वर्ष 2030 के भारत में शून्य भुखमरी लाने के लिए लेना होंगे ये प्रण, करना हो

वर्ष 2030 के भारत में शून्य भुखमरी लाने के लिए लेना होंगे ये प्रण, करना हो

सतत विकास की महत्ता को ध्यान में रखते हुए भारत 17 लक्ष्यों को प्राप्त करने के क्षेत्र में कार्यरत है। इन लक्ष्यों के लिए ऐसे विषयों का चयन किया गया है, जिनसे हमारा देश लम्बे समय से जूझ रहा है। सतत विकास के अंतर्गत यह निर्धारित किया गया है कि वर्ष 2030 तक इन सभी लक्ष्यों से संबंधित कमियों पर देश द्वारा काबू पा लिया जाएगा। इन समस्त लक्ष्यों के अंतर्गत सबसे गंभीर लक्ष्य है शून्य भुखमरी, जिससे हमारा देश और दुनिया अरसे से पीड़ित है। हालात कुछ यूँ हैं कि दुनियाभर में हर वर्ष तैयार होने वाले भोजन का एक तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है। बर्बाद भोजन की मात्रा इतनी होती है कि उससे 2 अरब लोगों के भोजन की जरूरत पूरी हो सकती है। इस लक्ष्य की प्राप्ति और भुखमरी को गंभीरता से लेकर देश में सख्त नियम तथा कानून बनाए जाने चाहिए, जिससे कि इससे वर्ष 2030 तक उबरा जा सके।

अतुल मलिकराम के अनुसार, बचा हुआ भोजन बर्बाद होने की स्थिति में हमें अपने आप में यह बदलाव लाना होगा कि उतना ही भोजन पकाएं जितनी कि हमें आवश्यकता हो। भारत में बढ़ती सम्पन्नता के साथ ही लोग भोजन के प्रति असंवेदनशील हो रहे हैं। खर्च करने की क्षमता के साथ ही भोजन फेंकने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। इससे बचाव हेतु भोजन फेंकने पर पूर्णतः रोक लगाई जानी चाहिए और सख्त दंड लागू किए जाने चाहिए। विवाह समारोह, पार्टियों, धार्मिक आयोजनों में भी 15 से 20 फीसदी तक भोजन फेंक दिया जाता है।

अब समय आ गया है कि इस प्रकार की फिजुलखर्ची और दिखावे की प्रवृत्ति के चलते ढेरों प्रकार के पकवानों पर अंकुश लगाकर पकवानों को सीमित करने का नियम लागू हो। होटल आदि में भी यह नियम लागू हो कि ऑर्डर देने के बाद बचे हुए भोजन को पैक कराकर लोग स्वयं अपने साथ ले जाएं, जिससे कि भोजन की बर्बादी को रोका जा सके। देश में ‘नेकी की दीवार’ की अवधारणा को बेहद सफलता मिली है, इसी को मद्देनजर रखते हुए जुग्गी-झोपड़ियों के पास ‘रोटी बैंक’ खोले जाएं। फूड मार्केट्स अपने यहाँ बचे हुए भोजन को जानवरों या खाद के लिए दान दें, इसके लिए भी कानून बनाया जाए।

एक तरफ करोड़ों लोग दाने-दाने को मोहताज और कुपोषण के शिकार हैं, वहीं प्रतिवर्ष लाखों टन भोजन की बर्बादी भारत देश के लिए एक विडंबना है। भारतीय संस्कृति में जूठन छोड़ना पाप माना गया है। हमारे देश में अन्न को देवता का दर्जा प्राप्त है लेकिन तथाकथित धनाढ्य मानसिकता के लोग अपनी परंपरा तथा संस्कृति को भूलकर दिखावे की प्रवृत्ति अपनाकर प्रतिदिन अन्न का अपमान करने को मजबूर हो चले हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि हमें भोजन के महत्व को गंभीरता से लेना होगा और नई पीढ़ी को भी इसके प्रति जागरूक करना होगा। इसलिए, आज से ही तथाकथित नियमों का देश के हर नागरिक द्वारा सख्ती से पालन किया जाए, तब जाकर आने वाले समय में कुपोषण को देश से जड़ से खत्म किया जा सकेगा। साथ ही, हमारा भारत कहलाएगा भुखमरी मुक्त देश।

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