जीवन में हमें अपने आसपास दो तरह के लोग देखने को मिलते हैं, एक वो जो छोटी-मोटी मुश्किल को भी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं, और सिर्फ यह कहते हुए दिख पड़ते हैं, कि यह फलाना काम कैसे होगा, यह तो बेहद मुश्किल है आदि। दूसरे वो जो बड़ी से बड़ी मुश्किल को यह कहकर छोटा कर देते हैं कि यह तो बहुत आसान है, मैं इसे कर लूँगा। मुश्किल चाहे जितनी भी बड़ी हो, जिसे इससे निपटना आ गया, उसे गर्व से जीना आ गया।
मैं यहाँ यह कहना चाहता हूँ कि मुश्किलों से भागना उपाय नहीं है, उपाय है उसके लिए पहले से खुद को तैयार करना और उस समस्या का डटकर सामना करना, ताकि परिणाम के रूप में अन्य समस्या नहीं, बल्कि भविष्य को लेकर सतर्कता और एक बेहतर कल मिल सके। ऐसी ही एक जानलेवा समस्या से हम विगत 2 वर्षों से जूझ रहे हैं। कोरोना नाम की यह बला अब ओमीक्रॉन नाम से तांडव कर रही है। तीसरी लहर के रूप में यह वेरिएंट कब अपना रौद्र रूप दिखा तूफान बनकर खड़ा हो जाए, कह नहीं सकते। लेकिन इसके कारण हम हाथ पर हाथ धरे तो नहीं बैठ सकते न..।
पिछले दो वर्षों में हम दोनों लहरों की वजह से आर्थिक रूप से पहले ही काफी कमजोर हो चुके हैं। तो क्यों न हम तीसरी लहर के लिए पहले ही सतर्क और तैयार हो जाए? हजारों खबरें इन लहरों के दौरान हमें सुनने और देखने को मिली कि न जाने कितने ही लोगों का घर-बार और काम-काज पीछे छूट गए।
यह सच है.. बहुत-से लोगों का बहुत कुछ छूट गया, किसी के सपने छूट गए तो किसी के अपने। यह महामारी हमें असहनीय तकलीफों में डाल गई है। इस नुकसान की भरपाई तो नहीं की जा सकती है, लेकिन इस बार आने वाली समस्याओं से तो संभला जा ही सकता है।
अब जबकि हमें इस लहर के बारे में भली-भाँति जानकारी है, तो क्यों न इस बार हम अन्य स्त्रोतों से आय बनाने के कुछ उपाय सोचें। अन्य आय के रूप में घर से ही कोई पार्ट टाइम काम ढूँढा जा सकता है, जिससे कमाई गई पूरी आय बचत के रूप में सहेजी जा सकती है। अब घर की उन महिलाओं को पुरुषों के कँधे से कँधा मिलाकर चलने के लिए आगे आना होगा, जो वर्तमान में आय से संबंधित काम नहीं करती। गृहिणियाँ घर में रहकर ही गृह या कुटीर उद्योग आदि की शुरुआत करके आय का मजबूत स्त्रोत बन सकती हैं। रही बात इसे खरीदने और बेचने की, तो हमें अब माननीय प्रधानमंत्री द्वारा की गई पहल ‘वोकल फॉर लोकल’ को प्रखरता से लेना होगा, क्योंकि यही उपयुक्त समय है एक-दूसरे का साथ और उन्हें बढ़ावा देने का।
अब समय आ गया है कि न्यायपालिका को जेलों की स्थिति को सुधारने के लिए आकलन करना चाहिए और सकारात्मक कदम उठाने चाहिए। उन्हें बंदियों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए और साथ ही उन्हें उचित सुरक्षा भी दी जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्हें शैक्षिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि उन्हें अपने जीवन को बेहतर बनाने का मौका मिल सके।
जेलों के कैदी लंबे समय से अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन मानवता के इन भूले-बिसरे लोगों की खामोश चीखें अभी तक भी अधिकारियों को सुनाई नहीं दी हैं। यदि सकारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो परिणाम असहनीय होंगे। भारतीय जेलों में तत्काल सुधर की सख्त आवश्यकता है, साथ ही इस मानसिकता को अपनाने की भी जरुरत है कि “घृणा अपराध से की जाना चाहिए, अपराधी से नहीं।”