Again an explosion and many lives were destroyed.
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नीतीश का राजनीतिक चरित्र समझना उन्हें पलटीमार बताने जितना आसान नहीं
कुछ ही महीने पहले बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में 9वीं बार शपथ लेने वाले नीतीश कुमार, राजधानी पटना में 18 विपक्षी दलों के साथ बीजेपी के खिलाफ पहली बैठक की मेजबानी कर रहे थे। आगामी लोकसभा चुनावों से पूर्व यह पहला मौका था, जब बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी के लिए एक संगठित विपक्ष की चुनौती तैयार हो रही...
Continue reading...पीआर में क्रॉस-कंसल्टेंसी कोलेबरेशन की बढ़ती प्रवृत्ति
विगत कुछ वर्षों में पीआर परिदृश्य में बड़े स्तर पर बदलाव देखने को मिले हैं। कोविड के बाद से तमाम इंडस्ट्रीज़ के ब्रांड मैनेजर्स की व्यस्तता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, जैसे- सोशल मीडिया, वेब व कॉन्टेंट मार्केटिंग, एसईओ आदि के उपयोग में बढ़ोतरी को भी उनकी व्यस्तता का प्रमुख कारण माना जा सकता है। जाहिर-सी...
Continue reading...युवाओं का जिम्मेदारी और दवाब से भागना, भारत में ‘द ग्रेट रेजिग्नेशन’ का सबसे बड़ा कारण
जिस देश में 5 करोड़ से अधिक युवा बेरोजगार हों, वहां ‘द ग्रेट रेजिग्नेशन’ जैसी प्रवृत्ति का तेजी से बढ़ना, काम पर आराम हावी होने का संकेत समझा जा सकता है। वक्त आराम का नहीं मिलता, काम भी काम का नहीं मिलता.. इन दिनों ज्यादातर वर्किंग क्लासेस युवाओं की सोच मुज़्तर ख़ैराबादी के इस शेर से वाबस्ता रखती हैं। भारत...
Continue reading...सिर्फ मान्यताएँ ही नहीं, विज्ञान भी कहता है गाय को पवित्र
भारत अपनी युगों पुरानी मान्यताओं और अद्भुत परंपराओं की गोद में फला-फूला देश है। प्राचीन काल से ही पशु जीवन के प्रति हिंदू धर्म में गहन आस्था रही है। और विशेष तौर पर जब गाय की बात आती है, तो यह विश्वास कई गुना बढ़ जाता है। गायों को दैवीय स्वरुप और प्रकृति का उपकार माना जाता है। लेकिन बतौर...
Continue reading...फिर हुईं अनसुनी, कैदियों की खामोश चीखें….
गृह मंत्रालय द्वारा 2018 में सामने आई एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में हिरासत में 1,845 कैदी मौत के घाट उतर गए, जो पिछले 20 वर्षों में भारतीय जेलों में हुई सबसे अधिक मौतें हैं, जबकि जेलों की औसत ऑक्यूपेंसी 117.6% थी। निस्संदेह, भारत में जेलों की स्थिति पिछले कुछ वर्षों में भीड़भाड़, कर्मचारियों की अनुपलब्धता और धन के...
Continue reading...“परिवर्तन ही संसार का नियम है”, भूल चले हैं इस कहावत को हम..
हर दिन आगे बढ़ने के साथ-साथ पीछे छूट जाती हैं कई बातें, कई कहावतें, और महज़ कहानियाँ बनकर रह जाते हैं वो तमाम मुहावरें, जो हमारे बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं। “परिवर्तन ही संसार का नियम है….” कभी तो यह एक दिन में कई बार कही जाने वाली कहावत थी, और आज हम इसका अर्थ ही भूल चले हैं। अब तो...
Continue reading...लालकृष्ण आडवाणी के बाद सिंधी समुदाय को सांसद शंकर लालवानी से उम्मीदें
वह समाज, जिसने भारत के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया। 1947 में हुए देश के विभाजन ने लाखों लोगों को बेघर कर दिया। जिन्होंने भारत को चुना, उन्हें अपना घर, जमीन, जायदाद, सब पीछे छोड़कर भागना पड़ा। हालाँकि, इस त्रासदी का यदि कोई सबसे अधिक शिकार हुआ, तो वह था सिंधी समाज। वह समाज, जिसने भारत के...
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