एसडीजी 2030 लक्ष्यों की ओर कछुआ गति से बढ़ रहा है भारत
सभी जानते हैं कि हम सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा की शुरुआत से लेकर मंजिल तक पहुँचने के बीच लगभग आधा सफर तय कर चुके हैं। इसके बावजूद हम काफी पीछे जान पड़ते हैं। सरकार को संभावित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपने काम में तेजी लाने की बेहद जरुरत है। यह भी स्पष्ट ही है कि भारत ने अब तक संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में बहुत कम प्रगति की है, जिसे कछुआ चाल कहना कतई गलत नहीं होगा। यदि सरकार इसी गति से आगे बढ़ती रही, तो भारत के लिए वर्ष 2030 तक अपने एसडीजी लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल होना लगभग असंभव हो जाएगा।
मार्च 2022 की एक रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2015 में भारत संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्य देशों द्वारा 2030 एजेंडा के 17 सतत विकास लक्ष्यों पर 117 से 120 रैंक पर आ गया है, यानि यह तीन स्थान नीचे गिर गया है। नवीनतम रैंकिंग के साथ भारत पाकिस्तान को छोड़कर, जो कि 129वें स्थान पर है, सभी दक्षिण एशियाई देशों से पीछे है। भारत के रैंक में गिरावट का कारण क्षेत्रों में होने वाली बड़ी चुनौतियाँ हैं, जिनमें शून्य भुखमरी, बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण, लैंगिक समानता व स्थायी शहर और समुदाय शामिल हैं। रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि भारत ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और भूमि पर जीवन से निपटने में बेहद खराब प्रदर्शन किया है।
रैंक में गिरावट यह दर्शाती है कि भले ही एसडीजी 2030 के लिए भारत ने शानदार शुरुआत की हो, लेकिन सफर में इसके परिणाम कहीं न कहीं पीछे छूटते चले गए। इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारत के पिछड़ने का प्रमुख कारण कोविड महामारी है, लेकिन इससे भी किनारा नहीं किया जा सकता है कि सरकार और प्रबंधन भी इसे पटरी से नीचे उतारने के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं। मंदी, रोजगार का नुकसान और स्वास्थ्य की गड़बड़ी ने उत्पादन और उपभोग के तरीके को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है। पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा, क्योंकि लोगों की जरूरतें और आकांक्षाएँ काफी तेजी से बदल रही हैं।
देश में एसडीजी 30 प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई योजनाएँ और नीतियाँ बनाई गई हैं, लेकिन इन नीतियों के कार्यान्वयन में कमी के कारण वांछित परिणाम नहीं मिल सके हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत को वर्ष 2030 तक एसडीजी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपने प्रयासों को तेज रफ्तार से आगे बढ़ाना होगा, जिसके लिए इसे प्रबल और कुशल हाथों की जरूरत है। एसडीजी के कार्यान्वयन के लिए मजबूत और प्रभावी संस्थान आवश्यक हैं। इसके अतिरिक्त, नीतियों और कार्यक्रमों को कुशलता और प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए भारत को राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तरों सहित सभी स्तरों पर अपनी शासन संरचना को मजबूत करने की आवश्यकता है। वहीं भारत को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा जैसे सामाजिक क्षेत्रों में और अधिक निवेश करने की भी जरुरत देखने में आती है। इससे न सिर्फ देश में गरीबी कम करने, बल्कि जरुरी सेवाओं तक पहुँच स्थापित करने और विकास को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी।
पर्यावरण संबंधी चुनौतियाँ, जिनमें वायु व जल प्रदूषण, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं, एसडीजी को प्राप्त करने में प्रमुख बाधाएँ हैं। भारत द्वारा स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाने, स्थायी कृषि को बढ़ावा देने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण सहित अन्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए साहसिक कार्रवाई किया जाना अहम् है। एसडीजी की प्राप्ति के लिए सरकार, समाज, निजी क्षेत्र और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच भागीदारी और सहयोग भी आवश्यक है। भारत को एसडीजी की ओर प्रगति में तेजी लाने के लिए संसाधनों, विशेषज्ञता और ज्ञान का लाभ उठाने के लिए सभी हितधारकों के साथ साझेदारी को मजबूत करने की आवश्यकता है।
लोक कल्याण में भारी सुधार लाने और लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद करने के लिए, सरकारों, कॉर्पोरेट भारत और नागरिक समाज संगठनों को चाहिए कि वे सभी विश्वास के स्तर को बढ़ाते हुए मिलकर काम करें। शीघ्र परिणाम प्राप्त करने के लिए इस सहयोग को जल्द से जल्द और स्थायी रूप से किया जाना समय की माँग है। भारत अभी-भी वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में खड़ा है।
देश के पास पहले से ही अभिनव विचार, विविध संस्कृतियों, भरपूर संसाधनों और वैश्विक बाजारों तक मजबूत पहुँच है, जो इस अविश्वसनीय अवसर का लाभ उठाने के लिए इसे तैयार करता है। सही रणनीतियों के साथ काम, न सिर्फ भारत को अपनी क्षमता को निखारने, बल्कि क्षेत्रीय और विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली नेता बनाने में मदद कर सकता है। भारत की प्रगति के लिए अभी हमें बहुत लम्बा सफर तय करना है और वर्ष 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम होना है।