व्यक्तियों को चाहिए कि वे आभासी वास्तविकता
और वास्तविक दुनिया के बीच के अंतर को समझें
आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया का काफिला सिर्फ दोस्तों से जुड़ने तक ही सीमित नहीं है, इसकी पहुँच अपडेट्स शेयर करने से लेकर खुद अपडेट रहने तक के एक मंच से कहीं अधिक हो चुकी है। सोशल मीडिया हमारे जीवन का एक प्रमुख हिस्सा बन गया है। यह सिर्फ खुद को अभिव्यक्त करने का ही माध्यम नहीं है, बल्कि इसने हमें यह भी एहसास कराया है कि हम क्या हैं और कौन हैं। बीते कुछ समय में यह एक ऐसा क्षेत्र बन गया है, जहाँ व्यक्ति अपनी उपलब्धियों, अनुभवों और संपत्ति का प्रदर्शन करते हैं। सोशल मीडिया का विकास आत्म-अभिव्यक्ति और तुलना के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में हुआ है।
पहले की तुलना में आज के समय में एक बड़ा बदलाव देखने में आया है कि लोग स्वयं का एक आदर्श संस्करण प्रस्तुत करने के लिए अपनी ऑनलाइन उपस्थिति को बेहद सावधानीपूर्वक व्यवस्थित करते हैं। कहने का अर्थ यह है कि पोस्ट करना हो या फिर कोई भी जानकारी साझा करना हो, व्यक्ति सोझ-समझकर ही सोशल मीडिया पर कोई भी जानकारी अपलोड करते हैं और साथ ही, भविष्य में खलल पैदा करने वाली किसी भी तरह की जानकारी साझा करने से बचते हैं। बात चाहे ग्लैमरस छुट्टियों की तस्वीरों की हो या फिर स्वादिष्ट भोजन की, सोशल मीडिया यूज़र्स लगातार अपने जीवन के मुख्य आकर्षणों को अपने दोस्तों आदि से शेयर करके उनका ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। लेकिन कई बार यह ध्यान आकर्षित करने का विषय महज़ ‘दिखावा’ बनकर रह जाता है, जो कहीं न कहीं दूसरों से अच्छी लाइफस्टाइल दिखाने और भर-भरकर लाइक्स और कमैंट्स की इच्छा से प्रेरित होता है।
दुर्भाग्यवश, सोशल मीडिया पर खुद को दूसरों की तुलना में श्रेष्ठ दिखाना कई बार देखने वाले को नीचा दिखाने के समान प्रतीत हो सकता है। इस दिखावे से उपजकर और भी कई दुष्परिणाम हमारे जीवन में सोशल मीडिया की राह से लाने के माध्यम बन सकते हैं। दूसरों से श्रेष्ठ दिखने का जैसे ट्रेंड चल पड़ा है प्लेटफॉर्म्स पर।
गरीब को भोजन खिलाने पर दुनिया को दिखाने का तुक आज तक मैं समझ नहीं पाया। सोशल मीडिया पर एक आदर्श जीवन दिखाने का दबाव, गंभीर नकारात्मक परिणामों को जन्म दे सकता है, जिसमें हीन भावना, जलन और कुछ मामलों में चरम पर स्थिति पहुँच जाने पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ भी शामिल हैं। इस घटना को आमतौर पर ‘सोशल मीडिया-प्रेरित डिप्रेशन’ या ‘सोशल मीडिया एन्ज़ाइटी’ कहा जाता है।
कई बार लोग खुद को सबसे बेहतर दिखाने के चक्कर में बदनामी के गर्त में चले जाते हैं, क्योंकि बात अच्छी हो या बुरी, सोशल मीडिया के माध्यम से पलक झपकते ही हवा की तरह फैल जाती है। मणिपुर में हुई महिलाओं के साथ हिंसा इसका ताज़ा उदाहरण है। हालाँकि, इस कॉन्टेंट को वायरल करने में उन महिलाओं का कोई योगदान नहीं था, फिर भी हुआ, जो कि बहुत गलत था। इससे भुगतने वाले को तो बुरे परिणाम भोगने ही होते हैं, साथ ही बुरी भावना रखने वालों को और भी अधिक बुरे काम करने की शह भी मिलती है।
जब युवा पीढ़ी लगातार सोशल मीडिया पर दूसरों को लगातार सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए देखते हैं, तो यह तुलना का सबसे भयानक रूप बनकर सामने आ जाता है। कई मामलों में वे खुद को असफल और बेबस महसूस करना शुरू कर देते हैं, क्योंकि वे उनका मानना है कि वे अपने साथियों से पिछड़े हुए हैं। यह मानसिकता उन्हें धीरे-धीरे सचमुच विफलता के गर्त में ले जाती है। वे यह नहीं समझते कि सबका अपना-अपना सफलता का मार्ग होगा है, कोई उस पर तेजी से चलकर मंजिल पा लेता है, तो किसी को धीरे-धीरे चलकर सफलता हासिल होती है। “सब्र का फल मीठा” कहावत तो जैसे युवा पीढ़ी भूल ही चली है, क्योंकि उनमें सब्र का नामों-निशान नज़र नहीं आता। होड़ दिखती है, तो सिर्फ सोशल मीडिया की दुनिया में सफलता वाली दौड़ की।
इसके अलावा, साइबर बुलिंग और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नकारात्मक कमैंट्स न सिर्फ हीनता, बल्कि अकेलेपन की भावनाओं को भी जन्म देती हैं, जिससे कई मामलों में व्यक्ति तनाव में आ जाता है और उसकी भावनाओं को बुरी तरह ठेस पहुँचती है। हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सोशल मीडिया पर हम जो कुछ भी देखते हैं, जरुरी नहीं है कि वह सौ टका वास्तविक या सही ही हो। मॉडर्न फिल्टर्स और सोच-समझकर तैयार किए गए कैप्शंस के पीछे किसी के जीवन का एक क्यूरेटेड वर्ज़न छिपा होता है, जो अक्सर उन सांसारिक या चुनौतीपूर्ण पहलुओं को किनारे कर देता है, जिन्हें हम सभी अनुभव करते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया के प्रभाव को पहचानना और इसके नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए कदम उठाना आवश्यक है। यदि आप खुद को सोशल मीडिया पर बहुत अधिक समय समर्पित करते हुए पाते हैं और उदासी, असंतोष, झुंझलाहट या अलगाव जैसी भावनाओं का अनुभव कर रहे हैं, जो आपकी भावनाओं को ठेस पहुँचाने से अधिक और कोई कार्य नहीं कर रहा है, तो अपने ऑनलाइन व्यवहार का पुनर्मूल्यांकन करना और अधिक संतुलित और स्वस्थ दृष्टिकोण के लिए प्रयास करना फायदेमंद हो सकता है। व्यक्तियों को चाहिए कि सोशल मीडिया की दुनिया को वास्तविक दुनिया से अलग ही रखें, उन्हें एक-दूसरे से भूलकर भी न मिलाएँ। यह आपके जीवन को संतुलित राह पर चलाने में मदद करेगा।