जिस मुल्क का शरीर और समाज दोनों बीमार हो चुके हों, आखिर वह देश कैसे तरक्की

जिस मुल्क का शरीर और समाज दोनों बीमार हो चुके हों, आखिर वह देश कैसे तरक्की

कोई गम के साए में डूबा हुआ था और कोई यह देखकर खुश हो रहा था कि उसकी आँखों के आगे से जनाज़ा निकल रहा है। मैं हैरान हूँ इस मुल्क की सोच से, क्योंकि जिस मुल्क में किसी के घर में छाया मातम, किसी और के लिए शगुन बन जाए, वह मुल्क आने वाले 70 सालों में तो क्या, 700 सालों में भी तरक्की नहीं कर सकता है।

इस मुल्क में कहीं करोड़ों रुपए सड़ रहे हैं, तो कहीं करोड़ों भूख से मर रहे हैं। इस मुल्क में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ आंदोलन तो चलाया जाता है, लेकिन फिर भी दिन-रात बलात्कार का कोहराम है। जिस मुल्क का शरीर और समाज दोनों बीमार हो चुके हों, वह आखिर कैसे तरक्की करेगा?

मैंने देखा है इस मुल्क में आस्था पर अंधविश्वास को हावी होते हुए। मैं हैरान हो जाता हूँ, जब खुद को सभ्य समाज का पढ़ा-लिखा वर्ग बतलाने वालों की आँखों पर अंधविश्वास की चादर चढ़ी हुई पाता हूँ। जब तक इस मुल्क में अंधविश्वास के नाम पर खून का खेल यूँ ही चलता रहेगा, जब तक आस्था की अस्मत से अंधविश्वास का दाग नहीं हटेगा, यह मुल्क तरक्की नहीं कर सकेगा।

मैंने देखा है इस देश के बच्चों को, जो आज अपना भविष्य खरीदने के लिए मजबूर हैं। जो डोनेशन के नाम पर काला धन बांट पाता है, वही यहाँ बेहतर शिक्षा पाने का हकदार बन पाता है। जो मुल्क, खुद के भविष्य पर ताले लगाता हो, आखिर वह मुल्क कभी कैसे तरक्की कर सकेगा?

मैंने देखा है यहाँ मजहब के नाम पर खून की नदियाँ बहते हुए, भाई को भाई की जान लेते हुए। मैंने देखा है लोगों को भगवे और हरे के लिए लड़ते हुए। जब तक यह मुल्क भगवा और हरा छोड़ तिरंगा नहीं उठाएगा, यह मुल्क तरक्की नहीं कर पाएगा।

जिस दिन यह मुल्क केवल एक नेता नहीं, बल्कि अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की तरक्की का अहसास कर लेगा, जिस दिन इस मुल्क में सभी को शिक्षा का समान अधिकार मिल जाएगा, जब इस मुल्क के लोगों को दूसरों के दुःख में दुःख का अहसास हो जाएगा, जब इस मुल्क का प्रत्येक वासी अपनी-अपनी जिम्मेदारी की चादर ओढ़ने के लिए तैयार हो जाएगा, और सच्चे नागरिक का कर्तव्य निभाएगा, उस दिन सही मायनों में यह मुल्क तरक्की की राह पर चल पड़ेगा।

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