“पानी बचाएँ, प्रकृति को बढ़ावा दें और रक्तदान करें”
उपरोक्त शब्द हमारे जीवन का अहम् हिस्सा हैं, क्योंकि इनके आवरण में ही हम बड़े हुए हैं। लेकिन, क्या हो अगर मैं कहूँ कि इन कथनों या शब्दों के पीछे कुछ दूसरे अर्थ भी छिपे हुए हैं, जिनसे कहीं न कहीं हम अनजान हैं? भले ही हम इन शब्दों से अच्छी तरह परिचित हैं, लेकिन फिर भी इनके पीछे की असली मंशा कई लोगों की समझ से बाहर है।
‘पानी बचाओ’ या ‘सेव वॉटर’ सबसे आम मुहावरा है, जो हम लगभग हर दिन सुनते हैं। इस मुहावरे के माध्यम से कहीं न कहीं नीले रंग को बचाने की बात कही जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नीला रंग हमारे समाज के कमजोर तबके का भी प्रतिनिधित्व करता है।
जिन लोगों के लिए जीवन संघर्ष के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, जिनके जीवन के आधे से ज्यादा दिन भूख से कराहते हुए बीत जाया करते हैं, जिनके पास ठण्ड, धूप और बारिश से बचने के लिए छत नहीं है, यहाँ तक कि किसी बीमारी के गर्त में जाने के दौरान डॉक्टर को दी जाने वाली फीस तक नहीं है। ‘सेव वॉटर’ या ‘सेव द ब्लू’ इन जरूरतमंदों की मदद करने का संकेत देता है। अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि उन्हें हमारी हमदर्दी की जरूरत है, दया की नहीं। पैसों या अन्य सांसारिक चीजों से उनकी जरूरतों की पूर्ति करने की नहीं, बल्कि उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए उन्हें अच्छे अवसर देने की आवश्यकता है। ऐसे में हमारे समाज को इस तरह की पहल के लिए एक साथ आगे आने की जरूरत है, ताकि इस तबके को उसकी क्षमता तक पहुँचने में मदद मिल सके।
हम प्रकृति को बढ़ावा देने या हरियाली बिखेरने के बारे में भी बात करते हैं। हरे रंग का मतलब जहाँ एक तरफ हमारे आस-पास का वातावरण है, वहीं दूसरी तरफ यह इस्लाम धर्म का भी प्रतीक है।
यदि अतीत की एक झलक देखें, तो पाते हैं कि इस धर्म के कई शासकों, राजनेताओं, कलाकारों और कारीगरों आदि ने वैश्विक स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाई है। लेकिन, हाल के दिनों में उनका यह हुनर काफी हद तक थम-सा गया है। आज के समय को देखते हुए, उन्हें अपने गौरव को फिर से प्राप्त करने और खुद को साबित करने के लिए उचित शिक्षा सुविधाओं, अवसरों और प्लेटफॉर्म्स की आवश्यकता है।
पिछले दोनों कथनों की तरह ही ‘रक्तदान’ या ‘डोनेट ब्लड’ में भी एक छिपा हुआ खूबसूरत अर्थ है। जहाँ एक तरफ लाल रंग, रक्त को इंगित करता है, वहीं दूसरी तरफ यह हमारी हिंदू संस्कृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। हिंदू धर्मग्रंथ इस बात की पुष्टि करते हैं कि मानवता की सेवा करना भगवान की सेवा करने के बराबर है।
श्रीमद् भगवद् गीता के अनुसार, प्रशंसा या पुरस्कार की उम्मीद के बिना दिया गया उपहार, देने वाले और प्राप्तकर्ता दोनों को लाभ पहुँचाता है। दान और विशेष तौर पर अन्न दान की प्रथा भारतीय समाज के सभी वर्गों में बहुत मायने रखती है। कुछ लोग जरूरतमंदों के लिए विशेष सामान तथा भोजन आदि का बंदोबस्त करते हैं, साथ ही किसी विशेष दिन की याद में धर्मार्थ को बरकरार रखते हुए दान करते हैं। दान की इस परिभाषा का ताना-बाना अब कुछ उधड़ता हुआ जान पड़ता है, जिसकी तुरपाई करना बहुत जरुरी है।
शब्दों की महत्ता को समझते हुए यदि इनके पीछे छिपे अर्थों को भी हम समझ सकें, तो न सिर्फ गरीब तबके को गरीबी की गर्त से उबारा जा सकता है, बल्कि अद्भुत कारीगरों और कलाकारों को फिर एक बार वही पहचान मिल सकती है, और साथ ही सनातन धर्म के अंतर्गत कहे जाने वाले कथन, “दान ही सबसे बड़ा धर्म है” को हमेशा के लिए जीवित रखा जा सकता है। जिस दिन आप इन बातों का मोल समझ लेंगे, उस दिन आप सही मायने में शब्दों के पीछे, छिपे शब्दों का अर्थ भी समझ सकेंगे।