सोच, एक तरफा ही क्यों ?? 35_टुकड़ों_वाला_प्यार

Wondering, why only one sided?? 35 pieces of love

श्रद्धा और आफताब के उलझन भरे रिश्ते और श्रद्धा की मर्डर मिस्ट्री ने दुनिया को अनगिनत सवालों के कटघरे में लाकर छोड़ दिया है। हर एक सवाल से प्याज़ के छिलकों की तरह न जाने कितने ही नए-नए विषय निकलकर सामने आते जाएँ। अनजान इंसान पर पहले विश्वास और फिर अँधविश्वास, माता-पिता और परिवार से दूरी, ठीक से जाने बिना पूरा जीवन किसी इंसान के साथ बिताने का फैसला, अजनबी रिश्ते को प्यार का नाम, इस प्यार के नाम पर आपके साथ हो रही हिंसा की अनदेखी, और फिर अपने अनमोल जीवन की आहुति….. ऐसे न जाने कितने ही विचार मन को कुरेदकर रख देते हैं, जब प्यार और विश्वास की इस अजीबों-गरीब परिभाषा पर विचार करता हूँ।

प्यार और विश्वास….. चंद घड़ियों में हो जाने वाला बेइंतेहा प्यार, और थोड़ी-सी अनबन या ज़रा-से शक पर हो जाने वाली बेइंतेहा नफरत….. क्या हो गई है आजकल के प्यार की परिभाषा….. समझ नहीं आता कि मैं ही अधिक सोचता हूँ या किसी और के ज़हन में भी ये विचार आते हैं। आजकल का यह प्यार अँधेरे की गर्त में जाता जा रहा है और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं, सिवाए प्यार के टुकड़ों को देखने के। फिर आता है विश्वास….. अजनबी को विश्वास की वह डोर थमा देना, जिस पर आपका पूरा जीवन टिका हुआ है, यह कितना सही है? वह भी चंद ही दिनों में….. वह भी परिवार की इच्छा से परे….. यह कैसा विश्वास है, जिसमें दुनिया दिखाने वाले माता-पिता की भावनाओं को युवा किसी और पर विश्वास के चलते कुचलकर आगे बढ़ जाते हैं। माता-पिता और परिवार के उस विश्वास का क्या, जो वे आप पर करते हैं?

लेकिन विश्वास और इस विश्वास की बातें भी एक तरफा हैं। लोगों को कहते हुए सुनता हूँ कि लड़कियों को आजकल के लड़कों पर आँख मूँदकर विश्वास नहीं करना चाहिए और बिना जाने-समझे शादी जैसा अहम् फैसला कर उस शख्स के सुपुर्द खुद का जीवन नहीं कर देना चाहिए।

एक टीस है मन में कि यह सोच एक तरफा ही क्यों है? हाँ, इसमें कोई दो राय नहीं है कि श्रद्धा और आफताब के रिश्ते में सारी गलतियाँ आफताब की ही निकलकर सामने आई हैं, जो हर पल श्रद्धा के प्यार को ठेस पहुँचा रहा था। वही श्रद्धा, जो अपना सब कुछ अपने प्यार के लिए छोड़ चली आई थी। लेकिन यदि इस रिश्ते से हटकर बात करें, तो मैंने ऐसे रिश्ते भी देखे हैं, जो एक तरफा सोच के चलते बर्बाद हो गए, जिनमें लड़कियों के उलट, लड़के अँधविश्वास के शिकार हो गए और खुद की भावनाओं के साथ खुद ही खिलवाड़ करते रहे।

किसी पर इल्ज़ाम लगाने का मेरा कोई इरादा नहीं है, लेकिन यह सच है। सोच एक तरफा रखना कतई सही नहीं है। बेशक, हर बार लड़के ही गलत नहीं होते, कई दफा दूसरा पक्ष भी गलत होता है। अचानक से इस पक्ष का आपकी तरफ झुकाव हो जाना और फिर दिन-ब-दिन निर्भरता बढ़ते-बढ़ते दोनों के परिवारों से दूरी, कुछ समय आगे को बढ़ता रिश्ता, थोड़ी-सी अनबन पर ताबड़-तोड़ कहा-सुनी और फिर सब खत्म….. यहाँ खटास दो लोगों में ही नहीं आती, बल्कि यह खटास इन दो लोगों से जुड़े हर एक रिश्ते को कड़वा कर जाती है। विचार जरूर करिएगा, कभी समय मिले तो…..

देश के युवाओं से यही गुज़ारिश है कि आजकल का माहौल देखते हुए एक-दूसरे को जानने में जल्दबाजी न करते हुए भरपूर समय दें, लेकिन शर्त यह है कि अपने परिवार और मित्रों को इस दौरान दूर न करें, रिश्ते में आ रही हर छोटी-बड़ी समस्या को अपने परिवार और मित्रों के साथ साझा करें, उनसे सलाह-मश्वरा करें और आगे रिश्ते को क्या मोड़ देना चाहिए, इस बारे में चर्चा करें। यकीन मानिए, वे आपको सही सलाह देंगे और आपके रिश्ते में पड़ रही दरार भरने के साथ ही यह रिश्ता लम्बे समय तक बरकरार रह सकेगा।

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