मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने को हैं। 2018 में जनता ने कांग्रेस को चुना था, हालाँकि 2020 में कांग्रेसी विधायकों के बीजेपी में जाने के बाद सत्ता कांग्रेस से छीन ली गई थी। अब ऐसे में 2023 के लिए कांग्रेस ने कमर कस ली है। कांग्रेस जानती है, इस जंग को जीतने के लिए उसे एक अचूक फॉर्मूले की ज़रूरत है।
एमपी की 230 सदस्यीय विधानसभा की यदि बात की जाए, तो फिलहाल कांग्रेस के 96 विधायक हैं, जबकि बीजेपी 126 विधायक के साथ सत्ता में काबिज़ है। जबकि यहाँ मात्र 4 निर्दलीय विधायक हैं और दो बसपा व एक सपा से विधायक है।
हाथों में आई सत्ता के जाने के बाद से ही कांग्रेस अब पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटना चाहती है और इसके लिए पार्टी अभी से ही उम्मीदवारों पर विचार करना शुरू कर चुकी है। कांग्रेस जानती है कि गुटबंदी उसे कमजोर कर सकती है, इसलिए कांग्रेस ने राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा के साथ ही, प्रदेश में कार्यकर्ताओं को जोड़ना और आगामी चुनाव की नीतियाँ बनाना शुरू कर दिया था।
2023 में कांग्रेस ने टिकट देने का फॉर्मूला तैयार कर लिया है। इस बार पार्टी नाम से नहीं, शोहरत से उम्मीदवार चुनने जा रही है। जिस उम्मीदवार की जीत की अधिक संभावना होगी उस केंडिडेट को पार्टी प्राथमिकता देगी। कांग्रेस निकाय चुनाव के प्रदर्शन को भी आधार मान रही है। बता दें, जिन उम्मीदवारों का प्रदर्शन बेहतर रहा है, उन्हें प्राथमिकता मिलेगी। भले ही कांग्रेस ने गुजरात में खराब प्रदर्शन किया हो, लेकिन हिमाचल में मिली जीत से कांग्रेस बेहद उत्साहित है। और अब पार्टी मध्यप्रदेश में भी सत्ता में आने की रणनीति बना रही है। कांग्रेस एक साल पहले से ही तैयारियों में जुट गई है।
कांग्रेस की टिकिट की रणनीति में सबसे अहम् है चर्चित नाम, इसलिए पार्टी अपने सिटिंग एमएलए को मौका जरूर देगी।
इस हिसाब से मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास 96 विधायक हैं, जिनमें से लगभग 90 विधायकों को टिकिट मिलना तय माना जा रहा है, क्योंकि यह पार्टी के लिए ईमानदार भी माने जा रहे हैं। 2020 में हुए जोड़तोड़ के बाद से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को जोड़ने और उत्साहित करने के लिए विधायकों को ही जिम्मेदारी सौंपी गई थी। आगामी चुनाव में अपने वफादार चेहरों के अलावा कांग्रेस नए और भरोसेमंद चेहरों को मैदान में उतारेगी। पार्टी इस बार टिकट देते समय जातिगत समीकरण का भी ध्यान जरूर रखेगी।