आज सुबह जब नींद खुली, तो कुछ मिनटों तक दहशत में रहा, पसीने से तर-बतर हो चुका था। आतंकवाद की दहशत मानो सपने से हकीकत का रूप ले चुकी हो। एक देश के आतंकी हमले ने दूसरे को तहस-नहस कर दिया। हर तरफ लाशों के ढेर बिछाने और खून के कतरे से देश की धरती को रंगने में आतंकियों को थोड़ी भी रहम नहीं आई, लेकिन सरकार ने कुछ रेहमत दिखाई। फिर क्या देखता हूँ कि सभी देशों ने तालमेल बैठाकर रक्षा बजट पर होने वाले करोड़ों रुपयों के खर्चों पर विराम लगाने का फैसला लिया। इस फैसले में कहा गया कि हम ऑफेंसिव होने के बजाए डिफेंसिव होने पर काम करेंगे। यानि किसी दूसरे देश पर हमला करने की वजह अब हम न होंगे। खैर, यह एक सपना था। लेकिन यदि मेरा सपना सच हो जाए, तो मुझे लगता है कि दुनिया में शांति ही शांति हो जाए। कितना अच्छा हो कि दहशत का पेड़ बनने से पहले आतंक की तमाम जड़ें देश में ही काट दी जाएँ और इन्हें पनपने ही नहीं दिया जाए। यहाँ मुझे वह उदाहरण याद आया, जब एक साथ कई तीलियाँ कतार में बिछी होती हैं। आग लगने पर एक से दूसरी और फिर तीसरी चपेट में आ जाती है। जैसे ही बीच में से एक तीली को पीछे खींच दिया जाता है, आग थम जाती है। बस ऐसे ही यदि सभी देश अपने कदम पीछे खींच लें, तो आतंक पर विराम लग जाएगा।
रूस-यूक्रेन और तालिबान-अफगानिस्तान विवाद यदि आतंक का रूप नहीं लेता और सुलह कर लेता, तो शायद ये देश जनहानि और संपत्ति के नुकसान से बच जाते। ऐसे ही मुझे भारत के वो हमले याद आ गए, जिससे देश बार-बार आहत हुआ, खासकर वर्ष 2008 में।
भारत में सबसे खतरनाक आतंकवादी हमलों में से एक 26/11 का आतंकी हमला 26 नवंबर, 2008 को हुआ था, जब 10 आतंकवादी समुद्र के माध्यम से देश में प्रवेश करने में सफल हुए थे। इसी साल यानि 13 मई, 2008 को लगातार 15 मिनट में हुए नौ बम विस्फोटों से पूरे जयपुर में सदमें की लहर दौड़ गई थी।
दसवाँ विस्फोट भी हो ही जाता, यदि अधिकारी 10वें बम को ढूँढने और निरस्त्र करने में असफल रहते। वहीं 30 अक्टूबर, 2008 को असम की राजधानी गुवाहाटी के विभिन्न हिस्सों में 18 विस्फोट हुए थे।
11 जुलाई, 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में प्रेशर कूकर में बम रखकर हुए सात बम विस्फोट भी ध्यान आ गए। 29 अक्टूबर, 2005 को सीरियल बम विस्फोट ने दिल्ली की नींव हिलाकर रख दी थी।
यदि हमले होना ही है, तो देशों में भारी मात्रा में किए जाने वाले सैन्य खर्चे किस काम के? सीपरी (स्टॉकहोल्म इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट) के अनुसार, दुनिया भर में वर्ष 2021 में सैन्य खर्च 2,113 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है। यदि भारत की बात करें, तो वित्त वर्ष 2022-23 के लिए रक्षा मंत्रालय को 525,166.15 करोड़ रूपए आवंटित किए हैं। यह पिछले वर्ष के आवंटन से 10 प्रतिशत अधिक है और हाल के वर्षों में रक्षा बजट में सबसे बड़ी वृद्धि है। एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका अपनी सेना पर सबसे ज्यादा करीब 801 बिलियन डॉलर खर्च करता है। दूसरा स्थान चीन का है, जो दुनिया के कुल सैन्य खर्च का करीब 14 प्रतिशत खर्च करता है। यह खर्च करीब 292 बिलियन डॉलर आँका गया है। इस रैकिंग में भारत का स्थान तीसरा है। भारत का खर्च पिछले साल 76.6 बिलियन डॉलर था, जो 2020 से 0.9 प्रतिशत और 2012 से 33 प्रतिशत अधिक था। चौथा स्थान ब्रिटेन का है, जिसका सैन्य खर्च 68.4 बिलियन डॉलर रहा। रूस पाँचवें स्थान पर है, जिसका सैन्य खर्च 65.9 बिलियन डॉलर है। 56.6 बिलियन डॉलर खर्च के साथ छठा स्थान फ्रांस का है। सातवें स्थान 56 बिलियन डॉलर खर्च के साथ जर्मनी है। करीब 55.6 बिलियन डॉलर खर्च के साथ सऊदी अरेबिया आठवें स्थान पर है। जापान अपनी सेना पर 54.1 बिलियन डॉलर खर्च करने के साथ नौवें स्थान पर है। वहीं 50.2 बिलियन डॉलर खर्च के साथ दक्षिण कोरिया दसवें स्थान पर है।
देशों में होने वाले इतने बड़े खर्चों पर ऑफेन्स के बजाए डिफेन्स का फार्मूला अपनाकर विराम लगाया जा सकता है, जिसका उपयोग देशों के विकास में किया जा सकता है। बात पते की है, जिस पर विचार कर लिया जाए, तो शायद बात बन जाए। खैर यह एक सपना था, जो कभी न कभी पूरा जरूर होगा, उम्मीद करता हूँ।