पृथक राज्य की माँग के साथ कब तक दिव्यांग बना रहेगा बुंदेलखंड?

How long will Bundelkhand remain disabled with the demand for a separate state?
  • राजनीतिक पहलुओं को सुलझाना अति-आवश्यक
  • स्थानीय समुदाय को बढ़ावा देने संबंधी गतिविधियों में तेजी
  • राजनीतिक दलों के विरोधाभास का शिकार

हर साल बुंदेलखंड में लहलहाएँगे बाग और खिलखिलाएँगी फसलें, की खबरें तो अखबारों की शोभा बढ़ाती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अभी दिल्ली दूर ही नज़र आती है।

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 जिले मिलाकर बना बुंदेलखंड क्षेत्र आज भी अपनी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है। इसके एक नहीं, बल्कि कई प्रमाण देखने को मिलते हैं। साल 2021 का एक सरकारी आँकड़ा बताता है कि उत्तर प्रदेश के अंतर्गत आने वाले बुंदेलखंड क्षेत्र के सात जिलों में 400 किसानों ने फसल के बुरी तरह नष्ट होने और पहले से ही कर्ज में डूबे रहने के कारण आत्महत्या कर ली। 2014 के नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट के द्वारा की गई एक स्टडी में कहा गया कि लगभग 3 करोड़ की आबादी में फैले बुंदेलखंड से रोजाना सैकड़ों की संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं। सागर, पन्ना दतिया, झांसी, छतरपुर, ललितपुर, बांदा जैसे जिलों से हजारों लोग इंदौर भोपाल ग्वालियर जैसे शहरों या मध्य प्रदेश के बाहर अन्य शहरों में पलायन कर लेते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि बुंदेलखंड के लिए आजादी के अमृतकाल में भी पिछड़ेपन से जुड़ी बातें क्यों हो रही हैं?

सवाल कई उठते हैं, उठते आ रहे हैं कि बुंदेलखंड को यूपी-एपी के राजनीतिक फेर में पड़ कर, पिछड़ेपन का शिकार होना पड़ता है। इसे कई मीडिया रिपोर्ट्स में देखा जा सकता है, लेकिन बात यही नहीं कि सरकार ध्यान नहीं दे रही, सरकार ध्यान देना ही नहीं चाह रही। ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है, क्योंकि इसके कई राजनीतिक कारण हैं। राजनीतिक दृष्टि से देखें, तो राजनेताओं में राजनीतिक दलों में इस बुंदेलखंड को पृथक करने का विषय विरोधाभास ही प्रतीत होता है। मध्य प्रदेश से बीजेपी की दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती बुंदेलखंड को अलग करने की बात और वादा दोनों कर चुकी हैं। हाल ही में हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने भी बुंदेलखंड को पृथक करने की माँग सदन के सामने रखी।

उधर उत्तर प्रदेश में बसपा सुप्रीमों मायावती को छोड़ दें, तो समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव दो टूक बोल चुके हैं कि वह किसी भी शर्त पर यूपी का विभाजन नहीं होने देंगे।

अब राजनीतिक पटल पर बुंदेलखंड चर्चा का विषय तो बनता है, लेकिन अनन्य कारणों से सिर्फ बातों तक ही सीमित रह जाता है। हमें बुंदेलखंड के लिए उन कारणों से मुक्ति पाने की जरुरत है। समय के साथ स्थानीय लोगों के विकास को बढ़ावा देने, दिन-प्रतिदिन बढ़ती पलायन की संख्या पर रोक लगाने तथा, इसे सिर्फ भूमि का एक बंजर टुकड़ा समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। यदि यह एक पृथक राज्य होगा, तो यहाँ के संसाधनों का विधिवत फायदा यहाँ के स्थानीय समुदायों को मिलेगा। गेंहू, चना, मटर, सरसों, अरहर और मसूर जैसी फसलों पर ध्यान दिया जाए, तो यह देश की जरूरतों को पूरा करने में अगुआ की भूमिका निभा सकता है। हालाँकि, हर साल बुंदेलखंड में लहलहाएँगे बाग और खिलखिलाएँगी फसलें, की खबरें तो अखबारों की शोभा बढ़ाती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अभी दिल्ली दूर ही नज़र आती है।

हम लाख कह लें कि सारे प्रदेश, यहाँ तक कि देश भी भ्रष्टाचार से मुक्ति पा चुका है, लेकिन बुंदेलखंड क्षेत्र से आने वाली खबरों में भ्रष्टाचार की खबरें प्रमुख भूमिका निभाती हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा में एक नेता ने बताया कि बलुआ पत्थर और मिट्टी के परिवहन के लिए बाइक और स्कूटर का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद बिलों और दस्तावेजों के साथ अच्छी छेड़छाड़ हुई। अब यह कुछ सालों की सच्चाई है, पिछले कितने सालों में, क्षेत्र को किस कदर छेड़ा गया होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बाँध बनाए गए, लेकिन घटिया गुणवत्ता के कारण खुद ही पानी में बह गए, और ये सारे तथ्य अभी हाल के ही हैं।

हिंदुस्तान टाइम्स अखबार में छपे एक लेख के अनुसार, बुंदेलखंड क्षेत्र में शामिल 13 जिलों से हर तीसरे दिन एक किसान की मौत की खबर आती है। इसके बाद थोड़े-से मुआवजे का वादा किया जाता है, लेकिन मुआवजा भी सही व्यक्ति तक नहीं पहुँच पाता है। इसके अतिरिक्त, बुंदेलखंड पैकेज के तहत नियोजित विभिन्न परियोजनाओं के खराब कार्यान्वयन के अलावा बड़े पैमाने पर लालफीताशाही और भ्रष्टाचार ने यहाँ के किसानों की दुर्दशा को और बढ़ा दिया है।

अब ऐसे में यदि एक अलग राज्य होगा और बेहतर प्रबंधन में मदद मिलेगी और अंतिम व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुँचाने में सहायता मिलेगी। उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ या झारखण्ड जैसे राज्य इसका बेहतर उदहारण हो सकते हैं। सूखे से ग्रसित बुंदेलखंड, को जलमग्न भी किया जा सकता है, बशर्ते इसके राजनीतिक पहलुओं को समय से सुलझा लिया जाए, तो…..

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