“कर भला तो हो भला”; अब भी समय है, इस कहावत को जीवन में उतार लीजिए

"a good deed always comes around"; There is still time, adopt this proverb in your life

जब हम किसी के लिए सहानुभूति और उदारता का भाव रखते हैं, तो समय अपनी झोली में उस सहानुभूति और उदारता का कुछ हिस्सा हमारे लिए सहेजता जाता है

कहावत कुछ सुनी-सुनी सी प्रतीत हो रही है न! आप सही समझें हैं, हम सभी ने अपने स्कूल के दिनों में हिंदी विषय में ‘कर भला तो हो भला’ अध्याय पढ़ा है, लेकिन अफसोस, कच्ची उम्र में दी गई इस पक्की सीख के मायने हमारे अगली कक्षा में आते-आते फीके पड़ने लगे और अब तो यह कहावत सामने आने पर हम यह सोच रहे हैं कि इसे हमने आखिर पढ़ा कब और कहाँ था?

अब बात निकली है, तो बचपन में दी गई इस अनमोल सीख को एक बार आपके सामने पेश कर ही देता हूँ। यह कहानी है चींटी और कबूतर की। एक बार एक चींटी एक जंगल में नदी किनारे खड़े एक पेड़ की शाखा पर चल रही थी। अचानक तेज़ हवा चली और उसके झोंके से चींटी नदी में गिर गई और पानी में बहने लगी। चींटी ने बचने की खूब कोशिश की, लेकिन असफल रही। उसी पेड़ की टहनी पर बैठे एक कबूतर की नज़र अचानक से उस नन्हीं चींटी पर पड़ी और उसने बिना एक सेकंड की भी देर किए अपनी चोंच की सहायता से पेड़ पर से एक पत्ता तोड़ा और चींटी के ठीक पास पानी में डाल दिया। यहाँ डूबते को तिनके का सहारा मिल गया और चींटी उस पत्ते पर बैठ गई। अब वह बिल्कुल सुरक्षित थी। कबूतर ने जल्दी से उड़कर वह पत्ता पुनः चोंच से उठाकर पेड़ पर रख दिया। इस प्रकार, चींटी को जीवन दान मिल गया और वो दोनों सच्चे मित्र बन गए।

कुछ दिनों बाद उस जंगल में एक शिकारी आया और उसने पेड़ पर आराम कर रहे कबूतर को निशाना बनाना चाहा। इस बात का अंदाजा कबूतर को बिल्कुल भी नहीं था कि शिकारी के वेश में मौत उसके सामने खड़ी है। लेकिन पेड़ के तने पर बैठी चींटी ने जैसे ही शिकारी को देखा, वह तुरंत उसकी मंशा को भांप गई। इस बार उसके प्राणों की रक्षा करने वाले कबूतर और उसके सबसे अच्छे मित्र का जीवन संकट में था। उसने तुरंत ही अपने नन्हें-नन्हें कदमों से तने से उतरना शुरू कर दिया और शिकारी की बाँह पर चढ़ गई। जैसे ही शिकारी ने अपना निशाना साधा, चींटी ने उसे जोरदार डंक मार दिया, फिर क्या था, शिकारी का निशाना चूक गया और तीर दूसरी टहनी से टकरा कर सीधा निकल गया। कबूतर ने जैसे ही नीचे देखा कि शिकारी उसकी जान लेना चाहता है, वैसे ही वह अपने स्थान से उड़ गया। इस बार चींटी ने कबूतर की जान बचा ली। 

बचपन में सिखाई गई यह कहानी हमें सीख देती है कि संसार में हम लोगों के साथ जैसा व्यवहार करते हैं, बिल्कुल वही व्यवहार हमारे पास लौट कर आता है। यह भी स्पष्ट है कि कोई कितना ही संपन्न या समृद्ध हो, मुसीबत सबके जीवन में आती हैं। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हमारे संकट के समय में हमें उचित सहायता मिले, तो पहले हमें यह रवैया अपनाना होगा और किसी मुसीबत में फँसे लोगों और अन्य प्राणियों की निःस्वार्थ भाव से सहायता करना होगी। चींटी और कबूतर की कहानी इसी सीख को प्रकट करती है।

जीवन अनगिनत सफलताओं और अवसादों का सफर है, और इस सफर में हमें अनगिनत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जब समय मुश्किल राह से गुजर रहा होता है और सफलता के रास्ते धुँधले नज़र आते हैं, तो “कर भला तो हो भला” कहावत ही हमारे सामने सच्ची मार्गदर्शक बनकर सामने आती है। यह कहावत अपने में जीवन का सबसे बड़ा सबक लिए है, जो हमें यह सिखाती है कि यदि हमारे भीतर दूसरों का भला करने की प्रवृत्ति है, तो यह किसी न किसी रूप में हमारे लिए भी भला ही लेकर आएगी।

इस उक्ति का मतलब यह नहीं है कि हमें अपने स्वार्थ के लिए ही कार्य करते रहना चाहिए, बल्कि यह बताती है कि यदि हम दूसरों की मदद करते हैं, तो इससे सिर्फ दूसरों का ही नहीं, बल्कि हमारा भी भला होता है। एक सही कार्य करने से न सिर्फ हमारी आत्मा पवित्र होती है, बल्कि यह हमें समर्पण की भावना का उपहार भी देता है।

किसी जरूरतमंद व्यक्ति या अन्य किसी प्राणी की एक छोटी-सी मदद एक व्यक्ति के जीवन में क्राँति लाने की शक्ति रखती है, और जब भी हम किसी की मदद करते हैं, तो इससे हमें भी आत्मतृप्ति और संतुष्टि का अहसास होता है। कहावत का महत्व इस बात में है कि जब हम किसी के लिए सहानुभूति और उदारता का भाव रखते हैं, तो समय अपनी झोली में उस सहानुभूति और उदारता का कुछ हिस्सा हमारे लिए सहेजता जाता है। 

इस उक्ति को अपनाने का सबसे अच्छा तरीका है सकारात्मक सोच को अपनाना और बड़ा दिल रखना। जब हम अपने आसपास के लोगों के लिए सकारात्मक सोचते हैं और हमेशा उनकी भलाई के बारे में विचार करते हैं, तो हमारा मानसिक स्वास्थ्य हमें खुश रखने की पुरजोर कोशिश में लग जाता है।

सिर्फ भलाई की उम्मीद के साथ ही लोगों का भला नहीं करते रहना चाहिए। यदि किसी ने हमारे साथ बुरा किया है, तो इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि हम भी उसके साथ बुरा ही करें। हमें भला करने पर ही ध्यान देना है। हम किसी से दुश्मनी या असहमति का सामना कर रहे हैं, तो भी उस व्यक्ति का भला करने का कोई भी मौका हमें नहीं छोड़ना है, क्योंकि यही वह समय होगा, जो उस शख्स को आपके करीब लाएगा, सिर्फ कहने के लिए ही नहीं, बल्कि अंतर-आत्मा से भी उसे आपके साथ जोड़ देगा। 

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