आधुनिकता को अपनाने में कहीं विलुप्त न हो जाएं हमारे पारम्परिक त्यौहार
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हे इंसान! मेरे बच्चे भी भूख से तड़प रहे हैं
हे इंसान! मेरे बच्चे भी भूख से तड़प रहे हैं
Continue reading...विलुप्त होते बेजुबानों की सुध कौन ले रहा है?
अब तो चुपचाप शाम आती है, पहले चिड़ियों के शोर हुआ करते थे।
Continue reading...वह राह दूसरों की मंजिल क्या तय कर पाएगी, जिस पर आप खुद भटक रहे हैं?
वह राह दूसरों की मंजिल क्या तय कर पाएगी, जिस पर आप खुद भटक रहे हैं?
Continue reading...अब जीवन पर्यन्त चलने वाले मित्रों पर भी विराम….
ऑनलाइन पढ़ाई और सामाजिक दूरी की आग में ये बच्चे झुलसने लगे हैं। दुनिया तो एक बार फिर स्थिति सामान्य होने के बाद पटरी पर दौड़ने लगेगी, लेकिन निश्चित रूप से ये बच्चे इस भीड़ के अकेलेपन में कहीं खो जाएंगे।
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