लॉ ऑफ पब्लिसिटी (प्रचार के कानून) \के मायने, ब्रांड स्थापित करने के लिए काफी

Political Strategist

पब्लिसिटी से जुड़े कानूनों को समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन मैं इसे आपके लिए बेहद आसान बनाने की पूरी कोशिश करूँगा।

बहुत से लोग एडवर्टाइज़िंग और पब्लिसिटी के बीच कंफ्यूज़ होते हैं। लेकिन जब आप मैदान में उतरते हैं, और अपने ब्रांड का विस्तार करने के लिए काम करना शुरू करते हैं, तब यह जान पाते हैं कि पीआर और एडवर्टाइज़िंग बहुत अलग-अलग हैं।

किसी भी कंपनी के बजट के लिए अपने मैसेज को स्पेशलाइज़्ड मीडिया कैटरिंग के जरिए टारगेट ऑडियंस तक पहुँचाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है। इस तरह की परिस्थिति में, पब्लिसिटी, एडवर्टाइज़िंग की तुलना में एक कॉस्ट-इफेक्टिव विकल्प और उससे कहीं अधिक साबित हो सकता है।

एडवर्टाइज़िंग या पीआर: द अल्टीमेट बैटल

आसान भाषा में कहें, तो एडवर्टाइज़िंग एक पेड प्रमोशन है। यहाँ तक कि मार्केटिंग का कम या बिल्कुल भी ज्ञान नहीं रखने वाले लोग भी यह बात जानते हैं कि ये आप ही हैं जो स्वयं अपनी कंपनी और प्रोडक्ट के बारे सारी अच्छी-अच्छी बातें कर रहे हैं। बहुत से लोग विज्ञापनों को लेकर संशय में रहते हैं। जबकि पब्लिसिटी या पीआर, आपकी कंपनी, प्रोडक्ट या सर्विस की जानकारी और मैसेज को थर्ड पार्टी के जरिए लोगों तक पहुँचाने के बारे में है।

वे बाजार में आपके ब्रांड को आम जन के मन से जोड़ने के लिए विभिन्न माध्यमों, जैसे- चैनल्स, न्यूज़पेपर्स, रेडियोज़, सोशल मीडिया तथा ब्लॉग्स आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं। पब्लिसिटी को नियंत्रित करना थोड़ा कम आसान है, और बेशक यह एडवर्टाइज़िंग से अधिक समय लेता है, लेकिन बावजूद इसके पब्लिसिटी अधिक विश्वसनीय है।

पब्लिसिटी से जुड़े कानूनों को समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन मैं इसे आपके लिए बेहद आसान बनाने की पूरी कोशिश करूँगा।

शहनाज़ हुसैन ने 1977 में अपना सैलून खोला और अपने घर को एक क्लिनिक में तब्दील कर दिया। जैसे-जैसे उन्होंने अपने आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स ईजाद करना शुरू किया, तो कुछ समय बाद शहनाज़ हर्बल इंक अस्तित्व में आ गया। तब की तुलना में आज हम, जब कई ब्यूटी प्रोडक्ट्स के ढेरों विज्ञापन देख रहे हैं, ऐसे में दूसरों से विपरीत, शहनाज़ को अपने प्रोडक्ट्स की क्वालिटी पर पूरा भरोसा है। आज, वे अपने पोर्टफोलियो में 350 से अधिक प्रोडक्ट्स के साथ, पूरी तरह से वर्ड-ऑफ-माउथ के जादू के साथ एक मजबूत ब्रांड स्थापित करने में सफल रही हैं।

नैचरल्स आइसक्रीम के बेहद स्वादिष्ट स्वाद को कौन भूल सकता है? लेकिन नैचरल्स ने एडवर्टाइज़िंग पर एक भी पाई खर्च नहीं किया है। शहनाज़ की तरह वे भी यही सोचते हैं कि प्रमोशन के लिए मुँह में पानी ला देने वाली आइसक्रीम ही काफी है। आज, नैचरल्स आइसक्रीम की पहचान विभिन्न शहरों में 135 आउटलेट्स तक बढ़ चुकी है। इसने वित्तीय वर्ष 2020 में 300 करोड़ रूपए का रिटेल टर्नओवर दर्ज किया है और केपीएमजी सर्वे में खुद को कस्टमर एक्सपीरियंस के मामले में भारत के टॉप 10 ब्रांड्स के रूप में नॉमिनेट किया है।

परिधान की दुनिया में ज़ारा एक प्रमुख नाम है और उनका पहला स्टोर 1975 में खोला गया था। 2016 से शुरू होकर उन्होंने दुनियाभर में 2000 स्टोर्स का आँकड़ा पार किया है। एक बात, जो उन्हें भीड़ से अलग रखती है कि वे एडवर्टाइज़िंग पर बहुत अधिक खर्च नहीं करते, यानि अपनी सेल्स का 0.3% से भी कम विज्ञापनों पर खर्च करते हैं।

इंटरब्रांड की लिस्ट में टॉप 5 ब्रांड्स की तुलना, ऐड-एज के टॉप 5 विज्ञापनदाताओं से करें। आप देखेंगे कि भले ही टॉप 5 विज्ञापनदाता अपने ब्रांड को सपोर्ट करने के लिए सालाना अरबों रूपए विज्ञापनों पर खर्च करते हों, लेकिन कोई भी कंपनी या प्रोडक्ट, टॉप ब्रांड्स में शामिल नहीं है। कोका-कोला (टॉप #32 एडवर्टाइज़र) ब्रांड लिस्ट का एकमात्र सदस्य है, जो एडवर्टाइज़िंग का हिस्सा बनते हुए टॉप 100 में शामिल है। गूगल बहुत कम विज्ञापन करता है, लेकिन अक्सर बिज़नेस मैगजीन्स और जनरल प्रेस में फीचर होता है, जिसकी जबरदस्त विश्वसनीयता होती है। एप्पल, स्टारबक्स और आइकिया के लिए भी यही सच है, जो विज्ञापन पर अपेक्षाकृत कम यकीन रखते हैं, लेकिन पीआर को अपना भरपूर समर्थन देते हैं।

हम अतीत की बात करें तो, यह कहा जा सकता है कि ब्रांड-बिल्डिंग प्रोसेस में एक भारी एडवर्टाइज़िंग बजट एक जरुरी हिस्सा होता था, लेकिन जरुरी नहीं है कि जो चीज पहले काम करती थी, वो अभी-भी काम करेगी। मौजूदा दौर में कंपनियों को अपने पक्ष में परिणाम के लिए ब्रांड-बिल्डिंग की आवश्यकता होती है। किसी भी नए ब्रांड को मीडिया में सकारात्मक पब्लिसिटी पैदा करने में सक्षम होना चाहिए, अन्यथा उसे मार्केट में बने रहने का मौका लगभग न के बराबर मिलेगा।

अब सवाल आता है कि आखिर आप पब्लिसिटी कैसे करते हैं?

आप एक बार में, पब्लिसिटी नहीं करा सकते। पब्लिसिटी करने का सबसे अच्छा तरीका है, अपने ऑडियंस का पसंदीदा बन जाना। ऐसा माना जाता है कि पिछले 10 सालों में ऑडियंस की जरूरतें काफी तेजी से बदली हैं। परिणामस्वरूप, ब्रांड्स अब केवल पिछली पीढ़ियों की जरूरतों को ध्यान में रखकर कॉन्टेंट नहीं बना सकते। आज ब्रांड्स को अपना ध्यान उन लोगों पर भी केंद्रित करने की जरुरत है, जो उनके द्वारा बनाए गए कॉन्टेंट्स का उपयोग कर रहे हैं, और जो पुरानी ऑडियंस के मुकाबले नई उम्मीदों से भरे हुए हैं।

न्यूज़ मीडिया बस इस बारे में बात करना चाहता है, नया क्या है, सबसे पहले क्या आया है, क्या चर्चा में है और क्या चर्चा में नहीं है। इसलिए जब भी आपका ब्रांड न्यूज़ बना रहा होता है, तो उसे पब्लिसिटी करने का मौका भी जरूर मिलता है। आप अपने ब्रांड के बारे में जो भी बातें कह रहे हैं, उससे कहीं अधिक ताकतवर वो बातें होती हैं, जो दूसरे आपके ब्रांड के बारे में कह रहे हैं। इसलिए सामान्य तौर पर पब्लिसिटी, एडवर्टाइज़िंग की तुलना में अधिक प्रभावी होती है। और शायद यही वजह है कि पिछले दो दशकों में, पब्लिसिटी को ब्रांडिंग की सबसे प्रभावी ताकत के रूप में ग्रहण किया गया है।

ऑडियंस केवल आपके ब्रांड के बारे में नहीं जानना चाहती है, बल्कि वह आपके मूल्यों और विश्वास के बारे में भी जानना चाहती है। भावनात्मक और मानसिक स्तर पर ऑडियंस के साथ जुड़ना बेहद जरुरी है। आज सोशल मीडिया, ब्रांड्स के लिए ऑडियंस की एक विशाल रेंज तक पहुँच बनाने के लिए कुछ टॉप इंगेजमेंट प्लेटफॉर्म्स के रूप में काम कर रहा। जोमैटो का ही उदहारण लें, तो आप पाएँगे कि जोमैटो आज ऑनलाइन फूड डिलीवरी का पर्याय बन गया है।

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