हम किताबों और सिद्धांतों से बहुत कुछ सीख सकते हैं, लेकिन यह बेबुनियाद है, यदि हम उस ज्ञान का उपयोग दुनिया में खुद का वजूद स्थापित करने के लिए नहीं कर सकते हैं। जीवन की तपिश में तपकर ही इंसान खरा सोना बनता है। आप ही सोचें, क्या हो जब ऐसा शिक्षक छात्रों को हिंदी विषय पढ़ा रहा हो, जिसे हिंदी में बात करना भी न आती हो? क्या आप किसी ऐसे वैज्ञानिक की कल्पना कर सकते हैं, जिसके पास प्रयोगों का व्यावहारिक अनुभव ही न हो? या फिर कोई ऐसा डॉक्टर, जिसे इलाज का कोई ज्ञान न हो? नहीं न!! लेकिन हो सकता है यदि हम कोविड की मार से पीड़ित शिक्षा के विषय में गंभीर नहीं हुए, तो भविष्य में उपरोक्त स्थिति से हमें गुजरना पड़े।
इसमें कोई शक नहीं है कि कोरोना महामारी ने दुनिया को कई अभूतपूर्व और असहनीय तरीकों से बदल कर रख दिया है। इसने निश्चित रूप से शिक्षा प्रणाली पर अत्यंत असहज प्रभाव छोड़ा है। चार दीवार वाली कक्षाएं छोटे-से मोबाइल में तब्दील हो चुकी हैं। हालाँकि, डिजिटल शिक्षा में बहुत प्रगति हुई है, लेकिन हम छात्रों पर कोविड के विभिन्न नकारात्मक प्रभावों को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं, खासकर उनके करियर के संदर्भ में। स्थिति यह है कि महामारी ने शिक्षा क्षेत्र को बुरी तरह धर दबोचा है, जिसके परिणामों की कल्पना भर ही असहनीय है।
खेल के मैदानों और कैंटीन की धमा-चौकड़ी, लाइब्रेरी वाली ग्रुप स्टडीज़, दोस्तों के साथ की जाने वाली विभिन्न सांस्कृतिक और शैक्षणिक गतिविधियां जीवन का वास्तविक अनुभव और सामाजिक कौशल प्रदान करती हैं। लेकिन तथ्य यह है कि छात्रों ने लगभग 1.5 वर्षों से कॉलेजों में कदम नहीं रखा है। जबकि कॉलेज वह जगह है जहाँ छात्र अपने करियर का सृजन करते हुए व्यावहारिक कौशल सीखते हैं। कॉलेज के छात्र या कॉलेज पास आउट बिना किसी व्यावहारिक ज्ञान और अनुभव के अपने करियर में प्रवेश कर रहे हैं।
उनके पास महज उनके सिद्धांत, नोट्स और किताबी ज्ञान हैं। यह छात्रों की पूरी शिक्षा प्रक्रिया पर एक बड़ा सवाल बन खड़ा हुआ है। आखिरकार, एक बेहतर नींव, दोस्तों, सामाजिक संपर्क और व्यावहारिक ज्ञान के बिना आप दुनिया में कैसे जीवन यापन कर सकते हैं?
पुरानी कहावत है “अधजल गगरी छलकत जाए”, यानी यदि ज्ञान आधा-अधूरा है, तो वह किसी काम का नहीं है। जीवन के प्रत्येक मोड़ पर यह ज्ञान आपको सबसे पीछे लाकर खड़ा कर देगा। उपरोक्त विषय से यह खुलासा तो हो ही चुका है कि किसी किताब के पन्नों में अरसों से कैद यह कहावत एक बार फिर हमारे सामने आ खड़ी हुई है, जिसके परिणाम अत्यंत दुष्कर हैं।
समय बदल रहा है, और हम भी। इससे परे हम बस बैठकर अपने अच्छे-बुरे दिनों पर विलाप नहीं कर सकते, क्योंकि यह व्यर्थ है। आवश्यकता है आगे बढ़कर इसे सकारात्मक करने की। हमें शिक्षा के बुनियादी स्तर में बदलाव लाने होंगे और स्थिति को संभालने के तरीकों पर बेहतरी से कार्य करना होगा। छात्र हमारे समाज और देश का भविष्य हैं और जीवन के इस चरण में आगे बढ़कर आने में हमें उनकी मदद करना है।
देश के हर बच्चे को उचित शिक्षा दिलाने के लिए सरकार, माता-पिता और शिक्षक, सभी को एक साथ आना चाहिए। इसके अलावा, माता-पिता को अपने बच्चों के साथ कुछ क्वालिटी टाइम बिताना चाहिए और उनके दोस्त बनकर रहना चाहिए। माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों के बेहतर करियर के लिए उनका मार्गदर्शन करना चाहिए। अपने विषय और चुने हुए करियर की उचित समझ रखने के लिए उनका पथ-प्रदर्शन किया जाना चाहिए। इस समय व्यावहारिक अनुभव तो संभव नहीं है, लेकिन शिक्षकों और अभिभावकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्रों को अवधारणाओं का गहन ज्ञान हो और स्थिति सामान्य होने के बाद उन्हें संबंधित क्षेत्र में व्यावहारिक ज्ञान से फलीभूत कराना चाहिए।