तो इस तरह छत्तीसगढ़ में खुद कांग्रेस नेताओं के सहयोग से बनेगी बीजेपी की सरकार

So in this way BJP government will be formed in Chhattisgarh with the help of Congress leaders themselves.

भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने के बाद से छत्तीसगढ़ राज्य, मीडिया से लेकर सियासी दलों तक चर्चा का विषय बना हुआ है। सरकारी योजनाएँ हों, या बघेल की राजनीतिक कुशलता, उन्होंने हर स्तर पर खुद को प्रभावशाली तरीके से स्थापित करने में सफलता हासिल की है। वे पार्टी के राष्ट्रीय मुद्दों में शामिल हो रहे हैं, और महत्वपूर्ण फैसलों में अपनी निर्णायक भूमिका भी निभा रहे हैं।

लेकिन जहाँ एक तरफ पार्टी और प्रदेश में बढ़ते उनके कद व लोकप्रियता के आगे, धुर विरोधी बीजेपी कई मौकों पर नतमस्तक सी नजर आती है, वहीं पार्टी के कुछ आतंरिक मुद्दे, इसी रसूख और जनप्रियता को बघेल के गले की घंटी बता रहे हैं, जिसका सीधा इशारा उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में, कम से कम कुर्सी से तो दूर रखने का है ही। छत्तीसगढ़ में कुर्सी की लड़ाई किसी से छिपी नहीं है, और कांग्रेस के दिग्गज व नंबर दो पर आँके जाने वाले नेता व प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से उनकी नाराजगी जग जाहिर है। अब सवाल यह है कि आगामी चुनावों में ऐसा क्या होने वाला है, जो भूपेश बघेल को सत्ता सुख से बेदखल करने के लिए ब्रह्मास्त्र का काम करेगा।

इस सन्दर्भ में कई बातें और मुद्दे हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से तो अनुमानित हो सकते हैं, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से इनकी हकीकत चुनाव में बड़े उलटफेर की ओर इशारा करती हैं। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 23 में, 2020 मध्य प्रदेश में हुए राजनीतिक उथल-पुथल की तर्ज पर एक आश्चर्यजनक खेल देखने को मिलेगा। इसका एक मुख्य करण भूपेश बघेल के अब तक के व्यवहार को समझा जा सकता है। 2018 की जीत के बाद से, बघेल ने जिस तरह पार्टी के अन्य दिग्गज व लम्बे समय से पार्टी के लिए समर्पित नेताओं को, सरकार में पदभार से लेकर सार्वजानिक मंचों पर स्थान देने तक, लगभग हर जगह नजरअंदाज कर, उन्हें दरकिनार करने की कोशिश की है, वह मौजूदा मुख्यमंत्री को चुनाव के अंतिम चरणों में काफी भारी पड़ सकती है। खासकर सिंहदेव खेमे की बात करें, तो ढाई-ढाई साल वाला फार्मूला लागू न होने के बाद से यह खेमा नाराज चल रहा है, और सिंहदेव भले यह कहते कि मिलें कोई सरोकार नहीं, लेकिन परिणाम इसके उलट ही देखने की उम्मीद की जा रही है।

इन दो दिग्गज नेताओं के बीच सत्ता सुख अब वर्चस्व की लड़ाई में तब्दील हो चुका है, और छत्तीसगढ़ कांग्रेस में चुनाव के नजदीक आते-आते, कई चुनौतियों के सामने आने की उम्मीद है।

यदि यह अनुमान और समीकरण, सही दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो यह भी संभव है कि बघेल चुनाव जीतने के बाद भी सरकार में वापसी करने में नाकाम ही रहें, और इस अन्तर्कलह का सीधा लाभ बीजेपी अपने चिरपरिचित अंदाज में लेने में कामयाब हो जाए, क्योंकि कर्जमाफी से बेरोजगारी भत्ते तक, बघेल ने लगभग कोई भी मुद्दा बीजेपी को भुनाने ही नहीं दिया है। और छत्तीसगढ़ बीजेपी, बघेल या कांग्रेस के खिलाफ कोई भी मूवमेंट खड़ा करने में असफल रही है।

फिर बीजेपी के पास कोई सीएम फेस भी नहीं है, और पीएम मोदी पर ही मतदाताओं को रिझाने की पूरी जिम्मेदारी टिकी हुई है। ऐसे में बदलाव के दौर से गुजर रही बीजेपी के लिए, कांग्रेस के नेता ही खेवनहार बनकर सामने आ सकते हैं, और बीजेपी को पिछले कुछ सालों में सरकार बनाने की पेंचीदा तकनीक के जरिए पार्टी को दोबारा छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने का अवसर मिल सकता है।

हालाँकि, चुनौतियाँ उसके बाद भी कम नहीं होंगी, लेकिन फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती भूपेश बघेल के समक्ष है, जो जनता के मत के भरोसे चिंतामुक्त होकर स्वयंभू बने रहने का स्वप्न, सच होने का इंतज़ार कर रहे हैं। लेकिन उन्हें अब चैतन्य हो जाने की जरुरत है। आगामी 6 महीनों में प्रदेश की राजनीति, कई बड़े बदलावों का गवाह बनने वाली है, जिसके केंद्र में बघेल ही हैं।

Share