वर्तमान परिदृश्य में, विश्व एक स्थायी भविष्य के सृजन में एकजुट है। पर्यावरण के विषय में यह स्थिरता, पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों, इकोसिस्टम, जलवायु और वातावरण के प्रबंधन और सुरक्षा को लेकर है, ताकि वर्तमान के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियाँ भी एक सभ्य जीवन जी सकें और लाखों अन्य जीव, जिनके साथ हम पृथ्वी की इस एक ही छत के नीचे रहते हैं, वे भी इनका लाभ उठा सकें। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाश में लाए गए सतत विकास लक्ष्य, एक बेहतर दुनिया की स्थापना के लिए सबसे महत्वाकांक्षी योजना है। उद्देश्य सरल है- पर्यावरणीय स्थिरता के बीच सामंजस्य स्थापित करना।
सरल शब्दों में एसडीजी एक एजेंडा, लोगों, पृथ्वी और समृद्धि के लिए एक कार्य योजना है, जिसका लक्ष्य सार्वभौमिक शांति को मजबूत करना है। 17 सतत विकास लक्ष्य इस नए सार्वभौमिक एजेंडे के पैमाने को प्रदर्शित करते हैं। वे सभी को मानवाधिकारों की दिशा में आगे बढ़ाते हुए लैंगिक समानता और सभी महिलाओं तथा बालिकाओं को सशक्त बनाने में योगदान देंगे। ये लक्ष्य सतत विकास के तीन आयामों- आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण को एकीकृत और संतुलित करते हैं। ये लक्ष्य मानवता और पृथ्वी को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अगले कुछ वर्षों में कार्रवाई को प्रोत्साहित करेंगे।
1. गरीबी को हर एक रूप में जड़ से खत्म करना
गरीबी एक ऐसा विषय है, जिसका सामना पूरी दुनिया किसी न किसी रूप में कर रही है। हालाँकि, सरकार इस मुद्दे पर कार्यरत है, फिर भी इसे जड़ से खत्म करने में एक लंबा रास्ता तय करना है।
गरीबी के मुद्दे को हल करने के मुख्य पहलुओं में से एक, उन नागरिकों की पहचान करना है, जिन्हें गरीब या गरीबी रेखा से नीचे माना जा सकता है। सरकारें कमजोर लोगों की मदद के लिए तरह-तरह की योजनाएँ भी चलाती हैं, लेकिन मेरा मानना है कि उन्हें इन योजनाओं का आदी नहीं बनाया जाना चाहिए। कारण यह है कि यह निर्भरता उन्हें आगे बढ़ने से रोकेंगी और देश को पीछे की ओर धकेल देंगी। तो क्यों हाथों पर सारी सुविधाएँ परोसने के बजाए क्यों न उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद की जाए? इस पर अमल करने के लिए जरूरतमंदों को अस्थायी या स्थायी नौकरी दी जा सकती है, ताकि वे अपनी कमाई खुद कर सकें। ऐसे कई उपाय आने वाले कुछ वर्षों में गरीबी के इस विषय से उबरने में मददगार साबित हो सकते हैं। अलग-अलग देश गरीबी उन्मूलन के लिए अलग-अलग योजनाएँ बना रहे हैं। यह देखना बाकी है कि 2030 तक कितना हासिल किया जा सकता है।
2. शून्य भुखमरी
भूख वैश्विक स्तर पर मौत का प्रमुख कारण है। हमारी पृथ्वी ने हमें धन-धान्य का अनमोल उपहार दिया है, लेकिन इसकी असमान पहुँच और अक्षम संचालन से लाखों लोग कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। पृथ्वी हमें हर एक इंसान का पेट भरने लायक पर्याप्त भोजन प्रदान कर रही है, इसके बावजूद विश्व के कुछ हिस्सों में भुखमरी एक गंभीर मुद्दा है।
शून्य भुखमरी लक्ष्य को हासिल करने की बात करने से पहले, एक बात पर विचार करें- भारत की आबादी एक अरब से अधिक है और यदि आप जनसंख्या के आँकड़ों के साथ कृषि भूमि की उपलब्धता की तुलना करते हैं, तो आप दोनों के बीच एक बड़ा अंतर पाएँगे। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में कृषि क्षेत्र में बढ़ते प्रयासों के साथ, भारत किसी तरह इस अंतर को कम करने में कामयाब रहा है। बुनियादी ढाँचे में सुधार, भोजन की बर्बादी को कम करना, कृषि के लिए महत्वपूर्ण योजनाएँ शुरू करना और झूठा छोड़ने पर विशेष प्रावधान लागू करना बेहतर परिणाम दे सकता है।
3. उत्तम स्वास्थ्य तथा खुशहाली
जो व्यक्ति उत्तम स्वास्थ्य का आनंद लेता है, वास्तव में वह अमीर तथा समृद्ध होता है। अच्छा स्वास्थ्य न सिर्फ जीने के लिए जरुरी है, बल्कि यह आर्थिक वृद्धि तथा सम्पन्नता को भी बल देता है, जो खुशहाल जीवन का परिणाम है। वर्तमान में, हम महामारी के बाद का जीवन जी रहे हैं। कोविड महामारी ने दुनिया को बदल कर सभी के लिए अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। यह तीसरा लक्ष्य अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने के बारे में है और महामारी को जड़ से खत्म करने और गैर-संचारी रोगों की घटनाओं को कमतर करने पर जोर देता है।
भारत स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित मुद्दों की पहचान करने और संभवतः उनका उन्मूलन करने के लिए अपने तरीके से काम कर रहा है। हानिकारक रसायनों के उपयोग को कम करने में योगदान, जिससे कि वातावरण सुरक्षित रहे; अपने-अपने स्तर पर प्रदुषण को कम करने में सहयोग; वाहनों का कम से कम उपयोग करके साइकलिंग को बढ़ावा; योग तथा व्यायाम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना और सात्विक भोजन अपनाना आदि जैसे उपाय इस लक्ष्य की प्राप्ति में कारगर हो सकते हैं। इसके साथ ही गंभीर बीमारियों को लेकर एक निश्चित समय अंतराल के दौरान उचित जाँचें आदि कराने का प्रावधान हो; आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों को कम शुल्क या निःशुल्क इलाज तथा उचित दवाइयाँ प्राप्त हों; बेहतर चिकित्सा को लेकर देश के हर कोने में ठोस नियम बनाए जाएँ, तब जाकर देश का हर नागरिक उत्तम स्वास्थ्य तथा खुशहाली से फलीभूत हो सकेगा।
4. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
शिक्षा, राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैसा कि कहा जाता है, शिक्षा दुनिया को बदलने का एक बड़ा हथियार है। आज भारत में पहले से अधिक ज्ञान तथा शिक्षा का भंडार है, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति उसका लाभ नहीं उठा पाता है। शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक प्रशिक्षण भी वर्तमान युग में छात्रों के लिए आवश्यक है। नौकरी के बाजार में प्रतिस्पर्धा के लगातार बढ़ने के साथ, छात्रों को ऐसे कौशल सिखाने की जरूरत है, जो नौकरी हासिल करने के लिए जरूरी माने जाते हैं। साथ ही, यह व्यावसायिक प्रशिक्षण छात्रों को बचपन से ही दिया जाना चाहिए, ताकि वे अपने लिए सही करियर का रास्ता चुन सकें।
शिक्षा में वह ताकत होती है जिससे पूरी दुनिया को बदला जा सकता है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सतत विकास लक्ष्य की बुनियाद है। भारत सरकार ने ‘स्कूल चले हम’ की पहल करके सभी स्तरों पर शिक्षा की सुलभता को बढ़ाने तथा स्कूल्स में भर्ती की दरों में वृद्धि करने पर बहुत प्रगति की है और अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसी महत्वपूर्ण पहलों में इजाफा सतत भारत में इजाफा करेगा।
5. लैंगिक समानता
लैंगिक समानता एक ऐसा विषय है, जिससे देश-दुनिया लम्बे अरसे से पीड़ित है। हालाँकि अपने-अपने स्तर पर देश इस लक्ष्य को हासिल करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन नतीजे उतने सकारात्मक नहीं हैं। लैंगिक भेदभाव जन्म और यहाँ तक कि उससे पहले से ही शुरू हो जाता है। इन्हीं कारणों से लिंग-चयन, गर्भपात और शिशुहत्या जैसे विषयों को बढ़ावा मिलता है। वहीं दहेज भी लैंगिक समानता में अरसे से रोड़ा बना हुआ है।
इसके लिए ना सिर्फ महत्वपूर्ण योजनाएँ बनाने की जरुरत है, बल्कि उन पर अमल किया जाना वास्तव में आधुनिक समय की माँग भी है। गर्भपात और शिशुहत्या जैसे मामलों पर कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान हो और और बदले में संबंधित लिंग के अनाथ बच्चों की आजीवन परवरिश का जिम्मा ऐसी दम्पत्तियों पर सौंप देना चाहिए। सही मायने में इससे अच्छा माध्यम हो ही नहीं सकता, जिसमें अनाथ को परिवार का साथ मिल सकेगा और दंपत्ति भी ऐसे अपराधों को करने से पहले हजार बार सोचेंगे। कार्यस्थल में लैंगिक समानता को भी संबोधित किया जाना चाहिए, जहाँ महिलाओं और पुरुषों दोनों को खुद को साबित करने के समान अवसर दिए जाने चाहिए
6. स्वच्छ जल और स्वच्छता
जल है तो कल है और जल से ही जीवन है। स्वच्छ जल और स्वच्छता स्वस्थ जीवन के पूरक हैं और इसकी सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक है। सतत विकास यह आश्वस्त करता है कि सभी को स्वच्छ जल और स्वच्छता की पहुँच प्राप्त हो। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हाल के वर्षों में भूजल स्तर में लगातार कमी और वर्षा की असंगति के साथ, दुनिया के कई हिस्सों में पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। यदि हम भारत की बात करें, तो असंख्य लोग सुविधाओं के अभाव में पानी की कमी या अस्वच्छ वातावरण के अधीन हैं।
आज हालात ऐसे हैं कि अपर्याप्त जल आपूर्ति, स्वच्छता और साफ-सफाई के चलते उत्पन्न बीमारियों के कारण हर वर्ष लाखों लोगों और बच्चों की मौत हो जाती है। नदियों के किनारे बसे शहरों की स्थिति तो और भी बदतर है। इन नदियों में कल-कारखानों और स्थानीय निकायों द्वारा फेंका गया रासायनिक कचरा, मल-मूत्र और अन्य अवशिष्ट उन्हें प्रदूषित कर रहे हैं। इन नदियों के जल का उपयोग करने वाले लोग कई गंभीर रोगों का शिकार हो रहे हैं। इससे बचने के लिए लोगों को नदियों को दूषित होने से बचाने के लिए जागरूक होना होगा। उन्हें यह समझना होगा कि उनके द्वारा नदियों तथा तालाबों में फेंका गया कूड़ा-कचरा उनके ही पेयजल को दूषित कर रहा है।
कल-कारखानों के मालिकों को इसके लिए बाध्य करना होगा कि वे प्रदूषित और रासायनिक पदार्थों को नदियों में कतई न जाने दें। यदि कोई ऐसा करता पाया जाए, तो उसे कठोर दंड दिया जाए। जब तक हम जल की महत्ता को समझते हुए नदियों को साफ रखने की मुहिम का हिस्सा नहीं बनते हैं, तब तक नदियों को कोई भी सरकार साफ नहीं रख सकती है। सरकार स्वच्छ भारत अभियान से मिले जनता के भरपूर समर्थन के समान ही स्वच्छ जल लक्ष्य पर विजय प्राप्त कर सकती है।
7. सस्ती तथा प्रदुषण-मुक्त ऊर्जा
पिछले कुछ वर्षों में ऊर्जा की खपत में बहुत बदलाव आया है। स्थायी ऊर्जा के साथ लोगों के पास अपने जीवन और अर्थव्यवस्था को बदलने का मौका होगा। सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य में ऊर्जा दक्षता में सुधार करने, नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग का विस्तार करने और सभी के लिए आधुनिक, टिकाऊ ऊर्जा को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है।
पृथ्वी में संचित कोयला तथा पेट्रोलियम लम्बे समय से हमारी आवश्यकताओं को पूरा करते रहे हैं। ये अनवीकरणीय स्त्रोत अभी भी धरती की गहराई में विद्यमान हैं। लेकिन एक बार इनका प्रयोग कर लेने के बाद पुनः उपयोग नहीं किया जा सकता है। कोयला तथा पेट्रोलियम जैसे जीवाश्मी ईंधन के निरंतर उपयोग से भविष्य में ये समाप्त हो जाएँगे, साथ ही ये प्रदुषण का कारण भी हैं। इस हेतु यह आवश्यक है कि हम ऐसी ऊर्जा का उपयोग करें, जो नवीकरणीय है।
सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा प्रत्यक्ष रूप से सभी ऊर्जाओं का कारण बनती है। इसी ऊर्जा का रूपांतरण अन्य सभी ऊर्जाओं की आधारशिला है।
पवन, जल, सौर, बायोमास तथा भूतापीय ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा कभी खत्म नहीं होती और प्रदूषण मुक्त होती है। जिस प्रकार हमारी आवश्यकताएं निरंतर बढ़ रही हैं, इन्हें पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों के उपयोग में वृद्धि अति आवश्यक है ताकि भविष्य में ऊर्जा संकटों का सामना न करना पड़े।
8. उत्कृष्ट कार्य तथा आर्थिक वृद्धि
इस लक्ष्य के तहत उत्पादकता और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देकर दीर्घकालिक आर्थिक विकास में वृद्धि करना है। लेकिन सही मायनों में जब तक उद्यमशीलता और नौकरी के अवसरों को बढ़ावा देने और जबरन श्रम, गुलामी, मानव तस्करी आदि को खत्म करने पर काम नहीं होगा, तब तक रोजगार के ग्राफ और सभी के लिए एक सुरक्षित कार्य वातावरण को बढ़ावा नहीं मिल सकेगा। इसके लिए देश प्रयासरत हैं कि प्रत्येक नागरिक के पास एक सम्मानजनक नौकरी हो और वह अपने देश की अर्थव्यवस्था में योगदान दे। नौकरी के अवसरों को बढ़ाने के लिए आवश्यक पहलों की शुरुआत ही नहीं, बल्कि उन पर काम करना भी समय की माँग है।
बेरोजगारी कई देशों के गंभीर मुद्दों में से एक है। किसी विषय में विशेषज्ञता का मतलब यह नहीं है कि आपको इस अत्यधिक आबादी वाले देश में उसी स्ट्रीम में नौकरी मिले, इससे आगे आना ही होगा। हाल ही में, कई युवा खुद के व्यवसाय स्थापित करने के लिए अनूठे विचारों के साथ आगे आ रहे हैं। सिर्फ आगे ही नहीं आ रहे हैं, बल्कि सफलता की परिभाषा भी रच रहे हैं। किसी भी तरह के व्यवसाय को करने में आज के युवा में झिझक नहीं है। यदि देश का हर युवा इस तरह आगे को बढ़ता रहेगा, तो न सिर्फ खुद को अपने पैरों पर खड़ा कर सकेगा, बल्कि देशी की आर्थिक वृद्धि में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकेगा।
9. उद्योग, नवाचार तथा बुनियादी सुविधाएँ
इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण, विश्वसनीय, टिकाऊ और लचीले बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना, आर्थिक विकास और मानव कल्याण का समर्थन करना और सभी के लिए सस्ती और समान पहुँच पर जोर देना है। आर्थिक विकास के लिए औद्योगिक विकास आवश्यक है। स्टार्टअप्स और उद्यमियों की लगातार वृद्धि के साथ, भारत वैश्विक मंच पर अपना नाम बनाने में सफल रहा है। इसके अलावा, औद्योगिक क्षेत्र और बुनियादी ढाँचे के नेटवर्क पर ध्यान केंद्रित करना फिर भी गुणवत्तापूर्ण नौकरियों के निर्माण और आर्थिक लाभ के समान वितरण में योगदान दे सकता है।
विकासशील देशों में कुल मिलाकर करीब 2.6 अरब लोग दिन भर के लिए बिजली पाने में कठिनाई महसूस करते हैं। इसके अलावा दुनिया भर में 2.5 अरब लोग बुनियादी स्वच्छता से वंचित हैं, जबकि लगभग 80 करोड़ लोगों को जल सुलभ नहीं है, जिनमें से लाखों लोग सहारा के दक्षिणी अफ्रीकी देशों और दक्षिण एशिया में अनेक निम्न आय वाले देशों के लिए बुनियादी सुविधाओं की मौजूदा सीमाएँ उत्पादकता पर करीब 40% तक असर डालती हैं। ऐसा अनुमान है कि उद्योग और संचार की एक मजबूत वास्तविक श्रंखला उत्पादकता और आय बढ़ा सकती है और स्वास्थ्य, खुशहाली तथा शिक्षा में सुधार लाया जा सकता है।
10. असमानताओं में कमी
सतत विकास का यह लक्ष्य आयु, लिंग, विकलांगता, धर्म और आर्थिक आधार पर देशों के भीतर और उनके बीच आय असमानताओं को कम करने का प्रयास करता है। इस लक्ष्य के चलते यह भी सुनिश्चित किया गया है कि भारत वर्ष के प्रत्येक व्यक्ति को अन्य व्यक्ति के समान ही अधिकार प्राप्त हो। इसके साथ ही विकलांगता, जातीयता, मूल धर्म, आर्थिक अथवा किसी अन्य भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना तथा परिणाम की असमानताएँ कम करना भी शामिल है।
जैसा कि मैंने पहले कहा, सभी नागरिकों को उनकी ताकत और क्षमताओं के आधार पर समान नौकरी के अवसर दिए जाने चाहिए। इसके अलावा, अमीर और गरीब के बीच एक बड़ा अंतर देखने में आता है। कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, जबकि गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। इस अंतर को कम करना सरकार के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। प्रधान मंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई), प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार ग्यारंटी अधिनियम (मनरेगा), दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (डीडीयूजीकेवाई), स्टैंडअप इंडिया स्कीम जैसे असंख्य कार्यक्रम और योजनाएँ शुरू की गई हैं, जो वास्तव में सराहनीय हैं। असमानता को जड़ से खत्म करने के लिए इस तरह की आवश्यक पहल किया जाना बेहद जरुरी है।
11. संवहनीय शहर तथा समुदाय
शहरीकरण के परिणामस्वरूप नई नौकरियाँ और संभावनाएँ पैदा हुई हैं, साथ ही गरीबी में भी कमी आई है। शहर देशों के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे लोगों को आर्थिक और सामाजिक रूप से विकसित होने के अवसर प्रदान करते हैं। परिणामस्वरूप, केंद्र सरकार ने झुग्गियों के विकास को बढ़ावा देने वाले ग्रामीण-शहरी प्रवास की इस लहर से उत्पन्न माँग को पूरा करने के लिए भारत के सीमित किफायती शहरी आवास स्टॉक के समाधान के रूप में प्रधान मंत्री आवास योजना की पहल की है। प्रधानमंत्री आवास योजना का उद्देश्य 2022 तक सबके लिए आवास का लक्ष्य हासिल करना है।
आधा मानव समुदाय यानी 3.5 अरब लोग आज शहरों में रहते हैं और अनुमान है कि 2030 तक 10 में से 6 व्यक्ति शहरों के निवासी होंगे। दुनिया में 30% शहरी जनसंख्या तंग बस्तियों में रहती है और सहारा के दक्षिण अफ्रीकी देशों में आधे से अधिक शहरी निवासी तंग बस्तियों में रहते हैं। यदि हम भारत की बात करें तो यहाँ भी शहरीकरण तेजी से हो रहा है। 2001 और 2011 के बीच देश की शहरी जनसंख्या में 9.1 करोड़ की वृद्धि हुई। अनुमान है कि 2030 तक भारत में एक-एक करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाले 6 मेगा शहर होंगे। साथ ही तंग बस्तियों की स्थिति में सुधार करना, सुरक्षित, सस्ती, सुलभ और संवहनीय परिवहन प्रणालियों तक पहुँच जुटाना, सार्वजनिक परिवहन के विस्तार से सड़क सुरक्षा सुधारना और देश की सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहर के संरक्षण एवं सुरक्षा के प्रयास मजबूत करना आदि इस लक्ष्य में शामिल हैं।
12. संवहनीय उपभोग तथा उत्पादन
हमारी पृथ्वी भीषण दबाव में है, इसका भविष्य बड़ा ही दयनीय है, जिसका कारण प्रत्यक्ष रूप से मानव समुदाय है। कारखानों के उड़ते धुएँ, लगातार कटते पेड़, नदियों और महासागरों का दूषित होता जल, रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग किया जाने वाला प्लास्टिक, रोज का बर्बाद होता अनाज और ऐसे ही कई विषय प्रकृति को सता रहे हैं जो बेहद गंभीर हैं। यदि वर्ष 2050 तक विश्व की जनसंख्या 9.6 अरब तक पहुंचती है, तो हमें हर व्यक्ति की मौजूदा जीवन शैली को सहारा देने के लिए 3 पृथ्वियों की आवश्यकता होगी। हालात ऐसे हैं कि हर वर्ष कुल आहार उत्पादन का लगभग एक-तिहाई अर्थात 10 खरब अमरीकी डॉलर मूल्य का 1.3 अरब टन आहार उपभोक्ताओं और दुकानदारों के कचरों के डिब्बों में सड़ता है अथवा परिवहन और फसल कटाई के खराब तरीकों के कारण बर्बाद हो जाता है।
यह लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है, जब हम न सिर्फ अपनी अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि करें, बल्कि उस प्रक्रिया में बर्बादी को भी कम से कम करें। राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति और राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा निधि सरकार की कुछ प्रमुख योजनाएँ हैं, जिनका उद्देश्य संवहनीय खपत और उत्पादन हासिल करना तथा प्राकृतिक संसाधनों के कुशल उपयोग का प्रबंधन करना है। कम साधनों से अधिक और बेहतर लाभ उठाना, संसाधनों का उपयोग, विनाश और प्रदूषण कम करके आर्थिक गतिविधियों से जन कल्याण के लिए कुल लाभ बढ़ाना और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना, उपभोक्ता स्तरों पर भोजन की प्रति व्यक्ति बर्बादी को आधा करना और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान सहित उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाओं में खाद्य पदार्थों की क्षति को कम करना भी इसमें शामिल है।
इसके साथ ही 2030 तक रिसाइक्लिंग और दोबारा इस्तेमाल के जरिए कचरे की उत्पत्ति में उल्लेखनीय कमी करना भी इस लक्ष्य के अंतर्गत सुनिश्चित किया गया है। इतना ही नहीं, शिक्षा पाठ्यक्रम में सतत विकास को शामिल करना और इसके बारे में जन जागरूकता पैदा करना इस लक्ष्य के अवलोकन पर एक बड़ा प्रभाव पैदा कर सकता है।
13. जलवायु कार्रवाई
जीवन का वरदान देने वाली पृथ्वी का आज स्वयं का जीवन संकट में है। विश्व की बढ़ती जनसँख्या, कटते पेड़, दूषित हवा और जल, प्रदुषण, प्राकृतिक संसाधनों के साथ छेड़छाड़ एवं बिगड़ते वातावरण के साथ पृथ्वी की जलवायु में लगातार बदलाव हो रहे हैं। इसका सीधा असर मनुष्य सहित अनेकों प्राणियों के जीवन स्तर पर पड़ रहा है एवं हमें मौसम के बदलते रूप, समुद्र के चढ़ते जल स्तर और कठोर मौसम का सामना करना पड़ रहा है। इस परिवर्तन में सहायक, इंसानी गतिविधियों से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन, आपदाओं को भी बढ़ा रहा है और उसका सामना करना हमारे जीवन की रक्षा और आने वाली पीढ़ियों के जीवन तथा खुशहाली के लिए अत्यंत आवश्यक है।
इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और इसके परिणामों से लड़ने के लिए तत्काल कार्रवाई करना है। यह जलवायु से संबंधित खतरों के प्रति लचीलापन और अनुकूलन क्षमता बढ़ाने और ऐसे उपायों को राष्ट्रीय नीतियों में शामिल करने पर केंद्रित है। पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, पनबिजली ऊर्जा आदि सहित नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में बड़े सुधार किए जा रहे हैं। लेकिन हाल ही में देश में बिजली की बढ़ती मॉंग के कारण कोयले के उपयोग में कटौती करना मुश्किल होता जा रहा है। भारत को एक साथ बिजली की माँग को संतुलित करने और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने के तरीकों को सामने लाने की जरूरत है। इस लक्ष्य के अंतर्गत जलवायु से जुड़े खतरों और प्राकृतिक आपदाओं को सहने तथा उनके अनुरूप ढलने की क्षमता मजबूत करने के साथ ही प्लास्टिक पर रोक लगाकर नदियों और महासागरों के दूषित होने पर रोक लगाना मौजूदा समय की माँग है, नहीं तो देश-दुनिया प्रकृति के प्रकोप के नीचे दबकर रह जाएगी।
14. जलीय जीवों की सुरक्षा
हम बेशक थल पर रहते हैं, लेकिन महासागरों के हम पर किए जाने वाले परोपकारों का कर्ज चुकता करने के बारे में सोचना भी हमारे लिए कठिन है। महासागरों पर हमारी निर्भरता कल्पना से परे है। नदियाँ, झीलें, समुद्र और महासागर पृथ्वी की सतह के 70% से अधिक हिस्से में घिरे हुए हैं और जीवन समर्थन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इंसान की पैदा की हुई करीब 30% कार्बन डाइऑक्साइड महासागर ग्रहण कर लेते हैं, यानी विश्व की गर्म होती जलवायु का असर कम करते हैं। वे दुनिया में प्रोटीन के सबसे बड़े स्रोत भी हैं। हमारी वर्षा का जल, पेयजल, मौसम, जलवायु, तट रेखाएँ, हमारा अधिकतर भोजन और जिस हवा में हम साँस लेते हैं, उसकी ऑक्सीजन भी अंतत: सागर से आती है।
बिना निगरानी के मछली की पकड़ के कारण मछली की बहुत-सी प्रजातियाँ इन सागरों से तेजी से गायब हो रही हैं और वैश्विक मछली पालन और उससे जुड़े रोजगार को बचाने तथा पुराने रूप में वापस लाने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो रही है। दुनिया के लगभग 40% महासागर प्रदूषण, घटती मछलियों तथा तटीय पर्यावास के क्षय सहित इंसानी गतिविधियों से बुरी तरह प्रभावित हैं। इन मुद्दों से उबरने के लिए सरकारों को चाहिए कि उचित योजनाएँ शुरू करें, जिससे कि क्षय को रोका जा सके। मछली पालन आदि से संबंधित व्यवसायों के लिए भी सीमा तय करने का प्रावधान होना चाहिए।
15. थलीय जीवों की सुरक्षा
धरती पर रहने वाले अरबों-खरबों प्राणियों में केवल मनुष्य ऐसा प्राणी है, जो हर रूप में अन्य से समर्थ, सक्षम, सबल और संपन्न है। सबसे प्रबल प्रजाति के रूप में हमारा भविष्य हमारे सबसे महत्वपूर्ण पर्यावास-जमीन की हालत पर निर्भर करता है। मानवीय गतिविधियों तथा जलवायु परिवर्तन के कारण वृक्षों का कटाव और मरुस्थलीकरण सतत् विकास में एक बड़ी चुनौती है और इसने गरीबी से संघर्ष में लाखों लोगों के जीवन एवं आजीविका पर असर डाला है।
इसका लक्ष्य स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र के सतत उपयोग को बनाए रखने, बहाल करने और बढ़ावा देने, स्थायी वन प्रबंधन, मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने, भूमि क्षरण को रोकने और उलटने पर ध्यान केंद्रित करता है, और साथ ही राष्ट्रीय और नगरपालिका योजना में पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता को शामिल करता है। इस लक्ष्य के तहत थलीय जीवों की सुरक्षा लक्ष्य में प्राकृतिक पर्यावास का विनाश रोकने, पशुओं की चोरी और तस्करी समाप्त करने तथा पारिस्थतिकी और जैव विविधता मूल्यों को स्थानीय नियोजन एवं विकास प्रक्रियाओं में शामिल करने के लिए तत्काल कार्रवाई करना सुनिश्चित किया गया है। इसके साथ ही इस लक्ष्य में वृक्ष कटाव को रोकना, मरुस्थलीकरण रोकना, मरुस्थलीकरण से क्षतिग्रस्त भूमि सहित क्षतिग्रस्त जमीन और मिट्टी को फिर से उपयोग लायक बनाना तथा ऐसे विश्व की रचना करना जहाँ भूमि का क्षय न हो, शामिल किया गया है। इसके साथ ही सरकार द्वारा प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलिफेंट नाम की दो अलग-अलग योजनाएँ संचालित की गई हैं, जिनका उद्देश्य देश के दो सबसे भव्य पशुओं का संरक्षण करना है।
16. शांति, न्याय तथा सशक्त संस्थाएँ
आज न जाने कितने ही लोग किसी न किसी रूप में हिंसा के शिकार होते हैं। हिंसा दुनियाभर में देशों के विकास, वृद्धि, खुशहाली और अस्तित्व के लिए सबसे विनाशकारी चुनौती है। भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, शोषण, चोरी और कर वंचना आदि ऐसे कितने ही विषय हैं, जो चिंताजनक हैं और किसी न किसी रूप में जनहानि तथा मानहानि को जन्म देते हैं। इंसान को इस जानलेवा बीमारी ने इस कदर जकड़ रखा है कि इनका जड़ से विनाश करना मानव कल्पना से परे है।
सतत विकास के लिए शांति, स्थिरता और कानून के शासन के आधार पर प्रभावी शासन और समानता, मानवाधिकारों और न्याय के आदर्शों का समर्थन करने की आवश्यकता है। 2030 एजेंडा संघर्ष और असुरक्षा को खत्म करने के लिए सरकारों और समुदायों के साथ सहयोग करते हुए सभी प्रकार की हिंसा को काफी हद तक कम करने की आकांक्षा रखता है। आधार प्रणाली, एक बायोमेट्रिक पहचान डेटाबेस जो निवासियों को सार्वजनिक संस्थानों के साथ पंजीकरण करने और उनकी माँगों से अवगत कराने के लिए एक केंद्रीकृत तंत्र प्रदान करता है, सरकारी सेवाओं की आपूर्ति बढ़ाने में सबसे महत्वपूर्ण प्रगति में से एक रहा है। सभी नागरिकों को अपने सार्वजनिक संस्थानों में समान रूप से भाग लेने के लिए सरकार के साथ उचित रूप से पंजीकृत होना चाहिए। भारत का देश में सभी जन्मों को पंजीकृत करने का एक दीर्घकालिक लक्ष्य रहा है।
17. लक्ष्य हेतु भागीदारी
किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को तब तक करना मुश्किल होता है जब तक आप अकेले हो, लेकिन किसी के सहयोग और भागीदारी के साथ किया गया कार्य हमेशा पॉजिटिव रिजल्ट ही देता है। लक्ष्य हेतु भागीदारी ऐसी चुनौती है, जो सतत विकास के अन्य सभी 16 लक्ष्यों के बारे में भारत के द्वारा किए जा रहे प्रयासों को एकजुट करती है। एक सफल सतत् विकास एजेंडा के लिए सरकारों, निजी क्षेत्रों और समाज के बीच भागीदारी आवश्यक है।
#2030 का भारत कैसा हो, इस विचार पर कार्य करने के लिए लक्ष्य हेतु भागीदारी विषय शरीर में आत्मा की भूमिका की तरह है, जिसके बिना शरीर प्राणहीन सा है। इस लक्ष्य में यह सुनिश्चित किया गया है कि भारत दुनिया के साथ नेटवर्क कायम करे, इसके साथ ही विकासशील देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन सहित घरेलू संसाधन जुटाने की व्यवस्था को मजबूत करना जिससे कर और अन्य राजस्व संकलन के लिए देशों की क्षमता में सुधार हो सके, विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवाचार की सुलभता बढ़ाना, गरीबी उन्मूलन और सतत विकास के लिए नीतियाँ बनाने और लागू करने हेतु एक-दूसरे देश की नीतिगत क्षमता और नेतृत्व का सम्मान करना, सतत विकास के बारे में प्रगति के ऐसे पैमाने विकसित करने हेतु मौजूदा प्रयासों को आगे बढ़ाना जो सकल घरेलू उत्पाद के पूरक हों और विकासशील देशों में सांख्यिकीय क्षमता निर्माण को समर्थन दें, आदि सम्मिलित हैं।
सतत विकास के लक्ष्यों को एक अभूतपूर्व परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से विकसित किया गया है, जो इस महत्वाकांक्षी एजेंडा पर बातचीत करने और अपनाने के लिए राष्ट्रीय सरकारों और दुनिया भर के लाखों नागरिकों को एक साथ लाया है। हालाँकि, सभी देशों की सरकारें पहले से ही इन लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में काम कर रही है, लेकिन यह देखना बाकी है कि वह दी गई समयसीमा में कितना हासिल कर पाती है।