विष्णु, शिव और पार्वती जैसे व्यक्तित्व ही कॉर्पोरेट के पूरक

Only personalities like Vishnu, Shiva and Parvati complement the corporate

शिव पुराण के अनुसार, दक्ष-प्रजापति ने अपनी अनेक पुत्रियों के लिए योग्य वर की माँग की, जो धनवान हों। वे अपनी पुत्रियों के लिए पति रूप में ऐसे देवताओं को चाहते थे, जो पृथ्वी पर जीवन के लिए सहायक हों, जैसे कि देवराज इंद्र, जो कि वर्षा-देवता हैं या फिर अग्नि देव।

वर्तमान समय में कॉर्पोरेट जगत की स्थिति भी यही है, जहाँ सबसे योग्य, सबसे कुशल और सबसे दक्ष टीम मेंबर्स की तलाश को प्रखरता दी जाती है। आज के समय में हम अपनी टीम में सर्वगुण संपन्न और विभिन्न कारकों के लिए सहायक और निपुण व्यक्तियों को चाहते हैं। यदि टीम में एक भी व्यक्ति ऐसा शामिल होता है, जो हमारी विचारधारा से अलग हो या फिर सबसे हटकर हो, तो स्वाभाविक-सी बात है कि हम असहज हो जाते हैं। 

दक्ष-प्रजापति के साथ भी यही हुआ। वे काफी भयभीत हो गए, जब उनकी सबसे छोटी पुत्री सती ने अपनी मर्जी और जिद से एक साधु का चयन अपने पति के रूप में कर लिया। एक ऐसा तपस्वी, जो हर क्षण अपने शरीर को राख से सना हुआ रखता है, एक ऐसा तपस्वी, जिसके साथी भूत और प्रेत हैं और बर्फ से ढके पहाड़ ही उनके निवास स्थान हों, एक ऐसा तपस्वी, जिसे शिव के नाम से जाना जाता है। इस बात से परेशान होकर कि उनकी बेटी ने उनकी मर्जी के खिलाफ शादी की है और वह भी इतने अपरंपरागत व्यक्ति से, तो उनके मन को बहुत खेद पहुँचा। इस खेद की पराकाष्ठा यह हुई कि वे शिव को अपने जमाता के रूप में कभी स्वीकार ही नहीं कर सके। इसके बाद उन्होंने एक भव्य यज्ञ करने का फैसला किया, जिसमें उन्होंने अपनी सभी बेटियों और दामादों को आमंत्रित किया, लेकिन शिव और सती को नहीं।

कॉर्पोरेट जगत में हममें से कई लोगों की तुलना दक्ष-प्रजापति से की जा सकती है, जो कॉर्पोरेट लक्ष्य की दिशा में काम करने वाले सहयोगात्मक और सकारात्मक कार्य वातावरण स्थापित करने की इच्छा और उत्सुकता के चलते टीम्स में सिर्फ और सिर्फ सबसे उपयुक्त लोगों को शामिल करना चाहते हैं, और यहाँ तक कि करते भी यही हैं। कॉर्पोरेट में ऐसे लोगों को टीम में शामिल किए जाने को प्रखरता दी जाती है, जिनकी ऊर्जा हमसे बखूबी मेल खाती है और जिनके काम करने का तरीका हमारे काम करने के तरीके से मेल खाता है। हम कभी-भी अपनी इच्छा से मनमौजी, अलग तौर-तरीकों वाले, सबसे अलग सोच रखने वाले, शांत स्वभाव के, क्रोध को संतुलित करने वाले, यहाँ तक कि विचित्र प्रतीत होने वाले शिव को अपने आस-पास आने ही नहीं देते हैं।

दक्ष-प्रजापति ने शिव को कभी-भी अपना जमाता स्वीकार नहीं किया, क्योंकि शिव ऐसे भगवान हैं, जो कभी-भी दक्ष-प्रजापति की भगवान वाली परिभाषा में फिट नहीं बैठे। कारण कि शिव सबसे अलग हैं, उनका रहन-सहन, तौर-तरीके सब कुछ सबसे अलग हैं। विरोधाभास से ग्रसित लोग भगवान शिव को अक्सर गलत ही समझते हैं, लेकिन शिव ऐसे भगवान हैं, जो विरोध के लिए विरोध करते हैं या यूँ कहें कि वे विद्रोही को भी अपना बना लेने की ताकत रखते हैं और उसे अस्तित्व के मौजूदा तरीके के साथ तालमेल बिठाने के लिए तैयार कर देते हैं। तथ्य यह है कि शिव इस विश्व में सबसे अलग हैं। वे अपने ऊपर महँगे वस्त्र धारण करके नहीं घुमते, वे तो राख में सने हुए अपनी अलग पहचान बनाते हैं, सोने-चाँदी के गहने नहीं पहनते, बल्कि रुद्राक्ष और सर्पों की माला ही उनके असली आभूषण हैं। भूत-प्रेत ही उनकी सबसे सच्ची और सार्थक टोली है। कुल मिलाकर उन्होंने सांसारिक मापदंडों से खुद को बिल्कुल अलग रखा हुआ है।

भले ही अलग विचार रखने वाले व्यक्ति सबसे अलग जान पड़ते हैं, लेकिन वह कहते हैं न कि पाँचों उँगलियाँ कभी-भी बराबर नहीं होती हैं। कॉर्पोरेट्स को चाहिए कि वे इस बात की महत्ता को समझें और सभी तरह के लोगों को तवज्जो दें।

एक बार भगवान शिव के जीवन काल में एकाएक ही बहुत बड़ा संकट आ गया। तो कहानी कुछ ऐसी है कि दक्ष-प्रजापति ने एक बार एक विशेष यज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने सम्पूर्ण देव लोक को यज्ञ में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन अपने जमाता शिव को आमंत्रित नहीं किया। जब सती अपने मायके पहुँची और नाना प्रकार के मेहमानों के बीच अपने पति को यज्ञ स्थल पर न पाकर अपने पिता से इसका कारण जानना चाहा, तब उन्होंने बताया कि उन्होंने शिव को आमंत्रित नहीं किया। इसे अपने पति का अपमान जानकार सती इतनी क्रोधित हो गईं कि उन्होंने इसके विरोध के रूप में खुद को अग्नि कुंड में झोंक दिया और देखते ही देखते उनका शरीर आग की चपेट में आ गया। जब शिव को इसकी जानकारी लगी, तो वे इतना क्रोधित हो गए कि वे सती को उठा यहाँ-वहाँ तांडव करने लगे। यह एक ऐसा विनाशकारी टकराव था, जिसमें दक्ष-प्रजापति और उनके मेहमानों ने शिव के अति क्रोध और अखंड शक्ति को देखा। विष्णु द्वारा उनके चक्र से माँ सती के शरीर के 52 टुकड़े कर दिए गए और जहाँ-जहाँ उनके शरीर के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अंततः एक असहज शांति बहाल हुई, जिसके बाद दक्ष-प्रजापति ने अपने जमाता शिव से माफी माँगी और शिव अपनी गुफा में चले गए।

संकट में ही शिव की कीमत का एहसास होता है। संकट तब उभर कर सामने आता है, जब काम करने के पारंपरिक तरीके उचित परिणाम देने में विफल हो जाते हैं। जब समस्याएँ सामान्य की परिभाषा से परे चली जाती हैं, उस स्थिति में हमें अपरंपरागत सोच की आवश्यकता होती है, यही वह स्थिति है, जब हमें वास्तव में शिव की आवश्यकता होती है। शिव एक ऐसे कारक हैं, जो उलझी हुई स्थितियों में एक नए दृष्टिकोण का सृजन करने की क्षमता रखते हैं। यहाँ शिव से तात्पर्य उस व्यक्तित्व से है, जो अलग सोच रखता है, लेकिन उसे कॉर्पोरेट में हमेशा ही अलग-थलग रखा जाता है, उसे वह तवज्जो कभी दी ही नहीं जाती, जिसका वह वास्तव में हकदार होता है। एक ऐसा व्यक्ति, जो सबकी सोच से परे कुछ नया करने की ताकत रखता है, लेकिन कहीं न कहीं खुद को साबित करने में असमर्थ पाता है, कारण कि वह जानता है कि उसे उसके कार्य के एवज में उचित महत्व नहीं दिया जाएगा, या फिर उसकी बात कोई नहीं सुनेगा। इस स्थिति में हो सकता है कि वह एक उद्यमी के रूप में अपनी बुद्धि के उचित मूल्य से दरकिनार होने लगे, या फिर उसे दूसरों को समझाने की प्रक्रिया बहुत अधिक परेशान करने वाली प्रतीत होने लगे।

जब राक्षस-राजा तारक ने सत्ता संभाली, तब भी एक संकट उत्पन्न हुआ, देवता तमाम पारंपरिक हथियारों से परिपूर्ण होने के बावजूद उसे नष्ट करने में असमर्थ थे। उसे समय एक ऐसे शासक की आवश्यकता थी, जो सारा का सारा पदभार संभाल ले और जिसके पिता शिव हों। 

इसके पीछे का कारण यह था कि हजारों वर्षों के कठोर तपस्या कर तारक ब्रम्हा जी को प्रसन्न कर करके उनसे देवी-देवता, दानव, मानव पुरे ब्रम्हांड में किसी के हाथों न मारे जाने का वरदान माँग लेता है। लेकिन ब्रम्हा जी इस वरदान को नीति के विरुद्ध कह कर उसे किसी विशिष्ट व्यक्ति के हाथों मारे जाने का वरदान देते हैं, जिसका चुनाव वे तारक के ऊपर ही छोड़ देते हैं। तब तारक अपनी चतुराई का इस्तेमाल कर शिव पुत्र के हाथों मारे जाने की इच्छा प्रकट करता है, जिस पर ब्रम्हा जी तथास्तु कहते है।

यह उस समय की बात है, जब माता सती के अग्नि कुंड में समा जाने के बाद भगवान शिव वैराग्य धारण कर चुके होते हैं। ऐसे में भगवान शिव का पुत्र होना असंभव था। वरदान प्राप्ति के बाद तारक तारकासुर हो जाता है और समस्त लोको में अपना भय पैदा कर रहा होता है। इस दौरान पहाड़ों के राजा हिमवत को लम्बे अरसे के बाद संतान प्राप्ति होती है, जो और कोई नहीं, बल्कि माता पार्वती हैं। 

वहीं, असुर राजा तारकासुर का आतंक और अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। तत्पश्चात सभी देवता प्रेम के देवता कामदेव को भगवान शिव का ध्यान भंग कर भगवान शिव के मन में माता पार्वती के प्रति प्रेम भावना जाग्रत करने की प्रार्थना करते हैं। तत्पश्चात कामदेव धनुष बाण के माध्यम से भगवान शिव पर प्रेम पुष्प बाण चला देते है, जिससे भगवान शिव का ध्यान भंग हो जाता है और वे क्रोधित हो जाते हैं। शिव के मन में माता पार्वती के प्रति प्रेम भावना जागृत होने के बावजूद उनका क्रोध शांत नहीं होता है। और उनके क्रोध की ऊष्मा से छः सिर वाले एक बालक की उत्पत्ति होती है, जिसे छः अप्सराओं ने पाला। अप्सराओं (कृतिकाओं) द्वारा लालन-पालन होने के कारण बालक का नाम कार्तिकेय पड़ा, जिन्होंने बाद में देवताओं की सेना का नेतृत्व करते हुए तारकासुर का वध किया।

हममें से कई लोग मानते हैं कि हम किसी को भी अच्छे वेतन पैकेज और उच्च पदनाम के वादे के साथ टीम में जोड़ सकते हैं। जबकि हम ऐसे व्यक्ति को शामिल करने में विश्वास करते हैं, जो सब कुछ जानता हो, काम करता हो, लेकिन किसी पर हावी न हो। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि हम में से कोई भी नेतृत्व के कुशल गुणों वाले कार्तिकेय के समान व्यक्ति को अपनी टीम में शामिल करने पर कभी विचार नहीं करता। जो व्यक्ति समस्या उत्पन्न करने वाले व्यक्ति से भी बखूबी काम लेना जानता है, वही कार्तिकेय है।

उसे टीम में शामिल करने के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। देवताओं ने भी यही किया, उन्होंने शक्ति की ओर रुख किया। शक्ति वहीं हैं, जिन्होंने एक पर्वत राजकुमारी गौरी के रूप में जन्म लिया। वे शिव की इंद्रियों को जगाने या उनके क्रोध को शांत करने के लिए ही नहीं, बल्कि अपने दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन करने के लिए उनके साथ जुड़ीं। उन्होंने वर्षों शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए ध्यान किया, जिससे शिव भी उनके सम्मुख आए। करुणा की अपील करने के साथ ही माता पार्वती ने शिव के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। लेकिन सांसारिक तौर-तरीकों के प्रति शिव की उदासीनता ने उन्हें पति शब्द के वास्तविक अर्थ से विमुख कर दिया था। लेकिन, उनकी पत्नी के रूप में, गौरी ने धीरे-धीरे शिव को गृहस्थ के तरीकों में शामिल किया और फिर धीरे-धीरे दुनिया के हित के लिए उनकी शक्ति को उजागर किया। पार्वती वही उदाहरण बनीं, जिनकी वजह से देवताओं को दिव्य शासक कार्तिकेय मिले, और जिन्होंने तारक को नष्ट करने में उनकी मदद की। यहाँ पार्वती की तुलना एक सर्वश्रेष्ठ टीम लीडर से की जा सकती है, जिसकी आज के समय में कॉर्पोरेट्स में बहुत जरुरत है।

गौरी के साथ, शिव शंकर बन गये। जबकि शिव के रूप में, वे पूरी तरह शांत, चुप और स्थिर थे, उस समय उनकी दोनों आँखें दृढ़ता से बंद थीं। लेकिन शंकर का रूप धारण करके उन्होंने न सिर्फ दृढ़ता से अपनी कथनी प्रकट की, बल्कि सत्य को सत्य साबित करने के लिए हर संभव कदम उठाए, फिर भले ही उन्हें क्रोध व्यक्त करने वाले तांडव का सहारा ही क्यों न लेना पड़ा हो। यह वही समय था, जब उन्होंने अपनी आँखें खोलीं। उन्होंने अपने भक्तों की पुकार सुनी और उन्हें उत्तर दिया। वे परोपकारी, आसानी से प्रसन्न होने वाले और वरदान देने वाले बन गए। वे अब किसी से भी दूर नहीं थे। आज के समय में कॉर्पोरेट्स में शंकर नहीं, तो उसकी सफलता किसी काम की नहीं। एक लीडर ऐसा हो, जो सामने वाले की गलती पर उसे एहसास दिलाना बेहतरी से जानता हो और आखिर में उसे माफ करते हुए कंपनी को संकट से बाहर भी ले आने का गुण रखता हो, तो कंपनी के प्रत्येक काम-काज संतुलित बने रहते हैं।

गौरी को एहसास हुआ कि हालाँकि बहुत से लोग शिव का अनुसरण करते हैं, लेकिन वे कोई नेता नहीं हैं। उनसे टीम के साथ सहयोग करने या लोगों को प्रेरित करने या उन्हें किसी लक्ष्य की ओर ले जाने की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। वे मात्र एक ऊर्जा थे, न ही सकारात्मक, न ही नकारात्मक, और न ही किसी भी तरह की राय ही रखते थे। इसे समझते हुए, रावण जैसे राक्षसों ने गौरी के आने तक उनकी शक्ति, उनके भोलेपन और उनकी मासूमियत का भरपूर शोषण किया।

जहाँ दक्ष-प्रजापति और कामदेव असफल हुए थे, वहाँ गौरी सफल हो गईं। यही सूझ-बुझ और कार्य कुशलता की जरुरत होती है कॉर्पोरेट में। एक व्यक्ति जरूर ऐसा हो कि जब किसी से कोई स्थिति न सम्भले, तो वह इकलौता सब पर भारी हो, तो कंपनी को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। दक्ष-प्रजापति सत्तावादी हैं, जो एक व्यवस्था में सटीकता की माँग करते हैं। वहीं, कामदेव की तुलना एक मित्र, जादूगर, सम्मोहक या सहायक से की जा सकती है, जो आपको स्वेच्छा से किसी तंत्र विशेष का मजबूत हिस्सा बनने के लिए तैयार करता है। यहाँ तंत्र से तात्पर्य टीम से है। गौरी को एहसास हुआ कि शिव को किसी तंत्र में जबरदस्ती शामिल करने या बहकाने से सिवाए विनाश के कुछ भी हासिल नहीं होगा। इसके परिणाम से रूप में या तो वे अंततः पीछे हट जाएँगे या फिर पूरी दुनिया में तबाही मचा देंगे। इसलिए, भले ही वे उनकी पत्नी थी, फिर भी उन्होंने शिव को भटकते भिक्षुक बने रहने की अनुमति दी। शिव के मूल व्यक्तित्व को बदले बिना ही वे सूझ-बुझ, समझ, दृढ़ संकल्प और दृढ़ता के माध्यम से दुनिया के हित के लिए उनकी प्रतिभा का उपयोग करने में सक्षम थीं।

एक तरह से, हम सभी में उपरोक्त तमाम गुण स्थिति अनुरूप आते चले जाते हैं। हम सभी शिव व्यक्तिवादी, रचनात्मक विचारकों की तरह हैं, जो उस स्थिति में सबसे अच्छा कार्य करते हैं, जब उन्हें स्वयं होने की अनुमति मिल जाती है। समय के साथ हम सभी शंकर बन जाते हैं, दूसरों के साथ काम करने वाली प्रणाली में शामिल हो जाते हैं और इस तरह टीम का हिस्सा बन जाते हैं। इस प्रकार, शंकर संसार के तौर-तरीकों में पूरी तरह घुल-मिलकर विष्णु बन जाते हैं। एक सीईओ, जो विविधता का मूल्य जानता है, वह गहनता से यह सुनिश्चित करता है कि उसके संगठन में कई विष्णु, बड़ी संख्या में शंकर और कुछ शिव लोग हों।

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