नासमझ ही समझने की गलती करती रहीं। गलती इसलिए, क्योंकि राहुल को अब दूसरों पर नहीं, बल्कि खुद पर विश्वास है, और यह वे मौजूदा समय में चल रही भारत जोड़ो यात्रा में बार-बार साबित कर रहे हैं।

राहुल की यह छवि ही तो है कि हर दफा मजाक का पात्र बनने के बाद भी उनमें कोई बदलाव नहीं आया। हाँ, एक बड़ा बदलाव जो दिखता है, वह है परिपक्वता। इस बदलाव के साथ ही एकाएक भारत जोड़ो यात्रा में राहुल परिपक्वता के पूरक जान पड़ रहे हैं। आज स्थिति यह है कि केरल और कर्नाटक का काफिला राहुल के साथ-साथ चल रहा है। बारिश भी राहुल को अपनी बात रखने से रोक नहीं पाई। माँ- सोनिया गाँधी के जूते के खुले हुए फीते बाँधना भारत को एक नया राहुल दे गया। जातिगत हिंसा के कारण सन् 1993 से बंद पड़ी सड़क को खोलने की हिम्मत जुटाई, इतना ही नहीं इसे भारत जोड़ो रोड का नाम भी दिया। कर्नाटक के 75 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का हाथ पकड़कर उन्हें दौड़ाया। भारत की बेटियों और युवा फुटबॉलर्स के साथ पदयात्रा देश को भविष्य का मजबूत नेता देने के लिए तैयार नज़र आ रहा है।

वह कहते हैं न कि किसी का हाथ थामकर जब तक चलते रहते हैं, कदम डगमगाने का डर बना रहता है। वहीं जब खुद चलना सीखते हैं, तो फिर कदम बिना लड़खड़ाए बढ़ते चले जाते हैं। पुराने सलाहकारों को पीछे छोड़ जबसे राहुल ने खुद पर विश्वास दिखाया है, उन्हें पसंद करने वाला हर व्यक्ति उनमें हँसमुख और शालीन नेता के गुण देख रहा है। अपने भीतर के साहस की तितर-बितर बिखरी चिंदियों को समेटकर आत्मविश्वास का चोला सिल दिया है राहुल ने। ऐसे में अब उनमें परिपक्व राजनेता होने की भूख दिखने लगी है। राहुल में आत्मविश्वास और राजनीतिक समझ की चमक पनप गई, तो मौजूदा समय में सत्ताधारी पार्टी के पानी भरने के दिन भी आ सकते हैं, और राजगद्दी एक बार फिर हिल सकती है। मुद्दा बहुत कुछ कह जाता है, जो वास्तव में विचारणीय है।

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