जेल एक ऐसी जगह है, जहाँ मामूली-से अपराध का भी एक आरोपी को प्रायश्चित होता है। लेकिन जिस समय उसे वास्तव में सांत्वना अपेक्षित है, यदि उस समय उसके साथ सही व्यवहार नहीं किया जाता, तो उसे एक कट्टर अपराधी बनने में तनिक भी देर नहीं लगती।
जेल में लगभग सारे अपराधी अकेले में रोज अपने अपराध से गुजरते हैं और सोचते हैं कि काश वे वह अंतिम भूल न करते, और उन्हें जेल नहीं आना पड़ता। जब वे दूसरे कैदियों के साथ होते हैं, मिलकर दिन-प्रतिदिन कुछ काम करते हैं, किन्तु अत्यधिक कार्य करवाकर उनके साथ अत्याचार किया जाता है, तो उनमें हताशा उपजती है, उनकी भावनाएँ सख्त हो जाती हैं और कभी-कभी तो उन्हें यह भी लगने लगता है कि “मैंने जो किया वह सही था”, और यहाँ से जन्म लेता है एक कट्टर अपराधी। यदि कोई अपराध करने वाला व्यक्ति अपराधबोध महसूस कर रहा होता है और समाज उसे स्वीकार नहीं कर पाता, तो एक आम आदमी का अपराधी बनना स्वाभाविक है।
और इन्हीं कारणों के तहत, जब वे पेरोल पर छोड़े जाते हैं या रिहा कर दिए जाते हैं, तो वे नहीं जानते कि अपने परिवार का सामना कैसे करें। भारत में कैदियों के लिए खुद को समाज में अपनाए जाने या बदलाव की ओर बढ़ने के मौके न होने से वे और भी अधिक हिंसक हो जाते हैं और फिर उनमें से कई कैदी अपराध को दोहरा भी देते हैं। कई बार तो कैदी सजा लम्बी होने से घबरा जाते हैं और रिहा होने पर सिर्फ लौट आने के लिए ही कोई अपराध कर डालते हैं। यह आश्चर्य की बात है, किन्तु सत्य है कि हमारे देश में अपराध दोहराने वाले अपराधी अधिक हैं। यही कारण है कि जब भी कोई नया अपराध होता है, तो पुलिस आमतौर पर पुराने कैदियों के रिकॉर्ड की सूची सबसे पहले निकालती है।जेलों में एक श्रेणी ऐसी भी होती है, जिसमें सबसे ताकतवर अपराधी एक समूह बना लेता है, जो उसकी बात मानते हैं। वे समूह में ही रहते हैं। जो कैदी उनकी बात नहीं मानती, तो वह श्रेणी उन्हें प्रताड़ित करती है और इस प्रताड़ना से हर दिन वे अपराधी बनते जाते हैं। इस पर जेल प्रशासन को ध्यान देना चाहिए कि ऐसी स्थिति निर्मित न हो, क्योंकि ये स्थितियाँ ही जेल में एक अपराधी को जन्म देती हैं।
कैदियों के प्रति जेलों और अन्य कैदियों का रवैया ही जेल में अपराधी पैदा करता है। एक समाज के रूप में, हमें आपराधिक व्यवहार करने वाले लोगों को सजा देने और काउंसलिंग उपलब्ध कराने में अच्छा संतुलन लाने की जरूरत है। हमें पहले इन लोगों की मनोस्थिति को समझना होगा। याद रहे कि यदि कट्टर अपराधी बदले जा सकते हैं, तो सिर्फ उनकी मानसिक दशा को समझकर।
हाल ही में तिहाड़ जेल में हत्या का उदाहरण भी अछूता नहीं है, जो आम जनता को झकझोर कर रख देने के लिए काफी है। 15 मिनट में गैंगस्टर टिल्लू ताजपुरिया पर 90 वार किए गए। यह भारत के जेलों की सुरक्षा पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा देता है कि अब जेलें कितनी असुरक्षित हो गई हैं।
जेलों के प्रति समाज का नजरिया बदलने की जरूरत है। साथ ही, यह भी ध्यान में रहे कि जेल की सजा काट रहे सभी कैदी जन्मजात अपराधी नहीं होते, बल्कि हालात ने उन्हें आपराधिक कार्य करने को मजबूर किया होता है। यह जेल प्रशासन के साथ समाज की भी जिम्मेदारी है कि जो लोग जन्मजात, आदतन अपराधी नहीं हैं, उन्हें समाज में एक बार फिर से अच्छा दर्जा दिलाएँ।