समावेशिता और प्रतिनिधित्व के आह्वान से ही राजनीति में सशक्त बन सकेंगे भारत के युवा

India's youth will be able to become empowered in politics only by calling for inclusivity and representation.

वास्तविक लोकतंत्र का आधार लोकप्रिय संप्रभुता को माना जाता है, जहाँ सरकार को स्वयं लोगों से शक्ति प्राप्त होती है। निर्वाचित अधिकारी तब तक ही अधिकार रखते हैं, जब तक वे नागरिकों की इच्छा और आकाँक्षाओं के अनुरूप होते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि वास्तविक रूप से वे लोग सशक्त रहें, जो लोकतंत्र के हित में कार्य करते हैं। यह आवश्यक है कि समाज के प्रत्येक वर्ग को एक मजबूत और रचनात्मक राजनीतिक संवाद के माध्यम से अपनी चिंताओं और हितों को व्यक्त करने का अवसर मिले, ताकि लोकतंत्र के मूल्यों को बरकरार रखा जा सके। यह सिर्फ समावेशिता ही सुनिश्चित नहीं करता है, बल्कि एक संपन्न लोकतांत्रिक माहौल को भी बढ़ावा देता है, जहाँ विविध दृष्टिकोणों को सुना जाता है और उनका सम्मान किया जाता है।

भारत एक ऐसा देश है, जिसकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा 25 वर्ष से कम उम्र का है, और उससे भी अधिक संख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। यह देश का दुर्भाग्य ही है कि यहाँ के युवा नागरिकों और मुख्यधारा की राजनीति के साथ-साथ निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के बीच अलगाव देखने को मिलता है। ऊर्जावान और महत्वाकांक्षी युवाओं की व्यापक आबादी की शक्ति होने के बावजूद, ये लोग अक्सर उन मामलों में खुद को नजरअंदाज पाते हैं, जो उन्हें प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। यूएन यूथ2 की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग एक-तिहाई लोकतंत्रों में, सांसदों के लिए पात्रता 25 वर्ष की उम्र से शुरू होती है और सिर्फ 1.6% सांसद ही इस उम्र से ताल्लुक रखते हैं।

जब हम भारतीय लोकतंत्र की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि छात्र संघ और युवा संगठन एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करते हैं, जिसके जरिए इसमें युवाओं को शामिल किया जाता है, लेकिन संसद में उनका प्रतिनिधित्व जाकर फीका पड़ जाता है। यह असमानता हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों में युवा आवाज़ों के अधिक समावेश और उचित प्रतिनिधित्व की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है। अंतर-संसदीय संघ (इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन / आईपीयू) के अनुसार, युवा सांसदों को 30 वर्ष या उससे कम उम्र में निर्वाचित किया जाता है। भारत में युवा नागरिकों की सबसे बड़ी आबादी, जिनकी औसत आयु 29 वर्ष है, के बावजूद इस बात पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता है कि प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित लोकसभा प्रतिनिधियों की औसत आयु 55 वर्ष है। इसके अलावा, अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित राज्यसभा सदस्यों की औसत आयु 63 वर्ष से भी अधिक है। यह प्रतिनिधित्व और राजनीतिक निर्णय लेने में युवा आवाज़ों की आवश्यकता पर सवाल उठाता है।

राजनीति में भारतीय युवाओं के सामने आने वाली चुनौतियाँ:

भारतीय राजनीति में भाई-भतीजावाद का गहरा अस्तित्व

राहुल गांधी ने खुद एक बार कहा था, “भारत में भाई-भतीजावाद एक संस्कृति है।”

एक मजबूत लोकतांत्रिक राष्ट्र होने के बावजूद, भारत लंबे समय से अपने राजनीतिक क्षेत्र में भाई-भतीजावाद की रूढ़िवादी परंपरा से जूझ रहा है, जिसमें विभिन्न कारकों का योगदान है। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण है इसके नागरिकों की मानसिकता। दशकों से चली आ रही ‘वर्ण व्यवस्था’ के प्रभाव को ही देख लें, जो यह निर्देश देता है कि सिर्फ पुजारी की संतान ही पुजारी की भूमिका निभा सकती है। यह प्रथा आजकल से ही कायम नहीं है, बल्कि यह एक लम्बे अरसे से चली आ रही है। यह सब काफी हद तक भारतीय जनता के बीच प्रचलित कम या बिल्कुल भी राजनीतिक ज्ञान के न होने के कारण है, जो परिणाम के रूप में, उन्हें अक्सर भाई-भतीजावाद वाली धारणाओं के आधार पर अपने राजनीतिक प्रतिनिधियों का चुनाव करने के लिए प्रेरित करती है।

कुछ वर्ष पहले, पैट्रिक फ्रेंच नामक एक लेखक ने भारतीय संसद पर एक अध्ययन किया था और चिंताजनक आँकड़ें उजागर किए थे। उन्होंने खुलासा किया कि संसद के मौजूदा निचले सदन में 30 वर्ष से कम उम्र के सभी सांसद राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों से आते हैं। यह एक ऐसा कारक है, जिसे दुनिया के किसी भी अन्य हिस्से में उल्लेखनीय माना जाता है।

इसके अलावा, कुछ विशिष्ट सांसद ऐसे भी हैं, जिन्हें ‘अतिवंशानुगत’ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है और उनमें से अधिकांश एक निश्चित राजनीतिक दल से संबद्ध हैं। इसका मतलब यह है कि राजनीतिक क्षेत्र में उनके कई संबंध हैं, जो उन्हें खुद को राजनीती की दुनिया में दृढ़ता से स्थापित करने में सहायता करते हैं।

मतदान और उम्मीदवारी में उम्र का अंतर

भारत में, 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोग वोट देने के लिए पात्र होते हैं, और 25 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोग चुनाव लड़ने के लिए पात्र होते हैं, इन दोनों कारकों के बीच उम्र की असमानता काफी अधिक है। इस उम्र के अंतर के परिणाम उन लोगों के बीच अलगाव के रूप में सामने आते हैं, जो अपने नेताओं को चुनने में अपनी हिस्सेदारी दर्शा सकते हैं और जो स्वयं उम्मीदवार बनने के योग्य हैं। मतदाताओं और संभावित राजनीतिक उम्मीदवारों के बीच उम्र में यह अंतर संभावित रूप से ऐसी स्थिति उत्पन्न कर सकता है, जहाँ युवा मतदाताओं की अधिक संख्या के बजाए कुछ लोग ही सरकार में अपने प्रतिनिधित्व को दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त, उम्र का यह बड़ा अंतर एक ऐसी धारणा के रुप में समस्या उत्पन्न कर सकता है, जिसमें युवा यह मानना ​​​​शुरू कर देते हैं कि उनके वोटों से कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि निर्वाचित नेताओं के पास समुदायों या जाति-आधारित विभाजनों के विपरीत युवा मतदाताओं के प्रति सीमित जिम्मेदारी है।

युवा प्रतिनिधित्व के लिए तंत्र का अभाव

इसके अलावा, देश का सीमित तंत्र युवाओं के लिए उच्च स्तर का संसदीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है। 15-24 आयु वर्ग की आबादी भारत की जनसंख्या का 19.1% हिस्सा शामिल करती है, इस तथ्य के बावजूद सरकार में उनके प्रतिनिधित्व की गारंटी के लिए महज़ कुछ ही औपचारिक रास्ते दिखाई पड़ते हैं। जबकि स्थानीय शासन में युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने और युवाओं के लिए छात्र और युवा राजनीति केमाध्यम से देश की राजनीति में क्राँति लाने के प्रयासों पर जोर बढ़ रहा है, वहीं राजनीतिक और शासन क्षेत्रों में सक्रिय रूप से युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए समन्वित कार्यों की कमी आज भी बरकरार है।

लोगों के बीच धार्मिक मतभेद

राजनीति और उनके प्रतिनिधियों के साथ बातचीत में युवा किस तरह सामने आते हैं, इसे आकार देने में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो समग्र मतदान जनसांख्यिकी पर इसके प्रभाव के समान है। इसका प्रसंग भारतीय राजनीति में बढ़ते धार्मिक जोर के संदर्भ में विशेष रूप से है, क्योंकि युवा राजनीतिक परिदृश्य में भाग लेने से खुद को निराश पा सकते हैं।

इसके अलावा, धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यक समूहों से संबंधित युवाओं को अक्सर नौकरी में सुरक्षा की कमी और कार्यस्थल में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों से निपटने के साधन के रूप में, यह स्थिति उन्हें पहचान-आधारित राजनीतिक भागीदारी में शामिल होने के लिए निरंतर रूप से प्रोत्साहित करती है।

युवाओं के साथ सरकार का सीमित जुड़ाव

यद्यपि देश में कुछ ऐसे कार्यक्रम भी हैं, जिनका उद्देश्य युवाओं के व्यापक विकास को बढ़ावा देना है, लेकिन इसके बावजूद युवाओं के साथ भारत सरकार की भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए संरचित पहलों की उल्लेखनीय कमी देखने को मिलती है। इतना ही नहीं, शैक्षणिक संस्थानों जैसी सेटिंग्स में नीति निर्माताओं और युवा भारतीयों के बीच कुछ अनौपचारिक बातचीत होती है, लेकिन फिर भी सरकार और देश के युवा नागरिकों के बीच जुड़ाव के लिए व्यवस्थित चैनल्स का स्पष्ट अभाव देखने को मिलता है। इसके अलावा, युवाओं को सरकार को इनपुट और फीडबैक प्रदान करने में सक्षम तंत्र की भी कमी है।

व्यावसायिक प्रशिक्षण और राजनीतिक शिक्षा बहुत कम या बिल्कुल नहीं

देश में युवा राजनेताओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना भी भारी कमी की मार झेलता है। यदि इस पर ध्यान दिया जाए, तो यह राज्य या राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में उनके परिवर्तन में सहायता कर सकता है। राजनीतिक शिक्षा का सीमित स्तर एक महत्वपूर्ण चुनौती है, खासकर उस स्थिति में, जब ग्रामीण तथा शहरी विभाजन के अंतर को खत्म करने में शिक्षा की संभावित और अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका पर विचार किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि सीएसडीएस सर्वेक्षण में यह पाया गया कि कॉलेज-शिक्षित शहरी और ग्रामीण दोनों पुरुषों ने समान स्तर की राजनीतिक भागीदारी प्रदर्शित की। इसके अलावा, ऐसा प्रतीत होता है कि पुरुष और महिला की श्रेणियों में राजनीति में रुचि के साथ शिक्षा का सकारात्मक संबंध है। सभी शैक्षिक समूहों में, समान शिक्षा स्तर के और राजनीति में रुचि नहीं रखने वाले लोगों की तुलना में, पुरुष अधिक संख्या में राजनीति में रुचि व्यक्त करते हैं।

क्या किए जाने की जरूरत है?

नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे प्रतिभाशाली युवा स्नातकों को विभिन्न सरकारी स्तरों पर शुल्क युक्त या निःशुल्क इंटर्नशिप के माध्यम से नीति निर्माण प्रक्रिया में व्यावहारिक अनुभव प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाएँ। यह उन्हें आवश्यक कौशल से सुसज्जित करता है और राजनीति में उनकी औपचारिक भागीदारी को बढ़ावा देता है।

विधायकों और युवाओं के बीच सीधे संचार की सुविधा के लिए संवाद, टकराव की स्थिति में उचित समाधान, प्रतिक्रिया और नीति विकास के लिए संस्थागत तंत्र स्थापित किए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त, सरकार युवा चिंताओं के साथ राष्ट्रीय नीतियों के संरेखण का मूल्यांकन करने के लिए संबंधित उपकरणों की पेशकश कर सकती है। सोशल मीडिया चर्चाओं जैसी अनुत्पादक गतिविधियों के विपरीत, युथ कैम्प्स का आयोजन करने से युवा अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कर सकते हैं और राजनीतिक जुड़ाव को और बढ़ा सकते हैं।

लोकप्रिय मीडिया में गैर-राजनीतिक युवा नेताओं की आकर्षक कहानियों का उपयोग करके युवाओं को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में सूचित किया जा सकता है, जो उन्हें सक्रिय रूप से इस क्षेत्र में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। वे कम पहचान प्राप्त युवा नेता, जिन्होंने महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं, उनकी कहानियों को जमीनी स्तर पर साझा करना, भाई-भतीजावाद और पारंपरिक मार्गों से परे राजनीतिक जुड़ाव के विचार को बढ़ावा दे सकते हैं।

शैक्षणिक संस्थानों को विभिन्न अभियानों के आयोजन या उनमें भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना, सोशल मीडिया पर राजनीतिक विषयों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और वाद-विवाद तथा सार्वजनिक भाषण प्रतियोगिताओं में प्रतिस्पर्धा को शिक्षा बोर्ड द्वारा संस्थागत बनाया जा सकता है। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य भारतीय राजनीति के बारे में युवाओं की नकारात्मक धारणा को बदलना और उन्हें उनके स्कूल के वर्षों के दौरान रचनात्मक पुरस्कारों के माध्यम से प्रेरित करना है।

युवा भागीदारी को संस्थागत बनाने के लिए, संसद, राज्य और स्थानीय स्तर के निकायों में युवाओं के लिए कोटा लागू किया जा सकता है। रवांडा की प्रणाली के समान आरक्षित सीटें, संवैधानिक या विधायी निकायों में युवाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा सकती हैं। कानूनी उम्मीदवार कोटा संघीय इकाइयों को अपनी उम्मीदवार सूची का एक विशिष्ट प्रतिशत युवाओं को आवंटित करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। स्वैच्छिक राजनीतिक दल कोटा, पार्टी पूर्वाग्रह के अधीन होते हुए भी, निष्पक्ष कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए बाहरी निरीक्षण की आवश्यकता हो सकती है। इन समस्त संस्थागत सुधारों का उद्देश्य राजनीति में युवाओं के प्रवेश को आसान बनाना है, और साथ ही शीर्ष राजनीतिक पदों पर अधिक युवा नेताओं को बढ़ावा देना है।

राजनीतिक वित्तपोषण को विनियमित करना बेहद महत्वपूर्ण है। भारतीय राज्य युवा स्वतंत्र उम्मीदवारों, और विशेष रूप से वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले उम्मीदवारों को चुनाव संबंधी सब्सिडी प्रदान कर सकते हैं। भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) राजनीतिक दलों को युवाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए अपनी फंडिंग का एक हिस्सा आवंटित करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है, जैसा कि केन्याई और आयरिश कानूनों में देखने को मिलता है। यह उन वित्तीय बाधाओं को कम करता है जो गैर-पार्टी का समर्थन करने वाले व्यक्तिगत उम्मीदवारों, विशेष रूप से युवा उम्मीदवारों को प्रतिस्पर्धी राजनीति में प्रवेश करने से रोकती हैं।

भारत जैसे विशाल और व्यापक आबादी वाले देश में, युवा आबादी दुनिया में सबसे बड़ी है। ऐसे में, सरकार के लिए सक्रिय रूप से देश के युवा नागरिकों की आवाज़ सुनना अनिवार्य हो जाता है। एक वास्तविकता यह भी है कि हमारी संसद की औसत आयु कई अन्य लोकतंत्रों की तुलना में काफी अधिक है, जो युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने वाले राजनीतिक सुधारों की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है। यह छात्र राजनीति को अपनाने और अनुभवी राजनेताओं के प्रमुख प्रभाव को कम करने की दिशा में काम कर सकता है। राजनीति में उम्रवादी मानसिकता को दूर करना और समाज में अनुभवी राजनेताओं पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना आज के समय में बहुत आवश्यक है, ताकि युवाओं को राजनीति में पूरी तरह से शामिल किया जा सके। युवा व्यक्तियों में नवीन, समावेशी और नए विचारों के माध्यम से सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन लाने की क्षमता होती है, यह स्वीकार करने के साथ ही देश के भविष्य को आकार देने में उनकी क्षमता का उपयोग करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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