भारत विराट संस्कृति के आशीर्वाद से फलीभूत देश है, जिसकी अमिट छाप की गूँज समूची दुनिया में सदियों से है। इंसान के साथ ही समस्त प्राणियों के प्रति सेवा भाव रखने और इतना ही नहीं, उनके खान-पान का खुद की तरह विशेष ध्यान रखने की सीख हमारे पूर्वजों ने हमें अमानत के तौर पर सौंपी है। याद है! कैसे खाना बनाते समय घी-गुड़ के साथ पहली रोटी गाय को और आखिरी रोटी कुत्ते को खिलाने हम अपने दादाजी के साथ बड़े चाव से जाया करते थे और इसके बाद ही हम सभी परिवारजनों के साथ बैठकर भोजन किया करते थे। हमें बुजुर्गों ने ही सिखाया है कि प्राणियों का पेट भरना हमारा परम् कर्तव्य है। लेकिन यदि हम ध्यान देंगे, तो पाएँगे कि मनुष्य की अन्य प्राणियों से प्रेम की परिभाषा अब विराम लेने लगी है। गाय की पूजा करने वाले देश में सबसे पहले इस प्राणी के लिए रोटी निकालने की प्रथा भी अब समाप्ति की कगार पर है।
इस असीम परोपकार से दूरी बनाते लोगों को देख मेरे मन को अनगिनत सवाल कुरेद कर विचलित कर देते हैं। हमसे आस लगाए इन बेजुबानों की कद्र कौन करेगा? सुबह की पहली रोटी अब कौन गाय को देगा? कौन आखिरी रोटी कुत्ते को खिलाएगा? इस संस्कृति को पुनःजीवित कौन करेगा? हम क्यों यह भूल चले हैं कि इस धरती का हर एक प्राणी प्यार का भूखा है? हम क्यों भूल चले हैं कि अन्य प्राणी प्रकृति के साथ-साथ कुछ हद तक मनुष्य पर भी निर्भर है? श्राद्ध के सोलह दिनों में हम कौओं को भर पेट खाना खिलाते हैं, ताकि हमारे पूर्वज भूखे न रहें। इस मान्यता को सिर-आँखों पर रखते हुए मैं यहाँ पूछना चाहता हूँ कि यदि हम वर्ष के 365 दिन इन प्राणियों के प्रति प्रेम भाव रखें, तो इसमें हर्ज़ ही क्या है? दशा यह है कि कई घरों में अब समय आदि की कमी तथा नई सभ्यता अपनाने के चलते पहली और आखिरी रोटी निकालने की परंपरा खत्म हो चली है, और कई घरों में निकलती भी है, तो घर में चार जगहों पर रखती-रखाती दिन ढलने के बाद कभी इन बेजुबानों के पास ये दो रोटियाँ पहुँचती हैं।
कुछ एक लोग यदि अपने घरों में जानवरों को स्थान देते भी हैं, तो विरोध के कटघरे में खुद को खड़ा पाते हैं। विरोध करने वाले लोगों का यह मानना है कि ये जानवर घर के बच्चों तथा बुजुर्गों के लिए हानिकारक हो सकते हैं, और इस प्रकार उन्हें नकार दिया जाता है। लेकिन नहीं, अब हमें इस सोच से ऊपर आना होगा। आखिरकार वे भी जीव हैं।
अपनी सोसाइटी का सबसे समझदार व्यक्ति आगे आए, और कम से कम एक गाय और एक कुत्ता अपनी सोसाइटी में जरूर पालें। चौकीदार की निगरानी में इन प्राणियों के खाने-पीने और देखरेख का जिम्मा आसपास के सभी रहवासी मिलकर उठाएँ। रही बात सफाई की, तो जब हम स्वच्छ भारत अभियान में योगदान दे सकते हैं, तो इन बेजुबानों के लिए भी साफ-सफाई की व्यवस्था आसानी से की जा सकती है। तो आज से ही प्रण लें कि पहली रोटी गाय और आखिरी रोटी कुत्ते के लिए निकालने की प्रथा हम जीवन पर्यन्त समाप्त नहीं होने देंगे।