आपका नसीब, आपके हाथों में है। हाँ, बिल्कुल आपके ही हाथों में है। ठहरिए, कहीं आप लकीरों के फेर में तो नहीं फंस गए। मेरा मतलब हाथों की लकीरों से नहीं, बल्कि आपके कर्मों से है। मैं जानता हूँ कि ज्यादातर लोग भाग्य में यकीन करते हैं, उन्हें लगता है कि जिंदगी में भाग्य से बढ़कर कुछ नहीं है। लेकिन वो जो बार-बार, भाग्य-भाग्य चिल्लाते हैं, मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि क्या वो जानते हैं कि भाग्य, आखिर होता क्या है?
निश्चित तौर पर वो नहीं जानते। मैं यह नहीं कहता कि भाग्य जैसा कुछ नहीं होता। भाग्य, प्रबल और शक्तिशाली जरूर होता है, लेकिन वह पुरूषार्थ के बगैर अधूरा है। भाग्य हमारे कर्मों का ही संचय होता है। हमारे द्वारा किए गए कर्मों के फल के अनुरूप ही वह निर्धारित होता चला जाता है।
कभी-कभी मेहनत करने के बावजूद भी सफलता हाथ नहीं लगती, लेकिन यह सोचकर हम मेहनत करना ही छोड़ दें, यह भी तो गलत है। श्रीमद्भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने भी तो यही उपदेश में यही दिया था कि “कर्म करो, फल की चिंता मत करो”, क्योंकि कर्म ही हमारे वश में होते हैं, किस्मत या भाग्य पर हमारा नियंत्रण नहीं रहता।
चलिए मैं अपनी बात सरल शब्दों में समझाता हूँ। मान लीजिए आपका सपना डाॅक्टर बनने का है। एक दिन आपके घर एक ज्योतिष आता है और वह भी “आपका सपना सच होगा”, यह बात कहकर चला जाए, तो आप क्या करेंगे?
क्या आप मान लेंगे कि बस आप डॉक्टर बन ही गए, क्योंकि ज्योतिष के मुताबिक तो आपको डाॅक्टर बनना ही है, या फिर मेहनत और दृढनिश्चय से अपने सपने को सच करने के प्रयास में जुट जाएँगे?
दरअसल दोस्तों, यदि आप हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहेंगे, तो ऐसे में डाॅक्टर बनना तो दूर, पास होने में भी आपके पसीने छूट जाएँगे। लेकिन हाँ, चाहे कोई ज्योतिष कहे न कहे, लेकिन यदि आप अपने सपने को संकल्प बनाकर लग्न और हिम्मत से उसमें जुटे रहेंगे, तो जरूर एक दिन उसे सच कर दिखाएँगे।
जी हाँ दोस्तों, आपका संयम और मेहनत ही आपका भाग्य बनाते हैं। याद रखिए, यह संसार कर्म प्रधान है। यहाँ कर्म के बिना कुछ भी संभव नहीं है। जहाँ तक रहा भाग्य का सवाल, उसकी चाबी ईश्वर के हाथों में हैं। आपके कर्म जितने अच्छे होंगे, ईश्वर उतने ही अधिक भाग्य के दरवाजे खोलता चला जाएगा।