“बेज़ुबान हैं, तो क्या हुआ, प्यास तो उन्हें भी लगती है”
ज़रा सोचिए, आपको बहुत तेज़ भूख लगी हो, और आपको खाने के लिए दिन भर कुछ भी न मिले। गर्मी के मौसम में तपती धूप में बैठा दिया जाए, और प्यास से तड़पने के बावजूद कई दिनों तक पीने के लिए पानी न दिया जाए। क्या हुआ? किस सोच में पड़ गए? बिल्कुल यही हाल होता है बेज़ुबान पक्षियों का, जो तपती धूप में सूखे हुए गले को गीला करने के लिए पानी की चंद बूंदों के मोहताज हो जाते हैं, और प्यास से तड़पकर मौत के घाट उतर जाते हैं। कारण यह है कि आसमान में उड़ते इन बेज़ुबानों पर कम ही लोगों का ध्यान जाता है।
मनुष्य को प्यास लगती है, तो वह कहीं से भी पानी की व्यवस्था कर अपनी प्यास बुझा लेता है, लेकिन मूक पशु-पक्षियों को प्यास से तड़पना पड़ता है, और तपती गर्मी में इधर-उधर पानी के लिए भटकना पड़ता है। यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि पक्षी इस मौसम में ज्यादा प्रभावित होते हैं। भोजन और पानी की खोज में लगातार धूप में उड़ते रहने से वे कमजोर हो जाते हैं। हजारों की तादाद में हर दिन काँटे जा रहे पेड़ों से हम बची-कुची कसर भी पूरी करे दे रहे हैं, उन्हें तड़पा-तड़पा कर मारने की। वे रूककर यदि कहीं सबसे अधिक आराम करना पसंद करते हैं, तो वे पेड़ ही हैं। हम हर दिन उनसे उनके आशियाने छीन रहे हैं।
हमारी बेरहमी यहीं आकर नहीं रूकती है, क्योंकि सोशल मीडिया पर किए जाने वाले ढकोसलों के इस दौर में जहाँ जरूरतमंदों के काम आने बनावटी वीडियोज़ पर भर-भर कर लाखों लाइक्स लोग करते हैं, खुद इन आदतों को अपनाने की बात आती है, तो लाखों लोगों की इस भीड़ में से गिने-चुने लोग ही आगे आते हैं, जो वास्तव में दिखावे की भीड़ से अलग जरूरतमंदों की सेवा करते दिखाई देते हैं।
क्या आप जानते हैं कि एक साल में प्यास से कितने पक्षियों की मौत होती है?
बड़े ही शर्म की बात है कि यूँ तो ज़माने भर की खबरें इंटरनेट पर भरपल्ले मिल जाती हैं, लेकिन गूगल को खँगाल मारने के बाद भी एक दम सटीक आँकड़ें नहीं मिलते, जो सटीकता के साथ ये बताते हैं कि प्यास से मरने वाले इन पशु-पक्षियों की वास्तव में क्या संख्या है।
सिर्फ और सिर्फ अपने फायदे के लिए जीना भी कोई इंसान से ही सीखे। बड़ी-बड़ी इमारतें और फ्लाईओवर्स बनाने की तो जैसे होड़ लगी पड़ी है। इसके सामने इंसानों को बेज़ुबान पशु-पक्षियों का ख्याल कहाँ ही आता है? उनके घरों पर कुल्हाड़ियाँ ऐसे चलाई जाती हैं, जैसे उन्हें तो इस धरती पर रहने का अधिकार ही नहीं है। पेड़ों की कटाई-छँटाई के कारण कहीं रुककर आराम करने के लिए इनके पास कोई आशियाना भी नहीं बच पा रहा है। हीरों और खनिजों को प्राप्त करने के लिए घने जंगलों का सफाया किया जा रहा है। इंसान यह नहीं समझ रहा है कि इसके कारण धरती पर गर्मी और अधिक बढ़ने लगी है। इन सबके चलते हर साल गर्मियों के मौसम में पक्षियों और जानवरों की मौत हो जाती है। ऊपर से हम जलाशयों को भी खत्म किए जा रहे हैं। आलम यह है कि पानी न मिलने पर ये बेज़ुबान बेहोश होकर गिर पड़ते हैं, या फिर मौत के घाट उतर जाते हैं।
कड़कड़ाती धूप में जब हम इंसान ही प्यास से व्याकुल हो उठते हैं, तो ज़रा सोचिए कि कई धरती से फीट ऊपर उड़ते पक्षियों का क्या हाल होता होगा। आपको इंसान और उन्हें पक्षियों का जन्म मिला, इसमें उनका क्या दोष है? यदि इस बात की गहराई को भी आप न समझें, तो दोष आपका है। इंसान को कुदरत ने जरूरतमंदों के काम आने के लिए बनाया है, न कि सिर्फ खुद के बारे में सोचते रहने के लिए। खुद के साथ बेजुबान पशु-पक्षियों का भी ध्यान रखें, विशेष रूप से तपती गर्मी के मौसम में।
लोगों का थोड़ा सा प्रयास घरों के आस पास उड़ने वाले परिंदों की प्यास बुझाकर उनकी जिंदगी बचा सकता है। जिस तरह से आपके लिए गर्मियों में जगह-जगह प्याऊ की व्यवस्था की जाती है, ठीक वैसे ही पक्षियों के लिए भी पानी की व्यवस्था करें, ताकि उन्हें भी गर्मी में साफ और ठंडा पानी मिल सके। बेज़ुबान पक्षियों के लिए अपने घर की छत पर मिट्टी के सकोरे और ज्वार-बाजरे के दाने रखे जा सकते हैं, ताकि ये मेहमान आपके दर पर राहत की साँस ले सकें, साथ ही अपनी भूख और प्यास बुझा सकें।