अर्थव्यवस्था के चक्रव्यूह में फंसी सरकार, लेकिन मर रहा भारतीय

Government stuck in economic maze, but Indian is dying

डर के साथ बेबसी का माहौल: हाल-ए-हिन्दूस्तान

तुम चिल्लाते रहो और हम खामोश बने रहेंगे

क्या यही संकेत दे रही है अर्थव्यवस्था के मामले में सरकार की चुप्पी! इन 7 दशकों में शायद ही जनता ने अर्थव्यवस्था को लेकर कभी इतनी चिंता नहीं जताई होगी, जितनी आज वह डरी हुई है, बेबस है, उसमें अविश्वास व्याप्त है। सरकार की खामोशी उसके डर को और भी बढ़ा रही है। अर्थव्यवस्था कब पटरी पर वापिस आएगी, यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है।

लेकिन सरकार ने भी अपनी नीतियों से ऐसा चक्रव्यूह रच दिया है, जिसमें अब वह खुद फंस चुकी है और निकलने का रास्ता नहीं भेद पा रही है। महाभारत के चक्रव्यूह में तो केवल अभिमन्यु मरा था। लेकिन अर्थव्यवस्था का चक्रव्यूह हर रोज भारतीयों को मौत के घाट उतार रहा है और यह चक्रव्यूह तब तक भारतीयों की जान लेता रहेगा, जब तक सरकार इस चक्रव्यूह से खुद को बाहर नहीं निकाल पाती। वहीं भारतीयों को आज पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में महाभारत का अर्जुन नजर आ रहा है। देश में केवल वे ही हैं, जो इस चक्रव्यूह को भेदना जानते हैं।

जिस तरह रामायण में महाज्ञानी रावण से ज्ञान पाने के लिए लक्ष्मण को उनके चरणों में झुकना पड़ा था, उसी भांति भाजपा सरकार को भी महाज्ञानी मनमोहन सिंह के चरणों में झुकना पड़ेगा ताकि अर्थव्यवस्था को गति मिल सके। वरना आरोप और प्रत्यारोप का दौर सब कुछ समाप्त कर देगा। लोग मरते रहेंगे, लेकिन अब सरकार को भी इन मौतों की जिम्मेदारी ले लेना चाहिए, क्योंकि उसकी गलत नीतियों ने ही आज देश की यह हालत बनाई है।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि अर्थव्यवस्था की गाड़ी में पहिए की तरह काम करते लोग जैसे सरकारी संस्थान, अधिकारी, उधोगपति, स्टार्टअप आदि डरे हुए हैं, जिसके चलते विकास का पहिया रूका है। देश के लोग इन पर तभी भरोसा जता पाएँगे, जब सरकार इनका भरोसा जीत पाएगी और जब इनका डर समाप्त हो जाएगा, तभी अर्थव्यवस्था पटरी पर आ सकेगी और विकास की गाड़ी रफ्तार पकड़ सकेगी।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि अर्थव्यवस्था की गाड़ी में पहिए की तरह काम करते लोग जैसे सरकारी संस्थान, अधिकारी, उधोगपति, स्टार्टअप आदि डरे हुए हैं, जिसके चलते विकास का पहिया रूका है। देश के लोग इन पर तभी भरोसा जता पाएँगे, जब सरकार इनका भरोसा जीत पाएगी और जब इनका डर समाप्त हो जाएगा, तभी अर्थव्यवस्था पटरी पर आ सकेगी और विकास की गाड़ी रफ्तार पकड़ सकेगी।

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