कलम की टीस..

The pain of the pen..

मैं कलम हूँ। मैं क्या कर सकती हूँ, कोई आसानी से नहीं समझ सकता। वो सब, जो नहीं समझते उनके लिए मैं एक निर्जीव वस्तु हूँ, न हिल सकती हूँ, न साँस ले सकती हूँ, केवल एक प्लास्टिक से बनी हुई वस्तु हूँ.. लेकिन हकीकत उनकी सोच से कोसों परे है। मैं क्या कर सकती हूँ, यह तो वही व्यक्ति समझ सकता है, जिसके विचारों में शक्ति हो और उँगलियों से उन विचारों को पन्ने पर उतारने की ताकत हो। जब ​​कोई मुझे लिखने के लिए उठाता है, तो मैं गहरी साँस लेकर तैयार हो जाती हूँ और चलने-फिरने में सक्षम हो जाती हूँ। मैं एक कोरे कागज को उन विचारों के साथ अर्थ में बदल देती हूँ..

एक निर्जीव वस्तु (कलम) होने के कारण मैं अहंकारी स्वभाव से मुक्त हूँ। मैं कीमत में सस्ती हूँ, इसलिए हर कोई मुझे अपनी इच्छा के अनुसार खरीद सकता है। मुझे बहुत अच्छा लगता है जब कोई दूसरों को उनके विचारों के लिए लिखने के लिए जागरूक करता है या एक महत्वपूर्ण वस्तु समझकर किसी को उपहार स्वरुप देता है। मैं खिल जाती हूँ यह सोचकर कि एक बार फिर मैं कोरे कागज पर विचार बन कर अंकित हो जाऊँगी। मैं हमेशा सच लिखने की कोशिश करती हूँ।

एक टीस है जो बार बार उठती है दिल पर, जब अदालत में एक न्यायाधीश किसी अपराधी की मौत का कागज पर हस्ताक्षर करता है। वह केवल उस व्यक्ति को नहीं मारता, वह मुझे भी मारता है.. वह उस हस्ताक्षर के साथ ही मुझे वहीं पर तोड़ देता है। मुझे बहुत दु:ख होता है, जब भी किसी गलत काम के लिए मुझे उपयोग किया जाता है। मैं तो हमेशा अच्छा और उपयोगी लिखना पसंद करती हूँ। फिर क्यों मेरा गलत इस्तेमाल होता है? 

एक कलम की टीस सिर्फ यही हो सकती है,

“छीन गई मेरी शिनाख़्त मुझसे,

ख़ून-ए-काग़ज़ पर तोड़ा है दम मैंने..”

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