गरीबी की बेड़ियों में जकड़ा भारत: क्या 2030 तक मिलेगी आज़ादी?

तोड़ देगी भारत को गरीबी एक दिन

तोड़ देगी भारत को गरीबी एक दिन
बात करे हैं कामयाबी की 
दास्तां सुनाएँ क्या गरीबी की 
भूखा तरसे खाने के एक निवाले को  
नमन है भारत के ऐसे विकास निराले को 

विभिन्न देशों की स्थिति-परिस्थिति यानि आर्थिक स्थिति को देखते हुए, उन्हें दो हिस्सों में विभाजित किया जाता है: एक विकसित और एक विकासशील। निम्न और मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं को आमतौर पर विकासशील देश कहा जाता है, वहीं, उच्च मध्यम आय और उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाओं को विकसित देश कहा जाता है।

यह तो हुआ किताबी ज्ञान। मेरे मायने इस विषय को लेकर बिल्कुल अलग हैं। मेरी राय में किसी भी देश को कामयाब तब माना जा सकता है, जब उस देश में रहने वाला हर इंसान भर पेट खाना खाता हो। इतना ही नहीं, उसे अपने रोजमर्रा की गतिविधियों के लिए हर दिन समस्याओं की नदी पार न करना पड़े और अपनी आम जरूरतों को पूरा करने के लिए तरसना न पड़े। 

ऐसे में, एक विकसित देश होना वह है, जब हम एक सम्पन्न और खुशहाल देश की गोद में फल-फूल रहे हों, जहाँ कोई भी गरीब न हो, जहाँ कोई भी भूखा न हो, जहाँ कोई भी बेबस न हो और जहाँ कोई भी वंचित न हो।

कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले हमारे देश के हालात ऐसे हैं, जहाँ आम आदमी रोज़ी रोटी की मार झेलते-झेलते थक चुका है। आज भारत बेशक विकसित देश की दौड़ में है, लेकिन खड़ा फिर भी विकासशील देश की गिनती में ही है, क्योंकि अरसे से भारत गरीबी की मार झेलता आ रहा है, और जो हालात ज्यों-के-त्यों बने हुए हैं, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आगे भी यही स्थिति हमें छोड़ेगी नहीं, क्योंकि हम इसे बड़े लाड़-प्यार और दुलार के साथ अपनी गोद में लिए बैठे हैं। यदि लाड़-प्यार नहीं होता, तो अब तक देश से इसे दूर करने पर काम किया जाने लगा होता। 

विश्व की दो तिहाई जनता गरीब है, जो कि सात देशों में बसर करती है। इन देशों में बांग्लादेश, चीन, कांगो, भारत, इथोपिया, इंडोनेशिया और पाकिस्तान के नाम शामिल हैं। तेंदुलकर समिति के वर्ष 2011 के आँकड़ें बताते हैं कि भारत में करीब 36% लोग गरीबी रेखा के नीचे बसर करते हैं। समिति के अनुसार शहरों में 32 रुपए और गाँव में 26 रुपए से कम प्रतिदिन खर्च करने वाले लोग गरीबी रेखा के नीचे आते हैं। हालाँकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में काफी तेज गति से विकास हो रहा है। 

हम सतत विकास लक्ष्यों की बात करें, तो ऐसा माना जाता है कि वर्ष 2030 तक हम शून्य गरीबी के लक्ष्य के तहत देश से गरीबी को पूरी तरह खत्म कर देंगे। नीति आयोग की वर्ष 2021 की गरीबी इंडेक्स के अनुसार भारत के टॉप 5 राज्य हैं, जहाँ गरीबी के आँकड़ें हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि इस बात का सत्य और तथ्य से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या वाकई हम वर्ष 2030 तक शून्य गरीबी का लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे।

नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के अनुसार बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश देश के सबसे गरीब राज्यों के रूप में सामने आए हैं। सूचकांक के अनुसार, बिहार की 51.91 प्रतिशत जनसंख्या गरीब है। वहीं, झारखंड में 42.16 प्रतिशत आबादी और उत्तर प्रदेश में 37.79 प्रतिशत आबादी गरीबी की मार झेल रही है। इस सूचकांक में मध्य प्रदेश चौथे स्थान पर है, जिसमें 36.65 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है, जबकि मेघालय 32.67 प्रतिशत के साथ पाँचवें स्थान पर है।

मेघालय के लोगों के गरीब होने का मुख्य कारण है वहाँ का वातावरण, जिसकी वजह से मजदूरों को दिहाड़ी करने के लिए बहुत कम समय मिलता है। जहाँ आम राज्यों में कोई व्यक्ति 8-10 घंटे काम करता है, वहीं मेघालय में 5-6 घंटे ही काम कर पाता है।

फिर आती है हमारे मध्य प्रदेश की बात। गरीब शहर की गिनती इसी राज्य में होती है, जिसका नाम है अलीराजपुर। यहाँ करीब 640 जिले हैं, जिनकी जनसख्या 7 करोड़ 26 लाख है। यहाँ की कुल जनसंख्या के लगभग 22 प्रतिशत लोग आदिवासी हैं और कुल 46 जनजातीय समुदाय हैं। अलीराजपुर इकलौता ऐसा शहर है, जिसमें राज्य के कुल 76% गरीब रहते हैं।

फिर तीसरे स्थान पर आता है उत्तर प्रदेश। भारत का लगभग 37.79 प्रतिशत गरीब समुदाय इसी राज्य में रहता है। यहाँ की लगातार बढ़ती जनसंख्या ही इसकी गरीबी का मुख्य कारण है। शिक्षा की कमी और बेरोजगारी इस राज्य को गरीबी की ओर ले जा रही है।

झारखण्ड की गरीबी का मुख्य कारण है बड़ी संख्या में काम और दिहाड़ी पर मजदूरों को लगाना। भ्रष्टाचार के प्रकोप से यहाँ की जनता जूझ रही है। यह राज्य नक्सलवाद की चपेट में भी रहा है। यहाँ आदिवासी समुदाय की करीब 20 जनजातियाँ रहती हैं।

बिहार की गरीबी का मुख्य कारण है पिछड़ावाद। आज भी इस राज्य का आम आदमी शिक्षा की कमी, लगातार बढ़ती जनसंख्या और भ्रष्टाचार के प्रकोप से जूझ रहा है। 

गरीबी से चोटिल हुआ पड़ा हमारा देश कैसे विकसित देश की दौड़ में आगे बढ़ सकता है। जब मुद्दा विकसित देश का है, तो हमें आर्थिक स्थिति पर विचार करने की सबसे अधिक जरुरत है। क्या वाकई हम इतने सक्षम हैं कि देश से गरीबी को पछाड़ देंगे? 

जिन कठोर आँकड़ों के जोरदार तमाचे हमारे मुँह पर पड़ रहे हैं, यदि अब भी इन्हें काबू करने पर काम न किया गया, तो यह गरीबी भारत को एक दिन तोड़ कर रख देगी और विकास की ये गाथाएँ फिर किताबों के पन्नों में ही कहीं दबी-कुचि रह जाएँगी। फिर विकास देखना हो, तो किताबों में ही देखना.. क्योंकि जो हालात बीते अरसे से ज्यों-के-त्यों बने हुए हैं, विकास के ढोल पीटने के बाद आने वाले कई अरसों तक ऐसे ही बने रहेंगे, इसमें कोई दो राय नहीं है। 

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