सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि शिक्षित किसे बोला जाना चाहिए ?
शिक्षित होने का मतलब सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं होता है। शिक्षित होना उस व्यक्ति को कह सकते हैं, जो जीवन में अच्छे निर्णय ले सकता है और जो अपनी समस्याओं का समाधान तलाश कर सकता है।
शिक्षित होने से उस व्यक्ति को आवश्यक दक्षताएँ प्राप्त होती हैं, जो उसे उसके सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने में मदद करती हैं। इसमें पहले, वे व्यक्ति आते हैं, जो रोजमर्रा की चुनौतियों का सामना पूरे अनुशासन एवं सहजता से करते हैं और वे, जो हालात से सामना होने पर सही निर्णय लेने और सही कदम उठाने में शायद ही कभी चूकते हों तथा दूसरे, वे, जो दूसरों के साथ व्यवहार में बड़प्पन दिखाते हैं, दूसरों के अप्रिय व्यवहार और बातों का बुरा नहीं मानते और अपने सहयोगियों के साथ उतने ही अच्छे होते हैं, जितना एक इंसान हो सकता है। और आगे, वे जो अपनी खुशियों पर काबू रखते हैं और कठिनाइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते, और कठिन परिस्थितियों का मुकाबला एक बहादुर इंसान की तरह करते हैं, जो इंसानी फितरत है।
और सबसे बड़ी बात है कि वे लोग जो सफलता मिलने पर नहीं बिगड़ते, साथ ही बुद्धिमान और धीर-गंभीर व्यक्ति की तरह दृढ़ता से जमीन से जुड़े रहते हैं, तुक्के से मिली तरक्की और सफलता पर खुश होने के बजाए जन्म से मिली काबिलियत और बुद्धि से प्राप्त कामयाबियों पर खुश होते हैं। उनकी बचपन से ही खुश होने की ऐसी प्रवृत्ति होती है।
या यूँ कहें कि पढ़े-लिखे लोग वे होते हैं, जो किसी भी हालात में साहस और बुद्धि से काम करना तय करते हैं। यदि कोई मूर्खता के बजाए समझदारी, बुराई के बजाए अच्छाई, और असभ्यता के बजाए सद्गुण को चुनता है, तो ऐसे आदमी के पास स्कूली डिग्रियाँ न भी हों, तो भी उसे शिक्षित माना जाना चाहिए।
अपने खुद के सिद्धांत बनाएँ और उन पर अमल करें। निष्पक्ष भाव से अपनी बात रखें, इससे आप सामाजिक होने का परिचय देंगे।
हर मिलने वाले से उनकी खुशी, समृद्धि,और स्वास्थ्य के बारे में बात करें, इससे उन्हें लगेगा कि आप उनकी परवाह करते हैं। और जब आपको लगे कि आपकी निःस्वार्थ सेवाओं से लोग आप पर विश्वास करने लगे हैं, तब आप समाज के ऐसे लोगों का चयन करें, जो सामाजिक कर्तव्य समझकर अपनी सामाजिक कल्याण हेतु निःस्वार्थ सेवा देना चाहता हो। ऐसे लोगों का एक समूह बनाएँ। समूह से अनेक फायदे हो सकते हैं। पहला, आपकी इच्छाशक्ति मजबूत होगी, जिसे कोई आसानी से हिला नहीं पाएगा सिवाए आपके, क्योंकि समूह बनाने के बाद आप अपने निर्णय से पीछे हटने के बारे में सोच भी नहीं सकते।
दूसरा, यदि जनहित में कोई आप फैसला लेते हैं, तो आप अपने समूह के लोगों से चर्चा कर सही निर्णय पर पहुँच सकते है और शीघ्र फैसला लेते हैं, क्योंकि हो सकता है कि समाज के किसी पहलू से आप वंचित हों और आपके समूह का कोई व्यक्ति उसके विषय में जानकारी रखता हो।
तीसरा, आप अपने परिवार को उचित समय दे सकते हैं, आप अपने पर्सनल काम के लिए काफी समय बचा सकते हैं, जिससे आप किसी भी तरह अपने उद्धेश्य को पूरा करने में विचलित न हों। इसलिए समूह जरूरी है ।
यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह है कि आपने एक शिक्षित समाज का निर्माण करने का प्रण लिया है न कि किताबी ज्ञान का। लेकिन आप चाहें इसके लिए भी अपने उद्धेश्य के साथ इसकी व्यवस्था कर सकते हैं, जो अंत में सही ही होगा।
आपको चाहिए कि समय-समय पर लोगों को प्रोत्साहन देने के लिए आप अपने लक्ष्य से जुड़े पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सामाजिक कार्यक्रम करते रहें। और जो विजयी हों, उन्हे सम्मानित करें, और उनके बच्चों के लिए कुछ सेवा निर्धारित करें, जैसे- फ्री शिक्षा या जिन दैनिक वस्तुओं की उन्हें जरूरत हो। लोगों को इस तरह से प्रेरित करें कि ईमानदार होना चरित्र का एक अमूल्य अंग है।
उन्हें समझाएँ कि दुनिया में हर चीज चाहे धन हो, चाहे सगे संबंधी आदि दोबारा मिल सकता है, लेकिन यदि चरित्र चला गया, तो इसे दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता।
इंसान को अपने चरित्र की हिफाजत अपने मूल्यवान रत्नों से भी अधिक करना चाहिए। ये मेरी खुद की अपनी सोच है कि अपने काम को कैसे बेहतर ढंग से किया जाए और उसे कैसे सुगमता से अंजाम तक पहुँचाया जाए। इसका निर्णय केवल आप ही अपने विवेक, बुद्धि से करें, तो अधिक सार्थक साबित हो सकता है।
इन्हीं कुछ पहलुओं से हम समाज को शिक्षित बना सकते हैं, जिससे एक सभ्य समाज का निर्माण हो सके।