‘डर्टी पॉलिटिक्स’ के खेल में बुरे फँसे भारतीय युवा

Indian youth trapped in the game of 'dirty politics'

भारत की प्रगति की भव्य चौखट पर, राजनीति का स्थान हमेशा से ही केंद्र में रहा है। हालाँकि, अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे अक्सर ‘डर्टी पॉलिटिक्स’ के रूप में वर्णित किया जाता है। घिनौनी राजनीति का यह एक ऐसा टैग बन चुका है, जिसने खुद को हमारी सामूहिक समझ के ताने-बाने में काफी बुरी तरह बुन लिया है। इस व्यापक दृढ़ विश्वास के साथ राजनीति की भूलभुलैया को पार करना एक ऐसे खेल में प्रवेश करने जैसा है, जिसमें आपको एक बोतल में अधिक से अधिक प्रकाश को भरना है। लोगों के दिमाग में यह बात बहुत ही बुरी तरह बैठ गई है कि एक बार यदि कोई व्यक्ति इस राजनीतिक क्षेत्र में कदम रखता है, तो वह इसकी चुनौतियों और विवादों के मायावी जाल में भीतर तक फँसता चला जाता है। इसे दलदल कहना कतई गलत नहीं होगा, जिसमें गिरने के बाद एक व्यक्ति बाहर आने की जितनी कोशिश करता है, उतना ही वह भीतर भंवर में उतरता चला जाता है। आज, हम खुद को ऐसी स्थिति में पाते हैं, जहाँ सबसे प्रगतिशील और युवा राष्ट्रों में से एक होने के बाद भी, हमारे आधे से अधिक राजनीतिक नेता वृद्ध हैं और उससे भी अधिक सेवानिवृत्ति की आयु के आसपास हैं। इस युवा राष्ट्र के युवा आखिर कहाँ हैं? क्या वे भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के कीचड़ को साफ करने के लिए तैयार हैं या महज दर्शक बने रह कर ही संतुष्ट हैं?

क्या राजनीति में वरिष्ठ और युवा नेताओं के बीच के इस अंतर के खत्म होने के कोई आसार हैं?

वरिष्ठ और युवा नेताओं के बीच स्थायी अंतर हमें हर बार चिंतन और विचार करने पर मजबूर कर देता है। एक व्यापक गलतफहमी इस बात पर ज़ोर देती है कि अनुभवी उम्मीदवार आमतौर पर अधिक उम्र के होते हैं और स्वाभाविक रूप से शासन करने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित होते हैं। वरिष्ठ नेता और सार्वजनिक धारणा दोनों ही अनुभव के पक्ष में हैं और दावा करते हैं कि अनुभवी व्यक्ति अपने युवा समकक्षों की तुलना में अधिक सक्षम हैं। हालाँकि, यह धारणा एक महत्वपूर्ण सवाल उठाती है कि ये अनुभवी मस्तिष्क युवा नागरिकों के एक महत्वपूर्ण अनुपात का दावा करने वाले युवा राष्ट्र की जरूरतों और आकांक्षाओं को प्रामाणिक रूप से कैसे समझ सकते हैं?

इसके अलावा, अपने उत्तराधिकारियों के लिए योजना बनाने में वरिष्ठ राजनेताओं की सक्रिय भागीदारी, युवा पीढ़ी के नवीन विचारों को दबोच कर रख देती है। यहाँ तक ​​कि स्वयं युवा भी अक्सर राय व्यक्त करने या कथित अन्यायों के खिलाफ विद्रोह करने में झिझक महसूस करते हैं या यूँ कहें कि अपनी बात रखने के लिए वे खुलकर सामने नहीं आ पाते हैं, जिससे भाई-भतीजावाद के बीज को पनपने और परिवार के वरिष्ठ सदस्यों को नियंत्रण बनाए रखने के लिए एक प्रकार की प्रजनन भूमि तैयार होती चली जाती है। यह सबसे बड़े कारणों में से एक है, जिसकी वजह से युवा राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल होने से कतराते हैं और खुद को इस क्षेत्र में उतरने के लिए खुद में प्रेरणा की कमी पाते हैं।

क्या राजनीति एक आदर्श करियर पथ हो सकती है?

यह देखने में आता है कि बचपन से ही माता-पिता अपने बच्चों को चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कॉमर्स, मॉडलिंग, अभिनय, शिक्षण, सशस्त्र बलों और अन्य सहित विभिन्न क्षेत्रों में करियर बनाने के लिए प्रेरित करने लगते हैं। पुरानी पीढ़ी अक्सर नकारात्मक धारणा पैदा करती है, राजनीति को बुरा और करियर के लिए तुच्छ करार देती है और अपने बच्चों को इसमें शामिल होने से पहले ही रोक देती है। किसी बच्चे को राजनीतिक नेता बनने की आकांक्षा व्यक्त करते देखना एक दुर्लभ दृश्य है। यहाँ तक ​​कि यदि कोई युवा राजनीतिक क्षेत्र में अपना करियर स्थापित करने की इच्छा रखता भी है, तो उसे सीमित मंच, दुर्लभ करियर के अवसर और अपर्याप्त मार्गदर्शन की कसौटी से होकर गुजरना पड़ता है। दुर्भाग्यवश, अधिकतर मामलों में ऐसा होता है कि उनके इरादों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। कुल मिलाकर, राजनीति एक ऐसा विषय बनी हुई , जिसे छात्र व्यक्तिगत और सामाजिक उन्नति के मार्ग के बजाए एक बाधा के रूप में देखते हैं।

युवा और गतिशील भारत अपनी क्षमता को उजागर करने और विश्व स्तर पर अपनी छाप छोड़ने के लिए उत्सुक है। हालाँकि, सफलता के मार्ग पर उन नीति निर्माताओं ने रोड़ा लगा रखा है, जो समय के साथ चलने में विफल रहे हैं। पुरानी पीढ़ी पुराने विचारों पर ही कायम है, जो वर्तमान समय की वास्तविकता से कतई मेल नहीं खाते, और साथ ही ग्रामीण युवाओं की जरूरतों की उपेक्षा करते हैं। इस बीच, शहरी युवा उदासीन दिख रहे हैं, वे सक्रिय बहस के बजाए सोशल मीडिया पर निष्क्रिय चर्चा में शामिल होना तुलनात्मक रूप से ज्यादा पसंद कर रहे हैं। हालाँकि, वे बदलाव की इच्छा जरूर व्यक्त करते हैं, लेकिन सार्थक रूप से प्रयास करने में इच्छुक नहीं होते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि तमाम मुद्दे ज्यों के त्यों बने रहते हैं, और जिम्मेदारी लेने के बजाए, युवा विदेशों में बैठकर ही अपनी वर्चुअल स्क्रीन्स पर आराम से सतही चर्चाओं में भाग लेने से ही संतुष्ट हो जाते हैं और कभी देश आए भी, तो लौटने से पहले आसानी से राजनेताओं पर दोष मढ़ देते हैं।

युवाओं को कोयले की दलाली में हाथ काले करके अपने देश की लाज बचाने की जरूरत

वर्तमान पीढ़ी आज के समय को देखते हुए सिर्फ लोगों या गतिविधियों का अनुसरण करने से संतुष्ट नहीं है; उनमें अपने लक्ष्यों पर काम करने और उन्हें हासिल करने के लिए अपना रास्ता स्वयं बनाने की क्षमता होती है। जबकि युवा पीढ़ी को आगे लाने के लिए कई योजनाएँ और नीतियाँ बनाई गई हैं, ताकि वे राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में दृढ़ता और सक्रिय रूप से योगदान दे सकें, बावजूद इसके नीतियों या प्रावधानों का कार्यान्वयन अभी-भी अज्ञात बना हुआ है। राजनीति को ‘घिनौनी’ या ‘विवादों की कभी न खत्म होने वाली जंग’ के रूप में प्रचलित धारणा को बदलने की सख्त जरूरत है। इसके साथ ही, पुरानी पीढ़ी और माता-पिता को राजनीति के बारे में अपनी धारणा का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए, इतना ही नहीं, इसे एक प्रगतिशील राष्ट्र के एक आवश्यक पहलू के रूप में पहचानना भी चाहिए। उन्हें अपने बच्चों को राजनीतिक परिदृश्य में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए प्रेरित करना चाहिए, और साथ ही अधिक जानकारीपूर्ण और सहभागी समाज के लिए स्वस्थ बहस और विचार-विमर्श को प्रोत्साहित करना चाहिए। सरकारों और नेताओं को युवाओं को निर्णय लेने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल करना चाहिए, सिर्फ दस्तावेजों या प्रस्ताव को पारित करने में ही नहीं, बल्कि उन्हें इस प्रक्रिया का हिस्सा बनाने, उनके विचारों को अपनाने और किसी महत्वपूर्ण चीज़ से जुड़े होने की भावना पैदा करने के लिए प्रभावी ढंग से काम भी करना चाहिए। वरिष्ठ राजनीतिक हस्तियों को राजनीतिक क्षेत्र पर कुछ नियंत्रण छोड़ देना चाहिए, जिससे युवा पीढ़ी को उनके सावधानीपूर्वक मार्गदर्शन में केंद्रीय भूमिका निभाने की अनुमति मिल सके।

जैसे-जैसे भारत प्रगति की राह पर आगे बढ़ रहा है, डर्टी पॉलिटिक्स की काली छाया लगातार देश की क्षमता पर पड़ती चली जा रही है। पुरानी पीढ़ी के शासन और युवा आकांक्षाओं के बीच स्पष्ट अंतर एक आदर्श बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित करता है। राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए बेहद कम युवा ही इच्छुक होते हैं, इससे देश के उज्जवल भविष्य की यात्रा में बाधा का मुद्दा और भी अधिक गहरा हो जाता है। युवा पीढ़ी के लिए यह जरूरी है कि वह महज अवलोकन से खुद को ऊपर उठाए और राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में सक्रिय रूप से भाग ले। इसके अलावा, बदलाव लाने और राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए युवाओं के जुनून और प्रतिबद्धता की भी सख्त आवश्यकता है। जब युवा आत्म-जागरूक और आश्वस्त होते हैं और राष्ट्र की प्रगति के लिए वास्तविक जुनून रखते हैं, तो वे पूरे दिल से इसमें खुद को शामिल कर सकते हैं और राष्ट्र के विकास में सार्थक योगदान दे सकते हैं। यह सरकारी समर्थन, अनुभवी मार्गदर्शन और युवाओं के उत्साह का सामूहिक तालमेल है, जो राष्ट्र के लिए एक उज्जवल भविष्य को बढ़ावा देते हुए अधिक व्यस्त और गतिशील राजनीतिक परिदृश्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

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