जीवन में पथप्रदर्शक की भूमिका निभाते हैं वेद

Vedas play the role of guide in life

मैं एक सेमिनार में पहुँचा। लोग, वहाँ अपने ज्ञान का बखान कर रहे थे। मैंने बड़ा साधारण-सा प्रश्न पूछा, वेद क्या है? मेरा प्रश्न सुनते ही हाॅल में सन्नाटा छा गया और पलक झपकते ही सारे के सारे बुद्धिजीवी, गूगल बाबा की शरण में पहुँच गए और जो यह कह रहे थे कि उनके पास ज्ञान का भंडार है, वो भी इस वक्त चुप्पी साधे हुए थे, क्योंकि उन्हें इस बात का अहसास हो चुका था कि उनके दिमाग में भी धूल की चादर बिछ चुकी है और वेद उस धूल में कहीं खो गया है, जिसे ढूंढना ठीक उसी समान है, जैसा कि रेगिस्तान में सुई।

खैर, आपने धर्मग्रंथों का अध्ययन तो किया ही होगा। मैं आपकी जानकारी के लिए बता देता हूँ कि वेद, दुनिया के पहले धर्मग्रंथ हैं। वेद शब्द, संस्कृत भाषा के ‘विद’ शब्द से निर्मित है, जिसका अर्थ है ज्ञान।

कहा जाता है कि वेद, मानव सभ्यता के सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। चूँकि वेद, ईश्वर द्वारा ऋषियों को सुनाए गए ज्ञान पर आधारित हैं, इसीलिए इन्हें श्रुति भी कहते हैं। वेदों को ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, इन चार भागों में बांटा गया है। ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है। इन्हीं के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई।

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर वेदों की जरूरत क्यों पड़ी?

मनुष्य, एक ऐसा प्राणी है, जो कि बिना सिखाए कुछ नहीं सीखता, इसलिए सृष्टि के आरंभ में मनुष्य को सीखाने की आवश्यकता थी, जिसे केवल ईश्वर ही पूरा कर सकते थे। तिनके से लेकर मनुष्य, पशु, पक्षी, सूर्य, चन्द्रमा, आत्मा-परमात्मा, इन सबका यथार्थ ज्ञान वेदों में हैं।

वेदों की 28 हजार पांडुलिपियां, भारत में पुणे के भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियां बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है।

वेदों से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

ऋग्वेद: ऋग्वेद की रचनाएं पदों में लिखी गई हैं। चाहे वह बड़ा राजा हो या फिर सर्वजयी नेता, समय के काल में सब समा जाते हैं। वेदों में सबसे अधिक इंद्र को ही पूजा गया है, लेकिन आज इंद्र लोगों को मुश्किल से ही याद होंगे। दरअसल, इंद्र का एक तरह से लोगों से लेन-देन का संबंध है। ऋग्वेद, यही सीख देता है कि लोग लेन-देन वाले संबंध को महत्व नहीं देते और भूल जाते हैं। ऋग्वेद, शाश्वत मूल्यों की स्थापना और उन्हें जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है, जिसकी आज अत्यंत आवश्यकता है।

यजुर्वेद: यजुर्वेद को गद्यों तथा पद्यों में लिखा गया है। यजुर्वेद में कर्म को प्रधानता दी गई है। जीवन कर्मक्षेत्र है, कर्म ही पूजा है, इस धरती पर निरंतर कर्म करते हुए, सौ वर्ष का जीवन पाएं, ऐसी शिक्षा यजुर्वेद से मिलती है।

सामवेद: सामवेद, संगीत प्रधान है। ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद आपस में मिलकर गद्य, पद्य और संगीत का मिश्रण बन जाते हैं। तीनों वेदों को मिलाकर ‘वेदत्रयी’ कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवत गीता में कहा था ‘वेदानां सामवेदोऽस्मि’ अर्थात वेदों में ‘मैं सामवेद हूँ’ और यह कह कर श्रीकृष्ण ने इसका महत्व बढ़ा दिया था। साम का अर्थ है, शान्ति प्रदान करने वाला गान। जब मनुष्य चित्त को एकाग्र करके ईश्वर में ध्यान लगाता है, तो उसे शान्ति की प्राप्ति होती है। यदि व्यक्ति की आत्मा शांत हो, तो वो जीवन रूपी कुरूक्षेत्र का अर्जुन बन सकता है।

अथर्ववेद: अथर्ववेद को ज्ञान का वेद कहा जाता है। अथर्ववेद, तीनों वेदों से अलग है। यह किसी एक विषयवस्तु पर केन्द्रित नहीं है, बल्कि इसमें विभिन्न विषयों की भरमार है, जिसमें ब्रम्ह ज्ञान, भैषज्य कर्म, शान्तिक कर्म, पौष्टिक कर्म, राज-कर्म, सामंजस्यक कर्म, प्रायश्चित कर्म, आयुष्य कर्म, अन्य विविध कर्म सम्मिलत हैं। इस प्रकार अथर्ववेद से हमें विभिन्न विषयों का ज्ञान मिलता है। जीवन की प्रत्येक क्षेत्र में कौन-सी परिस्थिति में कैसा कदम उठाना चाहिए, इसका ज्ञान भी हमें अथर्ववेद से प्राप्त होता है।

यानी हम कह सकते हैं कि वेदों में ईश्वर, ब्रम्हांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, रीति-रिवाज आदि से संबंधित ज्ञान का भंडार है। या यूँ कह लीजिए कि वेदों में दुनिया की हर समस्या का समाधान मौजूद है। इसलिए वेद सदा कालजयी तथा तार्किक बने रहेंगे।

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